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मध्यप्रदेश में सपाक्स बिगाड़ सकता है राजनीतिक दलों का गणित, बहुत तेजी से उभर कर सामने आई है सपाक्स पार्टी




नई दिल्ली। पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश के चुनावों पर सबकी नजर टिकी हुई है। यहां इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है। केंद्र के स्तर पर भी दोनों ही दलों में कई बड़े नाम मध्यप्रदेश से आते हैं। बीजेपी जहां प्रदेश में सत्ता को बचाने की लड़ाई लड़ रही है तो वहीं कांग्रेस अपना वनवास खत्म करने की कोशिश में हैं। लेकिन इन दोनों के बीच प्रदेश में कुछ ऐसी छोटी पार्टियां हैं जो सत्ता बेशक ना हासिल कर पाए लेकिन उन्हें मिलने वाले वोट बीजेपी और कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। यही वजह थी कि कमलनाथ ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही बयान दिया था कि वोटों का बिखराव रोकने के लिए कांग्रेस मध्यप्रदेश में महागठबंधन बनाएगी। लेकिन पहले मायावती फिर अखिलेश और वाम दलों ने भी कांग्रेस से किनारा कर लिया। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी साथ लाने में कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली।

प्रदेश में हुए पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस धड़े के ये अलग-अलग दल 17 फीसदी तक वोट लेते आए हैं। इन दलों के उम्मीदवार खुद बेशक ना चुनाव जीते लेकिन जिताऊ प्रत्याशियों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं। प्रदेश की ऐसी सीटें जहां जीत का अंतर पांच हजार वोटों से कम रहा वहां इनकी मौजूदगी बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए परेशानी खड़ कर सकती है।

इस बार मध्यप्रदेश में सामान्य और पिछड़े वर्ग का संगठन 'सपाक्स' भी सपाक्स पार्टी के रूप में बहुत तेजी से उभर कर आई है जो कि इन सभी दलों को कड़ी टक्कर दे रही है।

सपाक्स पार्टी का मुख्य मुद्दा एट्रोसिटी एक्ट और प्रमोशन में आरक्षण हैं। इसी के साथ वह सियासत के अखाड़े में बीजेपी-कांग्रेस को चुनौती दे रही है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि- सपाक्स को कामयाबी कितनी मिलेगी? भावनात्मक रूप से सामान्य पिछड़ा वर्ग इन मुद्दों पर सपाक्स के साथ खड़ा है, परन्तु इस भावना को वोट में बदलना इतना आसान नहीं है, अलबत्ता... जीत-हार का तो पता नहीं, किन्तु एमपी विधानसभा चुनाव की सियासी समीकरण जरूर बिगाडे़गी सपाक्स! राजनीतिक जानकार पहली नजर में सपाक्स के कारण भाजपा का नुकसान देख रहे हैं, लेकिन नुकसान तो कांग्रेस को भी होगा? यह नुकसान, किसे? कितना? होता है, इसी पर निर्भर है सारी सियासी समीकरण!

वैसे तो चुनावी मैदान में बसपा, आम आदमी पार्टी आदि भी होंगे लेकिन ये दल कोई बहुत बड़ा फेरबदल कर पाएं, फिलहाल तो ऐसा लगता नहीं है? अभी भी मध्य प्रदेश में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है, यह बात अलग है कि जहां भाजपा-कांग्रेस में बीच कांटे की टक्कर है वहां सपाक्स, बसपा, आप आदि की छोटी गणित भी बड़ा बदलाव ला सकती है! खबरों पर भरोसा करें तो एमपी में एससी तकरीबन 18 प्रतिशत, एसटी लगभग 20 प्रतिशत ओबीसी 51 प्रतिशत है, लिहाजा सपाक्स के लिए संभावनाएं तो बेहतर हैं ।


अब 28 नंबम्बर को मतदान और उसके बाद 11 दिसंबर को मतगणना ही प्रत्याशियों के दिलों की धड़कने तेज करने वाली हैं।

2 comments

Unknown said...

जय सपाक्स विजय सपाक्स

Unknown said...

जय सपाक्स विजय सपाक्स

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