राजनीतिक लोग बनें प्रेजिडेंट-वाइस प्रेजिडेंट
नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का मानना है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों पर नेताओं के अलावा कोई अन्य व्यक्ति आसीन नहीं होना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि लोकसभा और विधानसभा के पीठासीन अधिकारियों की भूमिका भी ऐसे ही देखी जानी चाहिए क्योंकि ऐसा भी संभव है कि गैर राजनीतिक व्यक्ति के 'अन्य क्षेत्र में प्रतिष्ठित और प्रतिभागी' होने के बावजूद उनके पास किसी नाजुक स्थिति को संतुलित करने के लिए अपेक्षित राजनैतिक परख नहीं हो। संसद के सदन चलाने और पीठासीन अधिकारियों के संदर्भ में इन संवैधानिक पदों के बारे में राष्ट्रपति के ये विचार दरअसल उनकी हाल ही में जारी किताब 'द ड्रामेटिक डेकेड: द इंदिरा गांधी इयर्स' का हिस्सा हैं।
अब तक एस राधाकृष्णन और एपीजे अब्दुल कलाम बिना किसी राजनैतिक करियर के देश का राष्ट्रपति पद संभाल चुके हैं। इसी तरह बिना किसी राजनैतिक पृष्ठभूमि के एस राधाकृष्णन, जीएस पाठक और न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्ला उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। प्रणब मुखर्जी ने उस स्थिति का हवाला दिया, जब कांग्रेस पार्टी और इंदिरा गांधी वर्ष 1980 में सत्ता में लौटकर आई थीं लेकिन, राज्यसभा में उनके पास बहुमत नहीं था। यह उस समय की बात है, जब सरकार ऊपरी सदन में अपने उस प्रस्ताव को गिरने नहीं देना चाहती थी, जिसके तहत कुछ विधानसभाओं को भंग करने की बात कही गई थी। सरकार का यह प्रस्ताव दरअसल जनता पार्टी के खिलाफ 'जैसे को तैसा' की नीति के आधार पर लाया गया था क्योंकि वर्ष 1977 में सत्ता में आने पर जनता पार्टी की सरकार ने भी कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारों को भंग कर दिया था।
संसद सिर्फ बहसबाजी का अड्डा नहीं
प्रणब कहते हैं कि सदन सिर्फ बहसबाजी का अड्डा नहीं है बल्कि एक राजनीतिक संस्थान है। उसे मौजूदा राजनीतिक ताकतों से निर्देशित होना चाहिए और राष्ट्र के क्रियाकलापों को पूरा करना चाहिए। वह कहते हैं, 'राज्यसभा को कामकाज में एक संतुलित भूमिका निभानी होती है। यह कोई सहायक चैंबर नहीं होता।'
राष्ट्रपति के स्वास्थ्य में सुधार
एंजियोप्लास्टी कराने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के स्वास्थ्य में आज सुधार हो रहा है। सेना के रिसर्च एंड रैफरल अस्पताल में उनका इलाज किया गया था और डॉक्टरों ने उनकी धमनी में रुकावट को दूर करने के लिए उनके कोरोनरी स्टेंट लगाया है। मुखर्जी (79) को पेट की समस्या और इससे जुड़ी बीमारी के कारण भर्ती कराया गया था जिसके बाद शनिवार को अस्पताल में उनकी कोरोनरी एंजियोप्लास्टी की गई थी। राष्ट्रपति के अधिकारिक टवीट्र हैंडल पर रविवार को कहा गया 'मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए सोचने, कामना करने और प्रार्थना करने वाले सभी लोगों का आभार, मेरे स्वास्थ्य में सुधार है और जल्द ही काम पर लौटने की उम्मीद कर रहा हूं।
अब तक एस राधाकृष्णन और एपीजे अब्दुल कलाम बिना किसी राजनैतिक करियर के देश का राष्ट्रपति पद संभाल चुके हैं। इसी तरह बिना किसी राजनैतिक पृष्ठभूमि के एस राधाकृष्णन, जीएस पाठक और न्यायमूर्ति एम हिदायतुल्ला उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। प्रणब मुखर्जी ने उस स्थिति का हवाला दिया, जब कांग्रेस पार्टी और इंदिरा गांधी वर्ष 1980 में सत्ता में लौटकर आई थीं लेकिन, राज्यसभा में उनके पास बहुमत नहीं था। यह उस समय की बात है, जब सरकार ऊपरी सदन में अपने उस प्रस्ताव को गिरने नहीं देना चाहती थी, जिसके तहत कुछ विधानसभाओं को भंग करने की बात कही गई थी। सरकार का यह प्रस्ताव दरअसल जनता पार्टी के खिलाफ 'जैसे को तैसा' की नीति के आधार पर लाया गया था क्योंकि वर्ष 1977 में सत्ता में आने पर जनता पार्टी की सरकार ने भी कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारों को भंग कर दिया था।
संसद सिर्फ बहसबाजी का अड्डा नहीं
प्रणब कहते हैं कि सदन सिर्फ बहसबाजी का अड्डा नहीं है बल्कि एक राजनीतिक संस्थान है। उसे मौजूदा राजनीतिक ताकतों से निर्देशित होना चाहिए और राष्ट्र के क्रियाकलापों को पूरा करना चाहिए। वह कहते हैं, 'राज्यसभा को कामकाज में एक संतुलित भूमिका निभानी होती है। यह कोई सहायक चैंबर नहीं होता।'
राष्ट्रपति के स्वास्थ्य में सुधार
एंजियोप्लास्टी कराने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के स्वास्थ्य में आज सुधार हो रहा है। सेना के रिसर्च एंड रैफरल अस्पताल में उनका इलाज किया गया था और डॉक्टरों ने उनकी धमनी में रुकावट को दूर करने के लिए उनके कोरोनरी स्टेंट लगाया है। मुखर्जी (79) को पेट की समस्या और इससे जुड़ी बीमारी के कारण भर्ती कराया गया था जिसके बाद शनिवार को अस्पताल में उनकी कोरोनरी एंजियोप्लास्टी की गई थी। राष्ट्रपति के अधिकारिक टवीट्र हैंडल पर रविवार को कहा गया 'मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए सोचने, कामना करने और प्रार्थना करने वाले सभी लोगों का आभार, मेरे स्वास्थ्य में सुधार है और जल्द ही काम पर लौटने की उम्मीद कर रहा हूं।
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