दहेज ममाले में पति की भूमिका अलग पायदान पर होती है: SC
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि दहेज हत्या के मामले में पत्नी के प्रति जिम्मेदारी के संबंध में दूसरे रिश्तेदारों की तुलना में पति की स्थिति एकदम भिन्न होती है।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दहेज हत्या के मामले में पति की दोषसिद्धी और सात साल की सजा बरकरार रखते हुये कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दुर्भाग्य से हमारे समाज में दहेज हत्या की समस्या अभी भी बरकरार है और यह विशेष अध्ययन का विषय बन चुका है।
न्यायालय ने दहेज हत्या के इस मामले में ‘समता’ के आधार पर सह अभियुक्त मां और भाई की तरह ही पति को भी बरी करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि दूसरे रिश्तेदारों की तुलना में पति का मामला एकदम अलग है। न्यायालय ने कहा कि पति की जिम्मेदारी पत्नी की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही नहीं है बल्कि उससे अपेक्षा की जाती है कि दूसरे रिश्तेदारों की तुलना में वह अपनी पत्नी की स्थिति बेहतर तरीके से समझेगा।
न्यायाधीशों ने कहा कि यदि पत्नी दहेज की खातिर पति और उसके परिवार के असंतुष्ट होने के कारण खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर लेती है तो निष्कर्ष यह निकलेगा कि पति ही उसे परेशान करने के लिए जिम्मेदार है। न्यायालय ने मृतका के आत्महत्या पूर्व छोड़े गये नोट को महत्व देते हुये कहा कि इसकी भाषा से स्पष्ट है कि वह असहाय स्थिति में थी और उसे इससे निकलने का कोई अन्य रास्ता नहीं सूझा था। न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या पूर्व लिखा गया नोट सारी स्थिति को बयां नहीं करता और इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतका अपने विवाह से खुश थी।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दहेज हत्या के मामले में पति की दोषसिद्धी और सात साल की सजा बरकरार रखते हुये कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि दुर्भाग्य से हमारे समाज में दहेज हत्या की समस्या अभी भी बरकरार है और यह विशेष अध्ययन का विषय बन चुका है।
न्यायालय ने दहेज हत्या के इस मामले में ‘समता’ के आधार पर सह अभियुक्त मां और भाई की तरह ही पति को भी बरी करने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया। न्यायालय ने कहा कि दूसरे रिश्तेदारों की तुलना में पति का मामला एकदम अलग है। न्यायालय ने कहा कि पति की जिम्मेदारी पत्नी की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही नहीं है बल्कि उससे अपेक्षा की जाती है कि दूसरे रिश्तेदारों की तुलना में वह अपनी पत्नी की स्थिति बेहतर तरीके से समझेगा।
न्यायाधीशों ने कहा कि यदि पत्नी दहेज की खातिर पति और उसके परिवार के असंतुष्ट होने के कारण खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर लेती है तो निष्कर्ष यह निकलेगा कि पति ही उसे परेशान करने के लिए जिम्मेदार है। न्यायालय ने मृतका के आत्महत्या पूर्व छोड़े गये नोट को महत्व देते हुये कहा कि इसकी भाषा से स्पष्ट है कि वह असहाय स्थिति में थी और उसे इससे निकलने का कोई अन्य रास्ता नहीं सूझा था। न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या पूर्व लिखा गया नोट सारी स्थिति को बयां नहीं करता और इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतका अपने विवाह से खुश थी।
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