साल 2015 में कई मशहूर हस्तियां जो ये दुनिया छोड़ गई
रसिपुरम कृष्णस्वाणी अय्यर लक्ष्मण
आम आदमी को पहचान देने वाले और कॉमनमैन को नायक बनाने वाले भारत के सबसे मशहूर कार्टूनिस्ट रसिपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण (आर.के. लक्ष्मण) का 94 साल की उम्र में 26 जनवरी 2015 को पुणे में निधन हो गया। लक्ष्मण का जन्म 24 अक्तूबर 1921 में मैसूर में हुआ। बचपन से ही उन्हें कार्टून और चित्रकारी का शौक था। घर की दीवारों से लेकर ज़मीन यहां तक कि पीपल के पत्ते कुछ भी लक्ष्मण के कलम और चॉक से अछूते नहीं रहे। लक्ष्मण की ज़िंदादिल शख्शियत का एक और पहलू था कि वह बचपन में अपने मोहल्ले में शरारतों के लिए मशहूर थे और उनके कारनामों से प्रेरित होकर उनके भाई मशहूर लेखक आर.के. नारायण ने कई कहानियां लिखीं जो बहुत लोकप्रिय हुईं।
लक्ष्मण ने मैसूर यूनीवर्सिटी से आर्ट की डिग्री ली और फिर हुई उस सफर की शुरुआत जिसने भारत को उसका सबसे लोकप्रिय कार्टूनिस्ट दिया। चेक शर्ट पहने आर.के. लक्ष्मण का ये आम आदमी रोजमर्रा के जीवन, आम आदमियों की परेशानियां और नेताओं पर कटाक्ष कसने का कोई मौका नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे ये कार्टून भारत के आम आदमी की आवाज के रूप में देखा जाने लगा। लक्ष्मण को उनकी कला के लिये पद्म-विभूषण और रेमन मैग्सेसे अवार्ड से भी नवाजा गया।
पत्रकार विनोद मेहता
वरिष्ठ पत्रकार और आउटलुक के संस्थापक संपादक विनोद मेहता का 8 मार्च 2015 को नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 73 वर्ष के थे और नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे। मेहता का जन्म 31 मई 1942 में रावलपिंडी में हुआ था। उनका बचपन लखनऊ में बीता। बीए पास करने के बाद उन्होंने कई तरह के कामों में अपने हाथ आज़माए।
उन्होंने 'डेबोनेयर' पत्रिका से अपने पत्रकारिता के करियर की शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने द पायनियर, संडे ऑब्ज़र्वर और आउटलुक का संपादन किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित जीके रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सिस्टर निर्मला जोशी
मदर टेरेसा के बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रमुख पद की जिम्मेदारी संभालने वाली सिस्टर निर्मला जोशी का 23 जून 2015 की सुबह निधन हो गया। वह 81 साल की थीं। मदर टेरेसा के निधन से छह महीने पहले 13 मार्च, 1997 को सिस्टर निर्मला को मिशनरीज ऑफ चैरिटी का सुपीरियर जनरल चुना गया था। सिस्टर निर्मला का जन्म 1934 में एक नेपाली मूल के हिंदू-ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में अफसर थे। पटना में ईसाई मिशनारियों द्वारा उनको शिक्षा दी गई। पर वे 24 साल की उम्र तक वह हिन्दू बनी रहीं। जब उन्होंने मदर टेरेसा के काम के बारे में जाना तो रोमन कैथलिक धर्म अपना लिया।
सिस्टर निर्मला को राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल था तथा उन्होंने वकालत में खास प्रक्षिक्षण भी ली थी। वे उस मंडली के कुछ पहले सिस्टरों में से थी जिनको विदेश में मिशन के लिए पनामा भेजा गया था। 1976 में उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के मननशील शाखा की शुरुआत की तथा उसके प्रधान बने रहे। सन 2009 में भारत सरकार द्वारा सिस्टर निर्मला को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 25 मार्च 2009 को वे अपने पद से सेवानिवृत्त हुई और जर्मन महिला सिस्टर मैरी प्रेमा ने उनका पद सम्भाला।
शाह अब्दुल्ला बिन अब्दुलअजीज
सऊदी अरब के सुल्तान शाह अब्दुल्ला का 23 जनवरी 2015 को 90 साल की उम्र में निधन हो गया है। सुल्तान अब्दुल्ला साल 2005 में अपने सौतेले भाई शाह फहद की मौत के बाद सत्ता में आए थे। सुल्तान अब्दुल्ला को देश में सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा देने और चुनावों में महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाने के लिए जाना जाता है। शाह ने अपने शासनकाल में वाशिंगटन के साथ ऐतिहासिक तौर पर करीबी संबंध बनाए रखा, लेकिन उन्होंने इन संबंधों को सऊदी अरब की शर्तों पर स्थापित करने की कोशिश की जिसके चलते संबंधों में टकराव हुआ।
इसाइल-फिलस्तीन के विवाद पर वाशिंगटन द्वारा अपनी मध्यस्थता में कोई हल न निकाल पाने के कारण वह लगातार निराश रहे। शाही अदालत के बयान के अनुसार, उनके 79 वर्षीय छोटे भाई शहजादे सलमान को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया। अब्दुल्ला का जन्म वर्ष 1924 में रियाद में हुआ था। वह सउदी अरब के संस्थापक शाह अब्दुल-अजीज अल सऊद के एक दर्जन पुत्रों में से एक थे। अब्दुल अजीज के सभी बेटों की तरह अब्दुल्ला को भी प्रारंभिक शिक्षा ही मिली थी।
अच्छी कदकाठी वाले शाह अब्दुल्ला को राज्य के रेगिस्तानी इलाके नेज्ड में रहना ज्यादा पसंद था। वहां वह घुड़सवारी और बाजों का शिकार करते थे। उनकी सख्त परवरिश की झलक उस समय मिली थी, जब उन्हें युवावस्था में तीन दिन जेल में बिताने पड़े थे। यह सजा उन्हें उनके पिता ने दी थी क्योंकि वह एक आगंतुक को बैठने के लिए जगह देने की खातिर अपने स्थान से नहीं उठे थे। यह बडूइन (अरब में एक जातीय समूह) मेहमाननवाजी का उल्लंघन था।
मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई 2015 को 83 साल की उम्र में शिलॉन्ग में निधन हो गया। कलाम एक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे। इसी दौरान वह अचेत होकर गिर गए और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उनकी मृत्यु हो गई। तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे अब्दुल कलाम भारत के जाने-माने मिसाइल वैज्ञानिक थे और वे 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे।
'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर अब्दुल कलाम ने सोमवार 27 जुलाई की सुबह 11.30 बजे आख़िरी ट्वीट किया था, 'शिलॉन्ग जा रहा हूं। लिवेबल प्लेनेट अर्थ पर आईआईएम में एक कार्यक्रम में भाग लेने।' उनका भारत की मिसाइल टेकनोलॉजी में अहम योगदान था और वे पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल के जनक माने जाते हैं। एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ज्वॉइन किया। उन्हें 1997 में भारत रत्न से नवाजा गया।
माना जाता है कि भारत के मिसाइल कार्यक्रम के पीछे मद्रास इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलोजी से एयरोनोटिक्स इंजीनियरिंग करने वाले कलाम की ही सोच थी और वाजपेयी के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पूर्व राष्ट्रपति ने 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण में निर्णायक भूमिका निभाई। बतौर राष्ट्रपति कलाम ने छात्रों से संवाद के हर मौके का इस्तेमाल किया और खासतौर से स्कूली बच्चों को उन्होंने बड़े सपने देखने को कहा ताकि वे जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल कर सकें। पूर्व राष्ट्रपति ने विवाह नहीं किया था। वह वीणा बजाते थे और कर्नाटक संगीत में उनकी खास रुचि थी। वह जीवन पर्यंत शाकाहारी रहे।
विहिप नेता अशोक सिंघल
विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के जनक अशोक सिंघल का 17 नवंबर 2015 मंगलवार को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। वह 89 वर्ष के थे। विहिप के मुख्य संरक्षक अशोक सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 में आगरा में हुआ था। उनके पिता सरकारी अधिकारी थे। अशोक सिंघल ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से 1950 में मैटलर्जिकल इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री हासिल की थी। इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक में शामिल हो गए। उन्होंने 1980 में दिल्ली और हरियाणा में प्रांत प्रचारक के रूप में भूमिका निभाई। इसके बाद 1984 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में प्रतिनियुक्त किया गया। वे 20 साल से विश्व हिन्दू परिषद के प्रमुख थे।
लंबे समय तक विश्व हिन्दू परिषद के जनरल सेक्रेटरी रहे। दलितों के साथ तिरस्कार की भावना और उसके चलते हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी अशोक सिंघल ने अहम भूमिका निभाई। अशोक सिंघल की पहल से ही दलितों के लिए अलग से 200 मंदिर बनाए गए और उन्हें हिन्दू होने की अहमियत समझाई। हिंदुओं को एक जुट करने में अशोक सिंघल ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी। अशोक सिंघल ने साल 1984 में धर्म संसद का आयोजन कर हिंदुओं को एकजुट किया। इसी धर्म संसद में साधु संतों की बैठक के बाद राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव पड़ी थी। इस आंदोलन से भी अशोक सिंघल काफी लंबे समय से जुड़े रहे। बाबरी ढांचा गिराने के मामले में भी अशोक सिंघल आरोपी थे। अशोक सिंघल हिन्दुस्तानी संगीत में गायक भी थे।
आम आदमी को पहचान देने वाले और कॉमनमैन को नायक बनाने वाले भारत के सबसे मशहूर कार्टूनिस्ट रसिपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण (आर.के. लक्ष्मण) का 94 साल की उम्र में 26 जनवरी 2015 को पुणे में निधन हो गया। लक्ष्मण का जन्म 24 अक्तूबर 1921 में मैसूर में हुआ। बचपन से ही उन्हें कार्टून और चित्रकारी का शौक था। घर की दीवारों से लेकर ज़मीन यहां तक कि पीपल के पत्ते कुछ भी लक्ष्मण के कलम और चॉक से अछूते नहीं रहे। लक्ष्मण की ज़िंदादिल शख्शियत का एक और पहलू था कि वह बचपन में अपने मोहल्ले में शरारतों के लिए मशहूर थे और उनके कारनामों से प्रेरित होकर उनके भाई मशहूर लेखक आर.के. नारायण ने कई कहानियां लिखीं जो बहुत लोकप्रिय हुईं।
लक्ष्मण ने मैसूर यूनीवर्सिटी से आर्ट की डिग्री ली और फिर हुई उस सफर की शुरुआत जिसने भारत को उसका सबसे लोकप्रिय कार्टूनिस्ट दिया। चेक शर्ट पहने आर.के. लक्ष्मण का ये आम आदमी रोजमर्रा के जीवन, आम आदमियों की परेशानियां और नेताओं पर कटाक्ष कसने का कोई मौका नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे ये कार्टून भारत के आम आदमी की आवाज के रूप में देखा जाने लगा। लक्ष्मण को उनकी कला के लिये पद्म-विभूषण और रेमन मैग्सेसे अवार्ड से भी नवाजा गया।
पत्रकार विनोद मेहता
वरिष्ठ पत्रकार और आउटलुक के संस्थापक संपादक विनोद मेहता का 8 मार्च 2015 को नई दिल्ली में निधन हो गया। वह 73 वर्ष के थे और नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे। मेहता का जन्म 31 मई 1942 में रावलपिंडी में हुआ था। उनका बचपन लखनऊ में बीता। बीए पास करने के बाद उन्होंने कई तरह के कामों में अपने हाथ आज़माए।
उन्होंने 'डेबोनेयर' पत्रिका से अपने पत्रकारिता के करियर की शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने द पायनियर, संडे ऑब्ज़र्वर और आउटलुक का संपादन किया। पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित जीके रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सिस्टर निर्मला जोशी
मदर टेरेसा के बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी की प्रमुख पद की जिम्मेदारी संभालने वाली सिस्टर निर्मला जोशी का 23 जून 2015 की सुबह निधन हो गया। वह 81 साल की थीं। मदर टेरेसा के निधन से छह महीने पहले 13 मार्च, 1997 को सिस्टर निर्मला को मिशनरीज ऑफ चैरिटी का सुपीरियर जनरल चुना गया था। सिस्टर निर्मला का जन्म 1934 में एक नेपाली मूल के हिंदू-ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में अफसर थे। पटना में ईसाई मिशनारियों द्वारा उनको शिक्षा दी गई। पर वे 24 साल की उम्र तक वह हिन्दू बनी रहीं। जब उन्होंने मदर टेरेसा के काम के बारे में जाना तो रोमन कैथलिक धर्म अपना लिया।
सिस्टर निर्मला को राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल था तथा उन्होंने वकालत में खास प्रक्षिक्षण भी ली थी। वे उस मंडली के कुछ पहले सिस्टरों में से थी जिनको विदेश में मिशन के लिए पनामा भेजा गया था। 1976 में उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के मननशील शाखा की शुरुआत की तथा उसके प्रधान बने रहे। सन 2009 में भारत सरकार द्वारा सिस्टर निर्मला को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 25 मार्च 2009 को वे अपने पद से सेवानिवृत्त हुई और जर्मन महिला सिस्टर मैरी प्रेमा ने उनका पद सम्भाला।
शाह अब्दुल्ला बिन अब्दुलअजीज
सऊदी अरब के सुल्तान शाह अब्दुल्ला का 23 जनवरी 2015 को 90 साल की उम्र में निधन हो गया है। सुल्तान अब्दुल्ला साल 2005 में अपने सौतेले भाई शाह फहद की मौत के बाद सत्ता में आए थे। सुल्तान अब्दुल्ला को देश में सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा देने और चुनावों में महिलाओं को वोट का अधिकार दिलाने के लिए जाना जाता है। शाह ने अपने शासनकाल में वाशिंगटन के साथ ऐतिहासिक तौर पर करीबी संबंध बनाए रखा, लेकिन उन्होंने इन संबंधों को सऊदी अरब की शर्तों पर स्थापित करने की कोशिश की जिसके चलते संबंधों में टकराव हुआ।
इसाइल-फिलस्तीन के विवाद पर वाशिंगटन द्वारा अपनी मध्यस्थता में कोई हल न निकाल पाने के कारण वह लगातार निराश रहे। शाही अदालत के बयान के अनुसार, उनके 79 वर्षीय छोटे भाई शहजादे सलमान को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया। अब्दुल्ला का जन्म वर्ष 1924 में रियाद में हुआ था। वह सउदी अरब के संस्थापक शाह अब्दुल-अजीज अल सऊद के एक दर्जन पुत्रों में से एक थे। अब्दुल अजीज के सभी बेटों की तरह अब्दुल्ला को भी प्रारंभिक शिक्षा ही मिली थी।
अच्छी कदकाठी वाले शाह अब्दुल्ला को राज्य के रेगिस्तानी इलाके नेज्ड में रहना ज्यादा पसंद था। वहां वह घुड़सवारी और बाजों का शिकार करते थे। उनकी सख्त परवरिश की झलक उस समय मिली थी, जब उन्हें युवावस्था में तीन दिन जेल में बिताने पड़े थे। यह सजा उन्हें उनके पिता ने दी थी क्योंकि वह एक आगंतुक को बैठने के लिए जगह देने की खातिर अपने स्थान से नहीं उठे थे। यह बडूइन (अरब में एक जातीय समूह) मेहमाननवाजी का उल्लंघन था।
मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई 2015 को 83 साल की उम्र में शिलॉन्ग में निधन हो गया। कलाम एक कार्यक्रम में भाषण दे रहे थे। इसी दौरान वह अचेत होकर गिर गए और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उनकी मृत्यु हो गई। तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे अब्दुल कलाम भारत के जाने-माने मिसाइल वैज्ञानिक थे और वे 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे।
'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर अब्दुल कलाम ने सोमवार 27 जुलाई की सुबह 11.30 बजे आख़िरी ट्वीट किया था, 'शिलॉन्ग जा रहा हूं। लिवेबल प्लेनेट अर्थ पर आईआईएम में एक कार्यक्रम में भाग लेने।' उनका भारत की मिसाइल टेकनोलॉजी में अहम योगदान था और वे पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल के जनक माने जाते हैं। एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ज्वॉइन किया। उन्हें 1997 में भारत रत्न से नवाजा गया।
माना जाता है कि भारत के मिसाइल कार्यक्रम के पीछे मद्रास इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलोजी से एयरोनोटिक्स इंजीनियरिंग करने वाले कलाम की ही सोच थी और वाजपेयी के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पूर्व राष्ट्रपति ने 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण में निर्णायक भूमिका निभाई। बतौर राष्ट्रपति कलाम ने छात्रों से संवाद के हर मौके का इस्तेमाल किया और खासतौर से स्कूली बच्चों को उन्होंने बड़े सपने देखने को कहा ताकि वे जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल कर सकें। पूर्व राष्ट्रपति ने विवाह नहीं किया था। वह वीणा बजाते थे और कर्नाटक संगीत में उनकी खास रुचि थी। वह जीवन पर्यंत शाकाहारी रहे।
विहिप नेता अशोक सिंघल
विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के जनक अशोक सिंघल का 17 नवंबर 2015 मंगलवार को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। वह 89 वर्ष के थे। विहिप के मुख्य संरक्षक अशोक सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 में आगरा में हुआ था। उनके पिता सरकारी अधिकारी थे। अशोक सिंघल ने बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से 1950 में मैटलर्जिकल इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री हासिल की थी। इंजीनियरिंग की डिग्री के बाद वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक में शामिल हो गए। उन्होंने 1980 में दिल्ली और हरियाणा में प्रांत प्रचारक के रूप में भूमिका निभाई। इसके बाद 1984 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में प्रतिनियुक्त किया गया। वे 20 साल से विश्व हिन्दू परिषद के प्रमुख थे।
लंबे समय तक विश्व हिन्दू परिषद के जनरल सेक्रेटरी रहे। दलितों के साथ तिरस्कार की भावना और उसके चलते हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी अशोक सिंघल ने अहम भूमिका निभाई। अशोक सिंघल की पहल से ही दलितों के लिए अलग से 200 मंदिर बनाए गए और उन्हें हिन्दू होने की अहमियत समझाई। हिंदुओं को एक जुट करने में अशोक सिंघल ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी। अशोक सिंघल ने साल 1984 में धर्म संसद का आयोजन कर हिंदुओं को एकजुट किया। इसी धर्म संसद में साधु संतों की बैठक के बाद राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव पड़ी थी। इस आंदोलन से भी अशोक सिंघल काफी लंबे समय से जुड़े रहे। बाबरी ढांचा गिराने के मामले में भी अशोक सिंघल आरोपी थे। अशोक सिंघल हिन्दुस्तानी संगीत में गायक भी थे।
रामायण को सुरों से सजाने वाले मशहूर संगीतकार रवींद्र जैन नहीं रहे
जाने-माने संगीतकार रवींद्र जैन का आज मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। रवींद्र जैन ने कई फिल्मों में संगीत भी दिया। उन्होंने टीवी जगत के मशहूर धारावाहिक रामायण का संगीत भी दिया था।बतौर संगीतकार फिल्म 'अंखियों के झरोखे से' में दिया गया उनका संगीत काफी मशहूर हुआ था। उन्होंने कई फिल्मों के गीत भी लिखे थे।
उनका जन्म 28 फरवरी, 1944 को अलीगढ़ में संस्कृत के प्रकांड पंडित और आयुर्वेद विज्ञानी इंद्रमणि जैन की संतान के रूप में हुआ। 70 के दशक में उन्होंने बतौर बॉलीवुड संगीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने फिल्म 'चोर मचाए शोर' (1974), 'गीत गाता चल' (1975), 'चितचोर' (1976), 'अखियों के झरोखों से' (1978) सरीखी हिंदी फिल्मों में संगीत दिया था। उनका संगीत काफी लोकप्रिय हुआ।
जाने-माने संगीतकार रवींद्र जैन का आज मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। रवींद्र जैन ने कई फिल्मों में संगीत भी दिया। उन्होंने टीवी जगत के मशहूर धारावाहिक रामायण का संगीत भी दिया था।बतौर संगीतकार फिल्म 'अंखियों के झरोखे से' में दिया गया उनका संगीत काफी मशहूर हुआ था। उन्होंने कई फिल्मों के गीत भी लिखे थे।
उनका जन्म 28 फरवरी, 1944 को अलीगढ़ में संस्कृत के प्रकांड पंडित और आयुर्वेद विज्ञानी इंद्रमणि जैन की संतान के रूप में हुआ। 70 के दशक में उन्होंने बतौर बॉलीवुड संगीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने फिल्म 'चोर मचाए शोर' (1974), 'गीत गाता चल' (1975), 'चितचोर' (1976), 'अखियों के झरोखों से' (1978) सरीखी हिंदी फिल्मों में संगीत दिया था। उनका संगीत काफी लोकप्रिय हुआ।
हिंदी फिल्मों के मशहूर चरित्र अभिनेता सईद जाफरी का निधन
हिंदी और ब्रिटिश फिल्मों का जाना-पहचाना नाम सईद जाफरी अब हमारे बीच नहीं रहे। जाफरी ने 15 नवंबर 2015 को दुनिया को अलविदा कह दिया। वो 86 बरस के थे।
जाफरी ने कई यादगार फिल्मों में दिल छू लेने वाले रोल किये थे। जिनमें 'गांधी','दिल' , 'अजूबा', 'खुदगर्ज', 'मासूम'. 'शतरंज के खिलाड़ी' जैसी फिल्मों में यादगार रोल किये थे।
थियेटर से अपने करियर की शुरूआत करने वाले सईद जाफरी ने दूरदर्शन की हिट सीरीज 'तंदूरी नाइट्स' में भी काम किया था। हिंदी सिनेमा की इस यादगार हस्ती को वनइंडिया परिवार भी श्रद्धांजलि देता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना करता है।
हिंदी और ब्रिटिश फिल्मों का जाना-पहचाना नाम सईद जाफरी अब हमारे बीच नहीं रहे। जाफरी ने 15 नवंबर 2015 को दुनिया को अलविदा कह दिया। वो 86 बरस के थे।
जाफरी ने कई यादगार फिल्मों में दिल छू लेने वाले रोल किये थे। जिनमें 'गांधी','दिल' , 'अजूबा', 'खुदगर्ज', 'मासूम'. 'शतरंज के खिलाड़ी' जैसी फिल्मों में यादगार रोल किये थे।
थियेटर से अपने करियर की शुरूआत करने वाले सईद जाफरी ने दूरदर्शन की हिट सीरीज 'तंदूरी नाइट्स' में भी काम किया था। हिंदी सिनेमा की इस यादगार हस्ती को वनइंडिया परिवार भी श्रद्धांजलि देता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना करता है।
अभिनेत्री साधना का निधन
मशहूर अभिनेत्री साधना का मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में शुक्रवार को निधन हो गया. 74 साल की साधना कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं.साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था। साधना की शादी जाने-माने फिल्म निर्देशक रामकृष्ण नैयर से हुई थी। फिल्म ‘लव इन शिमला’ से ही साधना के हेयर स्टाइल ने खूब चर्चा बटोरी थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान साधना और रामकृष्ण नैयर को एक दूसरे से मोहब्बत हुई और दोनों ने 7 मार्च 1966 को शादी कर ली।
साधना फिल्म से जुड़े कार्यक्रमों में शरीक होना पसंद नहीं था। करीना कपूर की मां बबिता साधना की चचेरी बहन थीं। साधना ने फिल्म में मेरा साया, राजकुमार, वो कौन थी समेत करीब 35 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा था।
उन्होंने 'आरज़ू', 'मेरे मेहबूब', 'लव इन शिमला', 'मेरा साया', 'वक़्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार', 'असली नकली', 'हम दोनों' जैसी कई मशहूर हिंदी फ़िल्मों में काम किया था.साधना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. उनके नाम पर 'साधना कट' हेयरस्टाइल बेहद मशहूर हुआ था.
मशहूर अभिनेत्री साधना का मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में शुक्रवार को निधन हो गया. 74 साल की साधना कुछ दिनों से बीमार चल रही थीं.साधना का जन्म 2 सितंबर 1941 को पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में हुआ था। साधना की शादी जाने-माने फिल्म निर्देशक रामकृष्ण नैयर से हुई थी। फिल्म ‘लव इन शिमला’ से ही साधना के हेयर स्टाइल ने खूब चर्चा बटोरी थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान साधना और रामकृष्ण नैयर को एक दूसरे से मोहब्बत हुई और दोनों ने 7 मार्च 1966 को शादी कर ली।
साधना फिल्म से जुड़े कार्यक्रमों में शरीक होना पसंद नहीं था। करीना कपूर की मां बबिता साधना की चचेरी बहन थीं। साधना ने फिल्म में मेरा साया, राजकुमार, वो कौन थी समेत करीब 35 फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा था।
उन्होंने 'आरज़ू', 'मेरे मेहबूब', 'लव इन शिमला', 'मेरा साया', 'वक़्त', 'आप आए बहार आई', 'वो कौन थी', 'राजकुमार', 'असली नकली', 'हम दोनों' जैसी कई मशहूर हिंदी फ़िल्मों में काम किया था.साधना का पूरा नाम साधना शिवदासानी था. उनके नाम पर 'साधना कट' हेयरस्टाइल बेहद मशहूर हुआ था.
सुभाष घीसिंग
सुभाष घीसिंग का 29 जनवरी 2015 को दिल्ली में 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया। गोरखा आंदोलन से सम्बद्ध गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) सशक्त दल के ये संस्थापक थे।सुभाष घीसिंग पश्चिम बंगाल के गोरखा आंदोलन के सबसे सशक्त हस्ताक्षर रहे थे। यह आंदोलन राज्य में नेपाली मूल के गोरखा वासियों के लिए पृथक राज्य की मांग से सम्बन्धित है। 1980 में सुभाष घीसिंग ने गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) की स्थापना की थी। इन्होंने पृथक गोरखालैण्ड (Gorkhaland) की मांग के चलते दार्जिलिंग जिले में वर्ष 1986 से 1988 के बीच हिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया था।
इस मुद्दे को 1988 में अस्थाई रूप से तब सुलझा लिया गया था जब पश्चिम बंगाल के अधीन ही एक स्वायत्त निकाय दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (DGHC) का गठन किया गया था। सुभाष घीसिंग इसके पहले अध्यक्ष थे तथा वे 1988 से 2008 तक इसके अध्यक्ष रहे थे। लेकिन 2008 में इनके अपने सहयोगी बिमल गुरुंग ने इनको इस पद से हटा दिया था तथा अपने खुद के संगठन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJMM) की स्थापना भी कर ली। इसके चलते सुभाष घीसिंग के GNLF की लोकप्रियता भी लगभग समाप्त हो गई और गुरुंग गोरखा आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ता बन कर उभरे।
सुभाष घीसिंग का 29 जनवरी 2015 को दिल्ली में 78 वर्ष की आयु में निधन हो गया। गोरखा आंदोलन से सम्बद्ध गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) सशक्त दल के ये संस्थापक थे।सुभाष घीसिंग पश्चिम बंगाल के गोरखा आंदोलन के सबसे सशक्त हस्ताक्षर रहे थे। यह आंदोलन राज्य में नेपाली मूल के गोरखा वासियों के लिए पृथक राज्य की मांग से सम्बन्धित है। 1980 में सुभाष घीसिंग ने गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) की स्थापना की थी। इन्होंने पृथक गोरखालैण्ड (Gorkhaland) की मांग के चलते दार्जिलिंग जिले में वर्ष 1986 से 1988 के बीच हिंसात्मक आंदोलन का संचालन किया था।
इस मुद्दे को 1988 में अस्थाई रूप से तब सुलझा लिया गया था जब पश्चिम बंगाल के अधीन ही एक स्वायत्त निकाय दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (DGHC) का गठन किया गया था। सुभाष घीसिंग इसके पहले अध्यक्ष थे तथा वे 1988 से 2008 तक इसके अध्यक्ष रहे थे। लेकिन 2008 में इनके अपने सहयोगी बिमल गुरुंग ने इनको इस पद से हटा दिया था तथा अपने खुद के संगठन गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJMM) की स्थापना भी कर ली। इसके चलते सुभाष घीसिंग के GNLF की लोकप्रियता भी लगभग समाप्त हो गई और गुरुंग गोरखा आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ता बन कर उभरे।
हुकुम सिंह
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मास्टर हुकुम सिंह का साल के आरंभ में गुड़गांव के एक प्राइवेट अस्पताल में 26 फरवरी को निधन हो गया था।
वे कुछ दिनों से बीमार थे। जब उनका निधन हुआ तब वे 89 साल के थे। किसान, शिक्षक और मजदूर नेता रहे हुकुम सिंह का जन्म भिवानी के चरखी दादरी में हुआ था। वह जुलाई 1990 से मार्च 1991 तक जनता दल सरकार में राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले तीन बार वह चरखी दादरी से विधायक चुने जा चुके थे।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मास्टर हुकुम सिंह का साल के आरंभ में गुड़गांव के एक प्राइवेट अस्पताल में 26 फरवरी को निधन हो गया था।
वे कुछ दिनों से बीमार थे। जब उनका निधन हुआ तब वे 89 साल के थे। किसान, शिक्षक और मजदूर नेता रहे हुकुम सिंह का जन्म भिवानी के चरखी दादरी में हुआ था। वह जुलाई 1990 से मार्च 1991 तक जनता दल सरकार में राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इससे पहले तीन बार वह चरखी दादरी से विधायक चुने जा चुके थे।
राम सुंदर दास
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ जदयू नेता रामसुंदर दास का निधन 6 मार्च हो गया था। वे 95 साल के थे। रामसुंदर दास अप्रैल 1979 से फरवरी 1980 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से दास ने दिग्गज नेता और लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान को हराया था। वह 2014 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर से जदयू के उम्मीदवार थे।
रामसुंदर दास 1977 से 1980 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। इसके पहले 1968 से 1977 तक वह विधानपरिषद के भी सदस्य थे। वे विधानसभा में अनुसूचित जाति और जन जाति कल्याण समिति के सभापति तथा विशेषाधिकार समिति के भी सभापति रहे। वे 1991 तथा 2009 में सांसद भी निर्वाचित हुए थे। आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले रामसुंदर दास ने हिंद मजदूर सभा के साथ-साथ कई संगठनों के अध्यक्ष व सदस्य के रूप में काम किया था।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ जदयू नेता रामसुंदर दास का निधन 6 मार्च हो गया था। वे 95 साल के थे। रामसुंदर दास अप्रैल 1979 से फरवरी 1980 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से दास ने दिग्गज नेता और लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान को हराया था। वह 2014 के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर से जदयू के उम्मीदवार थे।
रामसुंदर दास 1977 से 1980 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। इसके पहले 1968 से 1977 तक वह विधानपरिषद के भी सदस्य थे। वे विधानसभा में अनुसूचित जाति और जन जाति कल्याण समिति के सभापति तथा विशेषाधिकार समिति के भी सभापति रहे। वे 1991 तथा 2009 में सांसद भी निर्वाचित हुए थे। आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले रामसुंदर दास ने हिंद मजदूर सभा के साथ-साथ कई संगठनों के अध्यक्ष व सदस्य के रूप में काम किया था।
जेबी पटनायक
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं असम के पूर्व राज्यपाल जानकी बल्लभ पटनायक का 21 अप्रैल की सुबह तिरूपति में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। पटनायक ओडिशा के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। साहित्य एवं संस्कृति के प्रति उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाने वाले बहुमुखी व्यक्तित्व के पटनायक का जन्म 3 जनवरी 1927 को हुआ था। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पटनायक 1980 में मुख्यमंत्री बने और 1989 तक पद पर बरकरार रहे। 1995 में वह फिर मुख्यमंत्री बने और 1999 तक पद पर रहे। पटनायक को 2009 में असम का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। वह केंद्र में भी मंत्री रहे।खुर्दा हाईस्कूल से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद पटनायक ने 1947 में उत्कल विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि हासिल की और 1949 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर किया।
महीप सिंह
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ महीप सिंह का 24 नवंबर को दोपहर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 85 वर्षीय महीप सिंह मौत से पहले करीब एक सप्ताह अस्पताल में भर्ती रहे।
डॉ. महीप सिंह का जन्म 15 अगस्त 1930 को हुआ था। महीप सिंह का परिवार पाकिस्तान के झेलम से उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आकर बस गया था। वे हिंदी के लेखक और स्तंभकार के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने चार दशकों तक संचेतना पत्रिका का संपादन किया था।
डॉ. महीप सिंह ने लगभग 125 कहानियां लिखीं। ‘काला बाप गोरा बाप', ‘पानी और पुल', ‘सहमे हुए', ‘लय', ‘धूप की उंगलियों के निशान', ‘दिशांतर और कितने सैलाब' जैसी कहानियां हिन्दी कहानी के मील के पत्थर हैं। उनके उपन्यास ‘यह भी नहीं' और ‘अभी शेष है' काफी चर्चित रहे। आपका उपन्यास पंजाबी, गुजराती, मलयालम व अंग्रेज़ी में अनुदित हुआ।
उन्होंने अनेक कहानी-संग्रह लिखे जिनमें 'सुबह के फूल', 'उजाले के उल्लू', 'घिराव', 'कुछ और कितना', 'मेरी प्रिय कहानियां', 'समग्र कहानियां', 'चर्चित कहानियां', 'कितने सम्बंध', 'इक्यावन कहानियां', 'धूप की उंगलियों के निशान सम्मिलित हैं।
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं असम के पूर्व राज्यपाल जानकी बल्लभ पटनायक का 21 अप्रैल की सुबह तिरूपति में निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। पटनायक ओडिशा के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। साहित्य एवं संस्कृति के प्रति उल्लेखनीय योगदान के लिए जाने जाने वाले बहुमुखी व्यक्तित्व के पटनायक का जन्म 3 जनवरी 1927 को हुआ था। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पटनायक 1980 में मुख्यमंत्री बने और 1989 तक पद पर बरकरार रहे। 1995 में वह फिर मुख्यमंत्री बने और 1999 तक पद पर रहे। पटनायक को 2009 में असम का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। वह केंद्र में भी मंत्री रहे।खुर्दा हाईस्कूल से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद पटनायक ने 1947 में उत्कल विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि हासिल की और 1949 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर किया।
महीप सिंह
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ महीप सिंह का 24 नवंबर को दोपहर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 85 वर्षीय महीप सिंह मौत से पहले करीब एक सप्ताह अस्पताल में भर्ती रहे।
डॉ. महीप सिंह का जन्म 15 अगस्त 1930 को हुआ था। महीप सिंह का परिवार पाकिस्तान के झेलम से उत्तर प्रदेश के उन्नाव में आकर बस गया था। वे हिंदी के लेखक और स्तंभकार के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने चार दशकों तक संचेतना पत्रिका का संपादन किया था।
डॉ. महीप सिंह ने लगभग 125 कहानियां लिखीं। ‘काला बाप गोरा बाप', ‘पानी और पुल', ‘सहमे हुए', ‘लय', ‘धूप की उंगलियों के निशान', ‘दिशांतर और कितने सैलाब' जैसी कहानियां हिन्दी कहानी के मील के पत्थर हैं। उनके उपन्यास ‘यह भी नहीं' और ‘अभी शेष है' काफी चर्चित रहे। आपका उपन्यास पंजाबी, गुजराती, मलयालम व अंग्रेज़ी में अनुदित हुआ।
उन्होंने अनेक कहानी-संग्रह लिखे जिनमें 'सुबह के फूल', 'उजाले के उल्लू', 'घिराव', 'कुछ और कितना', 'मेरी प्रिय कहानियां', 'समग्र कहानियां', 'चर्चित कहानियां', 'कितने सम्बंध', 'इक्यावन कहानियां', 'धूप की उंगलियों के निशान सम्मिलित हैं।
शरद जोशी
शरद जोशी का महाराष्ट्र में किसान आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है। जोशी का जन्म 3 सिंतबर 1935 को सतारा में हुआ था। उन्होंने सन 1977 में विदेश की नौकरी छोड़ किसानों के लिए संगठन शुरू किया था। नासिक में प्याज आंदोलन की वजह से उनका किसान संगठन सूर्खियों में आया था। उन्होंने मजदूर संघ का भी काम किया था। इतना ही नहीं असंगठित क्षेत्र के लोगों को संगठित करने का काम भी उन्होंने किया। सन 2004 से 2008 तक वें भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वे राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं।
उन्होंने सन 1958 से भारतीय पोस्टल सर्विस ज्वाइन की थी। पिन कोड बनाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने किसानों को लेकर किताबें लिखी हैं। उनकी हिंदी में लिखी हुई किताबें 'भारत की समस्याएं' और 'स्वाधीनता क्यों नाकाम हो गई' काफी फेमस हुई थी। 12 दिसंबर को वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए।
शरद जोशी का महाराष्ट्र में किसान आंदोलन में बड़ा योगदान रहा है। जोशी का जन्म 3 सिंतबर 1935 को सतारा में हुआ था। उन्होंने सन 1977 में विदेश की नौकरी छोड़ किसानों के लिए संगठन शुरू किया था। नासिक में प्याज आंदोलन की वजह से उनका किसान संगठन सूर्खियों में आया था। उन्होंने मजदूर संघ का भी काम किया था। इतना ही नहीं असंगठित क्षेत्र के लोगों को संगठित करने का काम भी उन्होंने किया। सन 2004 से 2008 तक वें भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा वे राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं।
उन्होंने सन 1958 से भारतीय पोस्टल सर्विस ज्वाइन की थी। पिन कोड बनाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने किसानों को लेकर किताबें लिखी हैं। उनकी हिंदी में लिखी हुई किताबें 'भारत की समस्याएं' और 'स्वाधीनता क्यों नाकाम हो गई' काफी फेमस हुई थी। 12 दिसंबर को वह इस दुनिया को छोड़कर चले गए।
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