क्यों वीरु, युवी और भज्जी को नहीं मिली विश्वकप 2015 की टीम में जगह?
मुंबई : विश्वकप 2015 का आगाज अगले वर्ष फरवरी में होगा. इससे पहले भारत ने अपनी टीम के संभावित खिलाड़ियों में से 30 का चयन कर लिया है. कल चयनकर्ताओं ने संदीप पाटिल के नेतृत्व में इन खिलाड़ियों का चयन किया. 30 संभावित खिलाड़ियों में उन पांच सीनियर खिलाड़ियों को जगह नहीं मिली है, जो भारतीय क्रिकेट के दिग्गज तो माने ही जाते हैं, विश्वकप 2011 जिताने में भी उनकी अहम भूमिका रही थी.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, जहीर खान और हरभजन सिंह का भारतीय क्रिकेट जगत में अमूल्य योगदान है. इनके योगदान को भूल पाना असंभव है. लेकिन क्रिकेट के मैदान में जब एक मैच खेला जाता है, तो वहां पर योगदान नहीं, वर्तमान प्रदर्शन मायने रखता है. खिलाड़ियों के वर्तमान प्रदर्शन के आधार पर ही टीम को जीत या हार मिलती है.
हर खिलाड़ी से यह अपेक्षा होती है कि वह टीम की जीत के लिए खेलेगा, क्योंकि अगर टीम नहीं जीतती है, तो खिलाड़ी का योगदान कोई मायने नहीं रखता है. इस दृष्टिकोण से हमारे पांचों सीनियर खिलाड़ी विगत कुछ वर्षों से प्रदर्शन के आधार पर पिछड़ते जा रहे हैं. घरेलू क्रिकेट में भी उनका प्रदर्शन स्तरीय नहीं रहा है.
बात अगर युवराज सिंह की करें, तो वे अब 32 वर्ष के हो गये हैं. कैंसर से उबरने के बाद उनका प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा. ट्वेंटी-20 वर्ल्डकप में उनकी धीमी बल्लेबाजी के कारण टीम को हार का मुख देखना पड़ा. 2011 वर्ल्डकप के बाद इन्होंने मात्र 19 वनडे मैच खेले हैं.
वीरेंद्र सहवाग अब 36 वर्ष के हो चुके हैं. पिछले दो वर्ष में वे सिर्फ दो वनडे मैच में ही भारतीय टीम में जगह बना सके हैं. घरेलू क्रिकेट में भी उनका प्रदर्शन फ्लॉप रहा है. फिल्डिंग भी सही नहीं कर पा रहे हैं.
गौतम गंभीर ने पिछले दो वर्षों में सिर्फ आठ मैच खेले हैं. इन मैचों में उन्होंने 20 की औसत से रन बनाये. शतक की बात तो दूर मात्र एक अर्धशतक ही जड़ पाये. गंभीर ने 33 वर्ष पूरे कर लिये हैं. जहीर खान कभी भारतीय गेंदबाजी की जान हुआ करते थे. उनके प्रदर्शन पर टीम की जीत-हार टिकी रहती थी.
लेकिन 36 वर्ष पूरे करने के बाद उनकी गेंदबाजी में वह कौशल नजर नहीं आ रहा है. पिछले दो साल में एक भी वनडे नहीं खेल पाये हैं. फिल्डिंग भी कमजोर है और फिटनेस की समस्या से भी ग्रसित हैं. हरभजन सिंह की उम्र 34 वर्ष हो चुकी है. पिछले वर्ल्डकप के बाद से मात्र तीन मैचों में ही भारतीय टीम का हिस्सा बन पाये हैं. फिटनेस की समस्या तो है ही, प्रदर्शन भी लगातार गिरता जा रहा है. घरेलू क्रिकेट में भी फ्लॉप रहे हैं.
इस स्थिति में सिर्फ वरीयता के कारण इन्हें टीम में जगह देना संभवत: मैच खेलने से पहले हार को आमंत्रण देना है. ऐसा कहने का यह आशय कतई नहीं है कि देश इन दिग्गजों के योगदान को भूल चुका है. देश आज भी वीरेंद्र सहवाग के शॉट की खूबसूरती को भुला नहीं पाया है. लेकिन हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि हर खिलाड़ी का एक दौर होता है, उसके बाद उसे मैदान को अलविदा कहना ही पड़ता है.
सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा, रिकी पोंटिंग जैसे खिलाड़ी भी आजीवन नहीं खेल सके. ऐसे में अब हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वीरू, युवी,भज्जी, गंभीर और जहीर का युग अब समाप्त हो गया और युवाओं को मौका देने का वक्त आ गया है. इस स्थिति को सकारात्मक तरीके से लेने की जरूरत है, तभी भारतीय क्रिकेट जीवित रह पायेगा. आज महेंद्र सिंह धौनी का टीम में कोई विकल्प नहीं, लेकिन यह स्थिति और कुछ ही वर्षों के लिए है. धौनी अब टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी बन चुके हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, जहीर खान और हरभजन सिंह का भारतीय क्रिकेट जगत में अमूल्य योगदान है. इनके योगदान को भूल पाना असंभव है. लेकिन क्रिकेट के मैदान में जब एक मैच खेला जाता है, तो वहां पर योगदान नहीं, वर्तमान प्रदर्शन मायने रखता है. खिलाड़ियों के वर्तमान प्रदर्शन के आधार पर ही टीम को जीत या हार मिलती है.
हर खिलाड़ी से यह अपेक्षा होती है कि वह टीम की जीत के लिए खेलेगा, क्योंकि अगर टीम नहीं जीतती है, तो खिलाड़ी का योगदान कोई मायने नहीं रखता है. इस दृष्टिकोण से हमारे पांचों सीनियर खिलाड़ी विगत कुछ वर्षों से प्रदर्शन के आधार पर पिछड़ते जा रहे हैं. घरेलू क्रिकेट में भी उनका प्रदर्शन स्तरीय नहीं रहा है.
बात अगर युवराज सिंह की करें, तो वे अब 32 वर्ष के हो गये हैं. कैंसर से उबरने के बाद उनका प्रदर्शन पहले जैसा नहीं रहा. ट्वेंटी-20 वर्ल्डकप में उनकी धीमी बल्लेबाजी के कारण टीम को हार का मुख देखना पड़ा. 2011 वर्ल्डकप के बाद इन्होंने मात्र 19 वनडे मैच खेले हैं.
वीरेंद्र सहवाग अब 36 वर्ष के हो चुके हैं. पिछले दो वर्ष में वे सिर्फ दो वनडे मैच में ही भारतीय टीम में जगह बना सके हैं. घरेलू क्रिकेट में भी उनका प्रदर्शन फ्लॉप रहा है. फिल्डिंग भी सही नहीं कर पा रहे हैं.
गौतम गंभीर ने पिछले दो वर्षों में सिर्फ आठ मैच खेले हैं. इन मैचों में उन्होंने 20 की औसत से रन बनाये. शतक की बात तो दूर मात्र एक अर्धशतक ही जड़ पाये. गंभीर ने 33 वर्ष पूरे कर लिये हैं. जहीर खान कभी भारतीय गेंदबाजी की जान हुआ करते थे. उनके प्रदर्शन पर टीम की जीत-हार टिकी रहती थी.
लेकिन 36 वर्ष पूरे करने के बाद उनकी गेंदबाजी में वह कौशल नजर नहीं आ रहा है. पिछले दो साल में एक भी वनडे नहीं खेल पाये हैं. फिल्डिंग भी कमजोर है और फिटनेस की समस्या से भी ग्रसित हैं. हरभजन सिंह की उम्र 34 वर्ष हो चुकी है. पिछले वर्ल्डकप के बाद से मात्र तीन मैचों में ही भारतीय टीम का हिस्सा बन पाये हैं. फिटनेस की समस्या तो है ही, प्रदर्शन भी लगातार गिरता जा रहा है. घरेलू क्रिकेट में भी फ्लॉप रहे हैं.
इस स्थिति में सिर्फ वरीयता के कारण इन्हें टीम में जगह देना संभवत: मैच खेलने से पहले हार को आमंत्रण देना है. ऐसा कहने का यह आशय कतई नहीं है कि देश इन दिग्गजों के योगदान को भूल चुका है. देश आज भी वीरेंद्र सहवाग के शॉट की खूबसूरती को भुला नहीं पाया है. लेकिन हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि हर खिलाड़ी का एक दौर होता है, उसके बाद उसे मैदान को अलविदा कहना ही पड़ता है.
सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा, रिकी पोंटिंग जैसे खिलाड़ी भी आजीवन नहीं खेल सके. ऐसे में अब हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वीरू, युवी,भज्जी, गंभीर और जहीर का युग अब समाप्त हो गया और युवाओं को मौका देने का वक्त आ गया है. इस स्थिति को सकारात्मक तरीके से लेने की जरूरत है, तभी भारतीय क्रिकेट जीवित रह पायेगा. आज महेंद्र सिंह धौनी का टीम में कोई विकल्प नहीं, लेकिन यह स्थिति और कुछ ही वर्षों के लिए है. धौनी अब टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी बन चुके हैं.

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