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पाठक की कलम से : ये हमारी गलतफहमी है कि देश में सरकारे आरक्षित वर्ग के कारण बनती है



ये हमारी गलतफहमी है कि देश में सरकारे आरक्षित वर्ग के कारण बनती हैं। जरूरत है तो देश की 70 सालों की राजनीतिक गतिविधियों पर चिंतन मनन करने की। स्थिति स्वतः ही स्पष्ट हो जाएगी।

1. 1977 में  संयुक्त विपक्षी दल की जनता पार्टी सरकार ने मंडल आयोग का गठन कर पिछड़ों के आरक्षण का रास्ता बनाया लेकिन 1980 के मध्यवती चुनाव में जनता पार्टी की करारी हार हुई ।

2. वी पी सिंह ने sc/st act और मंडल आयोग लागू किया लोग कहते हैं 22% से ज्यादा sc/st और 50% ज्यादा बिछड़े लोग है तो फिर देश में वी पी सिंह दुबारा प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सके उन्हें तो आरक्षित वर्ग का मसीहा होना चाहिए था जीवनपर्यंत भारत के स्थाई प्रधानमंत्री होते लेकिन उनका आज कोई नामलेवा नहीं है।

3. 1995 में कांग्रेस की पी वी नरसिम्भा राओ सरकार ने इंद्रा साहनी बनाम सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए 77 वा संविधान संशोधन पारित  किया और Sc/St वर्ग को जातिगत आधार पर पिछड़ा मानते हुए पदोन्नति में आरक्षण को पुनः लागू कर दिया इसका परिणाम 1996 में कांग्रेस की पराजय ।

4. भाजपा की अटल बिहारी सरकार ने सन 2000 में 81 वा एवं 82 वा और सन 2001 में 85 वा सविधान संशोधन कर sc/st वर्ग को नियुक्तियों में बैकलॉग व्ययवस्था, दक्षता में  छूट एवं आनुषंगिक वरीयता प्रदान कर आरक्षण व्यवस्था को और बजबूत किया और सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के छात्रों और युवाओ के भविष्य को अंधकार मय कर दिया। परिणाम  शाइनिंग इंडिया और फील गुड फैक्टर के बाद भी 2004 के आम चुनावों में भाजपा की हार हुई ।

5. 2002 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने #दलित_एजेंडा लागू करते हुए Sc/St वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण देने के नियम को स्वीकृति प्रदान कर दी परिणाम 2003 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी पराजय ।

6. सन 2006 में एम नागराजन बनाम सरकार प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटने हेतु कांग्रेस द्वारा पदोन्नति में आरक्षण को मजबूती से लागू करने के लिये सन 2012 में 117 वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा मे प्रस्तुत किया गया जो पास हो गया लेकिन जब बिल को लोकसभा में  प्रस्तुत किया तो भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के विरोध के  कारण लोकसभा में 117 वा संविधान संशोधन पारित नही हो सका और सरकार ने बिल वापस ले लिया और कांग्रेस के द्वारा दलितों के लिये इतने प्रयास के बावजूद भी 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस की अब तक कि सबसे बड़ी पराजय हुई और वो सदन में मुख्य विपक्षी दल होने का दर्जा भी नही प्राप्त कर पाई ।

7. 2014 से अब तक भाजपा शासित सरकारों और मोदी सरकार ने भी दलित तुस्टीकरण के कई कार्य किये हैं, जैसे शिवराज सिंह द्वारा कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नही कर सकता की चुनोती, बिहार में जदयू के सहयोग से निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करना, sc/st एक्ट की 23 धाराओं को बड़ा कर 47 कर देना, जिस 117 वे संविधान संशोधन विधयेक का विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने विरोध किया आज उसी विधेयक को लोकसभा में पास कराने का दलितों को आसवासन और अब जब sc/st एक्ट के दमनकारी प्रावधानों को पुनः स्थापित करना। जब sc/st act के कुछ प्रावधानों को देश की सर्वोच्चय अदालत द्वारा दमनकारी मानते हुए उसमे सिर्फ इतना संशोधन किया कि बिना जांच के किसी की भी गिरफ्तारी न हो और पर्याप्त जांच के पाश्चात्य ही किसी को गिरफ्तार किया जाये। अब मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को पलटते हुए अध्यादेश ले आई है और बहुत जल्द संसद में संविधान संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलटते हुए दमनकारी कानून को पारित कर दिया जाएगा अब मोदी सरकार की दलित तुष्टिकरण की नीति का क्या परिणाम आता है ये तो 2018 में तीन राज्यो में होने वाले विधानसभा चुनावों जंहा भाजपा की सरकारे है और 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावो के बाद ही पता चलेगा ।

लेकिन.... हमको सिर्फ हिम्मत करके इन स्थापित, व्यावसायिक, राजनीतिक दलों की मानसिकता से बाहर निकलकर आरक्षण विरोधी लोगों को बिना हार-जीत की परवाह किए समर्थन करना है और हम अपने उद्देश्य आरक्षण विहीन भारत की कल्पना को साकार करने में सफल हो जाएंगे ।



ये लेखक के निजी विचार हैं। इस लेख के लेखक प्रमोद प्रसंग परिहार सपाक्स संगठन के युवा विंग के प्रान्तीय सचिव है।

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