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100 साल से लग रहा 'भूतों-प्रेतों' का मेला

भोपाल। भले ही लोग इसे अंधविश्वास कहें, लेकिन बैतूल जिले से करीब 42 किलोमीटर दूर चिचौली तहसील के गांव मलाजपुर में हर साल मकर मकर संक्रांति की पहली पूर्णिमा से 'भूतों का मेला' शुरू होता है, जो महीनेभर चलता है। इस बार यह मेला 5 जनवरी से शुरू हुआ। ऐसी मान्यता है कि 1770 में गुरु साहब बाबा नाम के एक संत ने यहां जीवित समाधि ली थी। कहा जाता है कि संत चमत्कारी थे और भूत-प्रेत को वश में कर लेते थे। बाबा की याद में ही करीब 100 साल से यह मेला लगता आ रहा है।

जिन पर बुरी छाया, वे लगाते हैं उल्टी परिक्रमा..
मेले में आने वाले भूत-प्रेत के साये से प्रभावित लोग समाधि स्थल की उल्टी परिक्रमा लगाते हैं। कई बार इस मेले को लेकर विवाद हुए। इसे अंधविश्वास के चलते बंद कराने के प्रयास किए गए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मेले में देशभर से लोग पहुंचते हैं। इस बार प्रतिदिन 5000 लोगों के आने की संभावना जताई गई है। यहां पहुंचने वालों में ग्रामीणों की संख्या बहुत अधिक होती है।

उल्लेखनीय है कि मप्र के  कई आदिवासियों खासकर गोंड, भील एवं कोरकू जनजातियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी से टोटका, झाड़ फूंक एवं भूतप्रेत-चुड़ैल सहित अनेक ऐसे रीति-रिवाज निवारण प्रक्रिया चली आ रही है। बैतूल आदिवासी बाहुल्य जिला है।

ऐसा होता है दृश्य...
किसी के हाथ में जंजीर बंधी है, तो किसी के पैरों में बेडिय़ां बंधी है। कोई नाच रहा है, तो कोई सीटियां बजाते हुए चिढ़ा रहा है। लोग कहते हैं कि ये वे लोग है, जिन पर 'भूत' सवार हैं।
लोग भले ही यकीन न करें, लेकिन यह सच है कि मेले में भूत-प्रेतों के अस्तित्व और उनके असर को खत्म करने का दावा किया जाता है। यहां के पुजारी लालजी यादव बुरी छाया से पीड़ित लोगों के बाल पकड़कर जोर से खींचते हैं। पुजारी कई बार झाड़ा भी लगाते हैं। यहां लंबी कतार में खड़े होकर लोग सिर से भूत-प्रेत का साया हटवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते देखे जा सकते हैं।

गुड़ से तौला जाता है...
मान्यता है कि, जो पीड़ित ठीक हो जाते हैं, उसे यहां गुड़ से तौला जाता है। यहां हर साल टनों गुड़ इकट्ठा हो जाता है, जो यहां आने वाले लोगों को प्रसाद के तौर पा बांटा जाता है। कहा जाता है कि, यहां इतनी मात्रा में गुड़ जमा होने के बावजूद मक्खियां या चीटिंयां नहीं दिखाई देतीं। लोग इसे गुरु साहब बाबा का चमत्कार मानते हैं।

कुत्ते भी आरती में होते हैं शामिल
समाधि परिक्रमा करने से पहले स्नान करना पड़ता है। यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यक्ति जैसे-जैसे परिक्रमा करता है, वैसे-वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनि में अपनी आवाज मिलाते है। इसको लेकर महंत कहते है कि यह बाबा का आशीष है। इस मेले में श्रद्धालुओं के रूकने की व्यवस्था जनपद पंचायत चिचोली तथा महंत करते हैं।

पूर्णिमा की रात होती है महत्वपूर्ण
ऐसी धारणा है कि जिस भी प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति को छोडऩे के बाद उसके शरीर में समाहित प्रेत बाबा की समाधि के एक दो चक्कर लगाने के बाद अपने आप उसके शरीर से निकल कर पास के बरगद के पेड़ पर उल्टा लटक जाता है।  बाद में उसकी आत्मा को शांति मिल जाती है।
 
क्या कहते हैं साइकोलॉजिस्ट
हालांकि कई साइकोलॉजिस्ट भूत-प्रेत के अस्तित्व को सिरे से खारिज करते हैं। उनके अनुसार 'मेले में आने वाले लोग निश्चित ही किसी न किसी समस्या से ग्रस्त हैं। उनकी परेशानी मानसिक भी हो सकती है और शारीरिक भी। मानसिक रोग से ग्रस्त परिजनों को लोग यहां ले आते हैं। दरअसल किसी भी रोग के इलाज में विश्वास महत्वपूर्ण होता है। इलाज पर विश्वास होता है तो फायदा भी जल्दी मिलता है।'

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