ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में सभी 4 आरोपी दोषी करार
नई
दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने 39 साल पुराने तत्कालीन रेलमंत्री ललित
नारायण मिश्र हत्याकांड में चार आरोपियों को दोषी करार दिया। बिहार के
समस्तीपुर जिले में 2 जनवरी 1975 को एक नई रेलवे लाइन का उद्घाटन करने गए
मिश्र बम ब्लास्ट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और एक दिन बाद उनका निधन
हो गया था।
इस मामले में हिंदू पंथ 'आनंदमार्ग' के चार अनुयायी- गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत पर मुकदमा चल रहा था। बतौर रेलमंत्री मिश्र दो जनवरी, 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्रॉडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने के लिए समस्तीपुर गए थे। उसी दौरान वहां हुए बम विस्फोट में वह घायल हो गए थे। उन्हें दानापुर के रेलवे अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां अगले दिन उनका निधन हो गया था।
सीबीआई का आरोप है कि आनंदमार्ग के एक नेता की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से आनंदमार्ग के अनुयायियों ने मिश्र पर हमला करवाया था। सुप्रीम कोर्ट ने 1979 में मामला दिल्ली स्थानांतरित किया था। आरोपियों के खिलाफ 1981 में आरोप तय किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट निर्देशानुसार, निचली अदालत ने सितंबर 2012 से दैनिक आधार पर मामले की दलीलें सुननी शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की यह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें मुकदमा खत्म करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि मुकदमा सिर्फ इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि पिछले 37 साल में इस मामले का निपटरा नहीं हो सका है।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि ऐसी किसी भी अवांछित याचिका पर विचार न किया जाए, जो सिर्फ मुकदमे को लटकाने के लिए दायर की जाए। इस मामले में अभियोजन पक्ष के 160 गवाहों, अदालत के पांच गवाहों और 40 बचाव।
इस मामले में हिंदू पंथ 'आनंदमार्ग' के चार अनुयायी- गोपाल जी, रंजन द्विवेदी, संतोषानंद अवधूत और सुदेवानंद अवधूत पर मुकदमा चल रहा था। बतौर रेलमंत्री मिश्र दो जनवरी, 1975 को समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर ब्रॉडगेज रेलवे लाइन का उद्घाटन करने के लिए समस्तीपुर गए थे। उसी दौरान वहां हुए बम विस्फोट में वह घायल हो गए थे। उन्हें दानापुर के रेलवे अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां अगले दिन उनका निधन हो गया था।
सीबीआई का आरोप है कि आनंदमार्ग के एक नेता की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने के मकसद से आनंदमार्ग के अनुयायियों ने मिश्र पर हमला करवाया था। सुप्रीम कोर्ट ने 1979 में मामला दिल्ली स्थानांतरित किया था। आरोपियों के खिलाफ 1981 में आरोप तय किए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट निर्देशानुसार, निचली अदालत ने सितंबर 2012 से दैनिक आधार पर मामले की दलीलें सुननी शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की यह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें मुकदमा खत्म करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा था कि मुकदमा सिर्फ इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि पिछले 37 साल में इस मामले का निपटरा नहीं हो सका है।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि ऐसी किसी भी अवांछित याचिका पर विचार न किया जाए, जो सिर्फ मुकदमे को लटकाने के लिए दायर की जाए। इस मामले में अभियोजन पक्ष के 160 गवाहों, अदालत के पांच गवाहों और 40 बचाव।
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