सपाक्स संस्था के प्रतिनिधि मंडल ने की मंत्री पी सी शर्मा से मुलाकात, 2 अप्रैल के केस वापस पर व्यक्त किया विरोध
भोपाल : सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी/ कर्मचारी संस्था (सपाक्सा) एवं सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था (सपाक्स समाज) के प्रतिनिधि मंडल ने आज सुबह मान मंत्री, विधि एवं विधाई कार्य, श्री पी सी शर्मा से मुलाकात कर सरकार के इस निर्णय पर विरोध व्यक्त किया कि वह 2 अप्रैल की हिंसा में आरोपी सभी व्यक्तियों के विरुद्ध दर्ज प्रकरण वापिस लेगी। श्री शर्मा ने इसे मीडिया का दुष्प्रचार बताया और स्पष्ट किया कि सरकार ने किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं बल्कि सभी वर्गों के व्यक्तियों के विरुद्ध विगत 15 वर्षों में राजनैतिक द्वेष के कारण प्रकरण दर्ज किए हैं उन्हें समाप्त करने का निर्णय लिया है।
संस्था ने अपनी अन्य मांगों को लेकर एक ज्ञापन भी उन्हें सौंपा। मान मंत्री ने सपाक्सा को मान्यता देने व पदोन्नति में बाधाओं को शीघ्र समाप्त करने पर भी गंभीरता पूर्वक विचार करने हेतु आश्वस्त किया। साथ ही यह भी कहा कि संगठन के साथ सभी बिंदुओं पर विस्तृत चर्चा के लिए वे शीघ्र अलग से बैठक करेंगे।
प्रतिनिधि मंडल में संस्था संस्थापक श्री अजय जैन, सचिव श्री राजीव खरे, उपाध्यक्ष श्री डी एस भदोरिया, कोषाध्यक्ष श्री राकेश नायक, श्री वी की शर्मा, श्री तिवारी, संस्थापक श्री बी एम सोनी, युवा इकाई अध्यक्ष श्री अभिषेक सोनी, सचिव श्री प्रसंग परिहार, मीडिया प्रभारी प्रवीण तिवारी व अन्य पदाधिकारी सम्मिलित थे।
प्रतिनिधि मंडल द्वारा मान मंत्री को अवगत कराया गया कि संगठन विगत कई वर्षों से बहुसंख्यक वर्ग के साथ हो रहे अन्याय से लड़ रहा है और पूर्व सरकार सदैव इन विषयों को नजरंदाज करती रही है। संगठन नई सरकार से अपेक्षा रखता है कि वह शीघ्र न्यायपूर्ण कार्यवाही करेगी।
सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स), आपके मंत्री पद के अहम दायित्व के निर्वहन के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करती है।
महोदय,
सपाक्स संस्था विगत लंबे समय से मप्र शासन के पदोन्नति में आरक्षण के गलत नियमों का विरोध करते हुए संघर्षरत है। शासन के इन नियमों के कारण उच्च पदों पर जहां एक वर्ग विशेष का आधिपत्य स्थापित हुआ है वहीं दूसरी ओर अन्य वर्गों के योग्य अधिकारी लंबी और समर्पित सेवा के बावजूद पदोन्नति से वंचित हैं।
मान उच्च न्यायालय द्वारा 30.04.2016 को शासन के पदोन्नति नियम खारिज किए जाने के बावजूद शासन द्वारा निर्णय का सम्मान न करते हुए मान सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई। अब विगत 3 वर्षों से प्रदेश में पदोन्नतियां पूरी तरह से बंद हैं और हजारों शासकीय सेवक बिना पदोन्नति का लाभ प्राप्त किए ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
शासन के एक पक्षपात पूर्ण निर्णय के कारण जहां पूरे तंत्र में एक असंतोष व्याप्त है वहीं दूसरी ओर तंत्र में वर्ग संघर्ष की धारणा बलवती हो चुकी है। इसका विपरीत प्रभाव न सिर्फ शासन को हो रहा है बल्कि जनसामान्य भी अब इस अन्याय से आंदोलित है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश भर में इस अन्याय के विरुद्ध अनेकों जन प्रदर्शन हुए हैं।
इसी कड़ी में कुछ महीनों पूर्व मान सर्वोच्च न्यायालय के एट्रोसिटी एक्ट में निश्चित किए गए दिशा निर्देशों के विरुद्ध जाकर अध्यादेश लाने के केंद्र सरकार के निर्णय ने इस खाई को और अधिक गहरा किया है। निश्चित रूप से इन अन्यायपूर्ण निर्णयों का प्रभाव प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से हाल ही में स्पष्ट रूप से देखने को भी मिला है।
हाल ही में मप्र की आपकी सरकार ने निर्णय लिया है कि वह विगत वर्ष 2 अप्रैल को मान सर्वोच्च न्यायालय के एट्रोसिटी एक्ट के संबंध में दिए गए निर्णय के विरोध में एक वर्ग विशेष ने सड़कों पर उतरकर जिस प्रकार हिंसक तांडव कर जन धन को हानि पहुंचाई उसके चिन्हित अपराधियों पर दर्ज प्रकरण वापिस लिए जाएंगे। यह एक भेदभाव पूर्ण और खतरनाक पहल है।
संस्था आपसे इस संबंध में न्याय करते हुए उचित निर्णय लेने की अपील करती है एवं निम्न मांगे पूर्ण करने की मांग करती है -
1 संस्था की मान्यता को दुर्भावनावश शासन स्तर पर रोका गया है, जबकि संस्था प्रदेश के लगभग दो तिहाई शासकीय सेवकों का प्रतिनिधित्व करती है। अनुरोध है संस्था को शासन की मान्यता अविलंब प्रदान की जावे।
2 प्रदेश में बाधित पदोन्नतियों को तत्काल प्रारंभ किया जावे। इस हेतु मान उच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार कार्यवाही करते हुए खाली पदों पर मान सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन कार्यवाही की शर्त के साथ पदोन्नतियां प्रारंभ की जावे।
3. बैकलाॅग पदों की गणना दोषपूर्ण है। सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के लगभग 1.50 लाख पद खाली है। बैकलाॅग भर्तियों नियम विरूद्ध की जाकर सपाक्स वर्ग के युवाओं को शासकीय सेवाओं में आने से वंचित रखा जा रहा है। तत्काल माननीय न्यायालय के निर्धारित मापदण्डों के अनुसार बैकलाॅग गणना पुनः की जावे।
4. संविदा/ठेके पर नियुक्तियों की व्यवस्था पढ़े लिखे युवाओं /प्रतिभाओं का शोषण है, तत्काल प्रभाव से घोषणा पत्र अनुसार इनके नियमितीकरण की कार्यवाही प्रारंभ हो।
5. ऐसे शासकीय सेवक जिन्हें पुनः संविदा नियुक्ति देकर पूर्व सरकार द्वारा उपकृत किया गया था उनकी संविदा नियुक्तियाँ तत्काल निरस्त की जावे।
6. सरकार बगैर दबाव निष्पक्ष रहते हुए एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के लिए 2 अप्रैल 2018 के हिंसक आंदोलन के अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करे, न कि उनके विरुद्ध दर्ज प्रकरण वापिस ले।
संस्था आशा करती है कि नई सरकार पूर्व सरकार की तरह भेदभाव की नीतियां न अपनाकर निष्पक्ष सभी वर्गों के साथ न्याय करेगी।
सरकार द्वारा सकारात्मक पहल न होने की स्थिति में संस्था पूर्ववत जनता के समक्ष अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने को बाध्य होगी।
सचिव
सपाक्स
प्रति,
श्री पी सी शर्मा
मंत्री, म.प्र. शासन
मंत्रालय, भोपाल
ज्ञापन का प्रारूप यह था।
सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स), आपके मंत्री पद के अहम दायित्व के निर्वहन के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करती है।
महोदय,
सपाक्स संस्था विगत लंबे समय से मप्र शासन के पदोन्नति में आरक्षण के गलत नियमों का विरोध करते हुए संघर्षरत है। शासन के इन नियमों के कारण उच्च पदों पर जहां एक वर्ग विशेष का आधिपत्य स्थापित हुआ है वहीं दूसरी ओर अन्य वर्गों के योग्य अधिकारी लंबी और समर्पित सेवा के बावजूद पदोन्नति से वंचित हैं।
मान उच्च न्यायालय द्वारा 30.04.2016 को शासन के पदोन्नति नियम खारिज किए जाने के बावजूद शासन द्वारा निर्णय का सम्मान न करते हुए मान सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई। अब विगत 3 वर्षों से प्रदेश में पदोन्नतियां पूरी तरह से बंद हैं और हजारों शासकीय सेवक बिना पदोन्नति का लाभ प्राप्त किए ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
शासन के एक पक्षपात पूर्ण निर्णय के कारण जहां पूरे तंत्र में एक असंतोष व्याप्त है वहीं दूसरी ओर तंत्र में वर्ग संघर्ष की धारणा बलवती हो चुकी है। इसका विपरीत प्रभाव न सिर्फ शासन को हो रहा है बल्कि जनसामान्य भी अब इस अन्याय से आंदोलित है। इसी का परिणाम है कि प्रदेश भर में इस अन्याय के विरुद्ध अनेकों जन प्रदर्शन हुए हैं।
इसी कड़ी में कुछ महीनों पूर्व मान सर्वोच्च न्यायालय के एट्रोसिटी एक्ट में निश्चित किए गए दिशा निर्देशों के विरुद्ध जाकर अध्यादेश लाने के केंद्र सरकार के निर्णय ने इस खाई को और अधिक गहरा किया है। निश्चित रूप से इन अन्यायपूर्ण निर्णयों का प्रभाव प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से हाल ही में स्पष्ट रूप से देखने को भी मिला है।
हाल ही में मप्र की आपकी सरकार ने निर्णय लिया है कि वह विगत वर्ष 2 अप्रैल को मान सर्वोच्च न्यायालय के एट्रोसिटी एक्ट के संबंध में दिए गए निर्णय के विरोध में एक वर्ग विशेष ने सड़कों पर उतरकर जिस प्रकार हिंसक तांडव कर जन धन को हानि पहुंचाई उसके चिन्हित अपराधियों पर दर्ज प्रकरण वापिस लिए जाएंगे। यह एक भेदभाव पूर्ण और खतरनाक पहल है।
संस्था आपसे इस संबंध में न्याय करते हुए उचित निर्णय लेने की अपील करती है एवं निम्न मांगे पूर्ण करने की मांग करती है -
1 संस्था की मान्यता को दुर्भावनावश शासन स्तर पर रोका गया है, जबकि संस्था प्रदेश के लगभग दो तिहाई शासकीय सेवकों का प्रतिनिधित्व करती है। अनुरोध है संस्था को शासन की मान्यता अविलंब प्रदान की जावे।
2 प्रदेश में बाधित पदोन्नतियों को तत्काल प्रारंभ किया जावे। इस हेतु मान उच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार कार्यवाही करते हुए खाली पदों पर मान सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन कार्यवाही की शर्त के साथ पदोन्नतियां प्रारंभ की जावे।
3. बैकलाॅग पदों की गणना दोषपूर्ण है। सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के लगभग 1.50 लाख पद खाली है। बैकलाॅग भर्तियों नियम विरूद्ध की जाकर सपाक्स वर्ग के युवाओं को शासकीय सेवाओं में आने से वंचित रखा जा रहा है। तत्काल माननीय न्यायालय के निर्धारित मापदण्डों के अनुसार बैकलाॅग गणना पुनः की जावे।
4. संविदा/ठेके पर नियुक्तियों की व्यवस्था पढ़े लिखे युवाओं /प्रतिभाओं का शोषण है, तत्काल प्रभाव से घोषणा पत्र अनुसार इनके नियमितीकरण की कार्यवाही प्रारंभ हो।
5. ऐसे शासकीय सेवक जिन्हें पुनः संविदा नियुक्ति देकर पूर्व सरकार द्वारा उपकृत किया गया था उनकी संविदा नियुक्तियाँ तत्काल निरस्त की जावे।
6. सरकार बगैर दबाव निष्पक्ष रहते हुए एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन के लिए 2 अप्रैल 2018 के हिंसक आंदोलन के अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करे, न कि उनके विरुद्ध दर्ज प्रकरण वापिस ले।
संस्था आशा करती है कि नई सरकार पूर्व सरकार की तरह भेदभाव की नीतियां न अपनाकर निष्पक्ष सभी वर्गों के साथ न्याय करेगी।
सरकार द्वारा सकारात्मक पहल न होने की स्थिति में संस्था पूर्ववत जनता के समक्ष अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने को बाध्य होगी।
सचिव
सपाक्स
प्रति,
श्री पी सी शर्मा
मंत्री, म.प्र. शासन
मंत्रालय, भोपाल
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