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आतंकी हाफिज सईद की धमकी, भारत को बर्बाद कर देंगे

नई दिल्ली। भारी मतदान से बौखलाए आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर में सिलसिलेवार आतंकी हमले किए हैं। सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा गया एक आतंकी पाकिस्तानी नागरिक कारी इसरार है। वो लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर था। वही लश्कर, जिसका मुखिया हाफिज सईद।

हाफिज सईद मुंबई हमले का गुनहगार है, भारत का मोस्ट वांटेड है, लेकिन पाकिस्तान की आंखों का तारा। हाफिज सईद पर नवाज शरीफ कितने मेहरबान हैं ये इससे जाहिर होता है कि लाहौर में हाफिज की रैली के लिए पाकिस्तान ने स्पेशल ट्रेन चलाई है। भारत ने कहा है कि ये आतंक को सरकारी मान्यता देने की तरह है। आतंक की पटरी पर दौड़ती हाफिज की इसी जेहादी ट्रेन की हकीकत आपको बताने जा रहे हैं।

एक तरफ लाहौर में हाफिज सईद की जेहादी ट्रेन, रैली में कश्मीर के चुनाव के खिलाफ हाफिज का जहर, दूसरी तरफ कश्मीर में आतंकी हमले हुए। एक दो नहीं लगातार चार हमले। साफ है कि ये साजिश जम्मू-कश्मीर के चुनावों में आम कश्मीरियों की जबरदस्त भागीदारी से बौखलाए पाकिस्तान और उसकी आतंक की मशीनरी ने रची है। आतंक की इस मशीनरी का सबसे बड़ा इंजन है हाफिज सईद और लश्कर-ए-तैयबा। हाफिज मुंबई हमले का मास्टरमाइंड है।

कश्मीर में हुए ताजा हमलों का भी मास्टरमाइंड वही है, क्योंकि सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में श्रीनगर में मारा गया लश्कर-ए-तैयबा का टॉप कमांडर कारी इसरार पाकिस्तान का नागरिक है। जानकारों का मानना है कि कश्मीर में विधानसभा चुनावों में मतदाताओं की लंबी-लंबी लाइनें नजर आने लगी हैं, लोकतंत्र में जनता की इस भागीदारी से पाकिस्तान और हाफिज जैसे उसके मोहरों के होश उड़ गए हैं।

मुंबई पर 26-11 अटैक से लेकर कश्मीर तक हो रहे हमलों के पीछे हाफिज सईद ही है। वो हाफिज जिसे पाकिस्तानी फौज और ISI अपनी साजिशों को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल करती है। मंसूबा है-जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को रोकना, लेकिन कश्मीर के लोगों ने चुनाव में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। अब हाफिज सईद को नाकाम होने का डर सताने लगा है।

पाक को अपनी आतंक की फैक्ट्री बंद होने की डर सताता है। लिहाजा, उसने लाहौर में बड़ी रैली कर फिर से आतंक का रिक्रूटमेंट कैंप लगा दिया है। इस रिक्रूटमेंट कैंप में पाकिस्तान के कोने-कोने से लोग पहुंचे हैं। साजिश को आसान बनाने के लिए पाकिस्तान ने अपनी सरकारी मशीनरी को भी झोंक दिया है। हाफिज की रैली तक लोगों को लाने के लिए कराची और हैदराबाद जैसे शहरों से लाहौर तक चलाई जा रही है स्पेशल ट्रेन-जो हकीकत में हैं आतंक की जेहादी ट्रेन।

लाहौर के मिनार-ए-पाकिस्तान में हुई रैली में हाफिज ने कश्मीर में हो रहे चुनाव के खिलाफ जहर उगला। पाकिस्तान की शरीफ सरकार उसे रोकने के बजाए बढ़ावा दे रही है। जबकि अमेरिका ने भी हाफिज पर 1 करोड़ का इनाम रखा है। अमेरिका लश्कर ए तैयबा को ही नहीं बल्कि समाजिक संगठन के तौर पर उसका मुखौटा रहे जमात उद-दावा को भी आतंकी संगठन घोषित कर चुका है।

अमेरिकी ही नहीं दुनिया के तमाम देश हाफिज को आतंकी घोषित कर चुके हैं। लेकिन पाकिस्तान की कान पर जूं तक नहीं रेंग रही। मुंबई पर 26-11 के हमले की जांच में ऐसे कई सबूत और सुराग मिले जो साफ कह रहे थे कि हाफिज सईद ही हमले का मास्टरमाइंड है।

26-11 के हमले के बाद भारत ने जमात पर संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंध लगाने की गुजारिश करते हुए आरोप लगाया था कि ' हाफिज सईद और लश्कर-ए-तैयबा एक ही हैं। पाकिस्तान में जमात-उद-दावा के 2,500 दफ्तर और 11 मकतबों के जरिए आतंकी गतिविधियों का संचालन और आतंकियों तैयार करना, चिंता की बड़ी बात है'।

दुनिया भर में 26-11 के पाकिस्तानी कनेक्शन पर हो हल्ला हुआ तो पाकिस्तान ने दिखावे के लिए हाफिज को दो बार नजरबंद करने के बाद आजाद भी कर दिया। हाफिज के प्रत्यार्पण के लिए इंटरपोल से रेड कार्नर नोटिस जारी होने के बावजूद साल 2009 में लाहौर हाईकोर्ट हाफिज के खिलाफ सभी मामलों को खारिज कर चुका है। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि हाफिज न आतंकी है, और न ही जमात-उद-दावा प्रतिबंधित संगठन है। इसी क्लीन चिट के बहाने लाहौर में आतंक की पटरी पर आज भी दौड़ रही है हाफिज की जेहादी ट्रेन।

पाकिस्तान का मोहरा है हाफिज

एक तरफ पाकिस्तान ये रोना रोता रहता है कि भारत जानबूझ कर बातचीत नहीं करना चाहता ताकि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो। दूसरी तरफ रिश्ते बिगाड़ने के लिए वो परदे के पीछे से हाफिज सईद जैसे आतंकियों को मोहरे की तरह इस्तेमाल करता है। इसमें कोई शक नहीं है कि हाफिज जैसे खूंखार आतंकियों का एक ही मकसद है, भारत में आतंक फैलाना।

मोदी सरकार का शपथ ग्रहण गवाह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते थे कि पाकिस्तान से रिश्तों में सुधार हो, लेकिन लाहौर में हाफिज सईद के लिए स्पेशल ट्रेन चला कर पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि रिश्ते सुधारने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। बेशक भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर एक बड़ा मुद्दा है-लेकिन रिश्तों में सुधार के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा है हाफिज सईद।

प्रधानमंत्री मोदी के सत्ता संभालने के पहले से ही हाफिज सईद चाहता था कि दोनों देशों में रिश्ते सामान्य न होने पाएं। इसीलिए उसने एक खौफनाक साजिश रची थी। PM मोदी के शपथ ग्रहण से 3 दिन पहले 23 मई 2014 को अफगानिस्तान के हेरात में भारतीय वाणिज्यिक दूतावास गोलियों और धमाकों से दहल गया। दूतावास में मौजूद आईटीबीपी के 23 जवानों ने जान की बाजी लगा कर चार हमलावर आतंकियों को ही नहीं मारा बल्कि एक बड़ी साजिश भी नाकाम कर दी।

दरअसल, मोदी के शपथ ग्रहण से ठीक पहले हुए हमले का मकसद दूतावास के कर्मचारियों को बंधक बना कर, IC-814 हाईजैक जैसा संकट पैदा करना था। हेरात हमले के एक महीने बाद अमेरिका ने अपने स्तर पर की गई जांच के बाद ये साफ किया है कि इस हमले का जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा था। वो आतंकी संगठन जिसका मोस्ट वांटेड चेहरा है हाफिज सईद।

अब चुनाव के मौके पर कश्मीर में हो रहे आतंकी हमलों में भी लश्कर ए तैयबा का ही हाथ है, मुठभेड़ में एक लश्कर कमांडर मारा जा चुका है। दरअसल, रिश्तों को पटरी पर लाने के लिए पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे के समाधान को अघोषित शर्त बना रखा है। परदे के पीछे से वो न सिर्फ हाफिज जैसे आतंकी को हमले के लिए उकसाता है, बल्कि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को भी मोहरा बनाता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तीन महीने के भीतर ही साफ कर दिया कि बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकता।

अगस्त में भारत ने सचिव स्तर की वार्ता तब रद्द कर दी थी, जब भारत की नाखुशी के बावजूद पाकिस्तान के हाई कमिश्नर ने अलगाववादी नेताओं से बात की। नेपाल में हुए सार्क सम्मेलन में मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर नरमी नहीं दिखाई। लिहाजा यहां नवाज शरीफ से शुरू में हाथ तक नहीं मिले। बाद में हाथ मिले तो ये सिर्फ रस्म अदायगी बन कर रह गई, जबकि पाकिस्तान नें मंशा जताई थी कि वो बातचीत चाहता है। लेकिन हाफिज सईद की रैली और चुनाव के मौके पर कश्मीर में लगातार हो रहे हमलों के बाद मोदी सरकार का रुख और कड़ा हो चुका है।

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