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दलित...भारत में ताला लगा दो लेकिन



हरिजन एक्ट के दुष्प्रयोग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ़्तारी पर क्या रोक लगा दी।बँट गया ये भारत। गुरुर तले दब गया।भारत बंद के नाम पर 2 अप्रैल को भयानक उत्पात मचाया गया।लोगों की दुकाने जला दी गयी मेहनत से खड़ी की गयी दुकानों को यूँ ही फूंक दिया।छोटे छोटे बच्चों पर तक वार किया गया,पुलिस चौकिया जला दी और पीट पीट कर युवकों की हत्याए कर दी गयी।आखिर कब तक चलेगा ये जाति के गुरुर का खेल।कब तक अपने घमंड में दूसरों की हत्याएं करते रहोगे।ग्वालियर में जिस युवक की बेरहमी से हत्या कर दी गयी।क्या उस माँ को उसका बेटा वापस दे सकते हो। क्या मिला ये दंगा करके, अपनी संख्या की शक्ति का प्रदर्शन कर लिया।अपनी जाति के बारे में सभी ने सोचा लेकिन इस देश के बारें में किसी ने नही सोचा और यहां के लोगो और सार्वजानिक संपत्ति को तबाह करने चल पड़े। भारत को खतरा बाहरी देशो से कम इस देश के नागरिको से ज्यादा है।वे नागरिक जो समुदायों में इस कदर बंटे हुए है कि भारत को ही तबाह करने पर जुटे हुए है।लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल गयी है जनता का जनता के लिए जनता द्वारा कुशासन। अब्राहिम लिंकन की आत्मा को बहुत ठेस पहुच रही होगी जनता का ऐसा शासन देख कर। भारत अपनी महानता के लिए जाना जाता था लेकिन अब आंदोलनों और दंगा फसादों के लिए कुख्यात होने लगा है।कभी राम मंदिर के नाम पर लड़ते है,कभी फ़िल्म के नाम पर लड़ते है,कभी जाति के नाम पर लड़ते है।आखिर जाति का इतना गुरुर क्यों है जो इंसानियत को शर्मसार कर दे।यहां हर एक समुदाय अपनी जाति के लिए लड़ता है।क्या कोई भारत की रक्षा के लिए लड़ना पसंद करेगा। sc st एक्ट में संशोधन क्यों किया गया इससे सब वाकिफ है लेकिन फिर भी अनजान बनते है।अपने हक़ की दुहाई देते है।ये वे लोग है जो एक ओर मंदिरों में प्रवेश निषेध पर हक़ मांगते है और दूसरी ओर एक इंसान (भीम राव आंबेडकर) को पूजते है और सनातन हिन्दू धर्म के भगवान हनुमान जी के ऊपर जूता चढ़ाते है।लानत है ऐसे लोगो पर जो धर्म और आस्था का अपमान करते है। 2 अप्रैल की हिंसा के बाद सवर्ण भी 10 अप्रैल को भारत बंद की तयारी में जुट गए है।अब देखना ये है कि वाकई वर्ण व्यवस्था निराधार है या उसमे कर्म और गुण का कोई महत्त्व है या नही।यदि सवर्णों ने भी हत्याएं और हिंसा की तो यह साफ़ हो जायेगा कि वर्ण व्यवस्था में पायदान ऊँचा होने से फर्क नही पड़ता यदि कर्म निचले पायदान के हों तो। इन्हें रोक कोई नही सकता।जब 2 अप्रैल की हिंसा रोकी न जा सकी,हत्याएं नही रोकी जा सकी तो सवर्णों का आंदोलन भी नही रोक जा सकता।आखिर देश के भिन्न भिन्न समुदायों ने ठेका ले रखा है अपना अपना गुरुर जाहिर करने का तो फिर इसका एक ही समाधान है कि भारत को बार बार बंद करने से बेहतर है एक बार में ताला लगा दिया जाए और ऐसे देश में जाकर बस जाएँ जहाँ न धर्म हो,न जाति हो,और न वो भगवान हो जिनके ऊपर जूता चढाने की नौबत आ गयी। यदि अपने देश से इतना भी प्रेम नही है तो यही रास्ता अपनाया जाए।लेकिन भारत की तरह सभी देश एक जैसे नही होते जो दुनिया भर के शरणार्थियों को पनाह दे।भारत को यूँ ही महान नही कहा जाता।भारत ने महानता अर्जित की है अपने आदर्शों से जो हर किसी देश के बस की बात नही है।


- शिवांगी पुरोहित, स्वत्रंत लेखक

ये लेखक के निजी विचार है

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