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अटल राग : वाह! रे सियासी महकमे



बड़ा कष्ट होता है कि आज सब इस भीषण दुराचार को राजनैतिक जुगत का साधन बना बैठे हैं..।
जिस ओर देखा जाए तो सब अखबारों में अपनी लोकप्रियता दिखाने के लिए कैण्डल मार्च कर रहे ,तो कोई पुतला फूँक रहा है।

कोई आज ज्ञापन सौंप रहा है और उसको सोशल मीडिया पर बढ़-चढ़कर अपलोड करने की होड़ लगाए हुए है...
बकायदे बैनर बनवाकर कैण्डल मार्च की योजना का प्रचार किया जा रहा है ...

मैं देख रहा हूँ लोग पीड़िता से मिलने फार्मेलिटी करने जा रहे और अपनी फोटोज अपलोड कर रहे हैं ..
लेकिन मैने किसी वजनदार व्यक्ति को नहीं सुना कि इस घटना के दोषी के साथ-साथ भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिए प्रशासनिक स्तर व  सत्तासीन सरकार के द्वारा कठोर कानून बनाया जाए ....

साथ-साथ इस प्रकार की होने वाली घटनाओं के पीछे के कारणों का विश्लेषण कर उन पर प्रभावी ढंग से सक्रियता निभाकर घटनाओं के मूल में व्याप्त जड़ को नष्ट करने के लिए कार्य किया जाए...

आज आवश्यकता है पीड़िता के परिवार की मदद के लिए आगे आना लेकिन कोई नहीं दिख रहा बस केवल और केवल ज्यादातर दिखावे का कार्य किया जा रहा है....
मैनें ऐसे किसी भी व्यक्ति या संस्था को नहीं देखा जो आज इन घटनाओं के विरुद्ध जनजागृति लाने का प्रयास करे जिससे इस प्रकार की अनैतिक घटनाएं न हों...
आज ज्यादातर लोगों को सियासी मुद्दा मिला है जिसे वे हर हाल में भुना रहे हैं इससे बड़ा दुर्भाग्य हम क्या कह सकते हैं...
कल तक मन्दसौर की घटना के लिए घड़ियाली आँसू दिखाए जा रहे थे सबको आकर अखबारों में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी थी और आज यही स्थिति सतना में निर्मित हो रही है...
आखिर मेरे सतना को हुआ क्या?
यह सब बर्दाश्त से बाहर है...
आज एक बच्ची फिर से खेलना बन्द कर दी उसकी मुस्कान छिन गई...
क्या लिखूँ विधर्मियों के लिए आखिर हमारी नैतिकता का पतन किस हद नीचे जाएगा....
आज सामाजिक ताना-बाना संस्कृति,सभ्यता,नैतिकता का पतन जिस प्रकार हो रहा उससे हम किस प्रकार का समाज व देश बनाना चाहते हैं...
आगामी पीढ़ी को हम क्या देकर जाना चाहते हैं ....
समस्या यही है कि हमारा संविधान लचीला है व हमें आरोपी या दोषी को सजा देने का अधिकार नहीं देता...
आरोपी पुलिस हिरासत में है ..
उसको तो फाँसी की सजा मिलनी ही चाहिए बाकी पुलिस किस प्रकार का व कितना कठोर आरोप उस पर तय करती है यह तो पुलिस के मर्ग कायमी पर निर्भर करता है....
विषय मुख्य यह है हमारी नैतिकता का पतन किस सीमा तक गिरेगा...
कब बहन-बेटियाँ अपने आपको सुरक्षित एवं सम्मानित महसूस करेंगी...
समाज में नैतिक शिक्षा व संस्कारों की घुट्टी पिलाने की आवश्यकता है...
क्योंकि नैतिकता के पतन को कोई सरकार दूर नहीं सकती..
यदि सामाजिक समस्याओं को दूर कर सकता है तो वह समाज ही होगा
हम किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं इसका आँकलन क्यों नहीं करते कि यदि यही सब मेरे घर की बहन या बेटी के साथ हुआ होता तो क्या सियासी विषय बनाकर इसे भुनाने का प्रयास करते...
आखिर!क्या सस्ती लोकप्रियता पाने का साधन मान लिए हैं ,शर्म कीजिए कि आप न्याय के लिए नहीं अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए आगे आ लहे हैं...
आपके समर्थकों द्वारा आपके जिन्दाबाद के नारे लगाए जाना ही आपकी सारी पोल खोल देते हैं...
क्या आपकी संवेदनाएँ.खत्म हो चुकी हैं..
कल कहीं आपको फिर कोई नया विषय मिल जाएगा उस पर आप अपनी लोकप्रियता बढ़ा लीजिएगा...
कुछ दिन बाद आप हमेशा की भाँति इस घटना को भी भूल जाएँगे और आपकी संवेदनाएँ फिर किसी दूसरे सियासी मुद्दे पर टिक जाएँगी..
कभी तो वास्तव में न्याय के लिए आगे आया कीजिए...

कृष्णमुरारी उरमलिया अटल
यह लेखक के निजी विचार हैं।

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