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अमरकंटक आकर अंतर्मन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है -विधायक फुन्देलाल

अमरकंटक आकर अंतर्मन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है -विधायक फुन्देलाल

अमरकंटक / प्रदीप मिश्रा -8770089979

अमरकंटक को मध्य प्रदेश के वनप्रदेश की उपमा प्राप्त है। आम, महुआ और साल सहित नाना प्रकार के वृक्ष मैकाल पर्वत का श्रृंगार करते हैं। अमरकंटक के जंगलों में आम के वृक्ष अधिक होने के कारण प्राचीन ग्रंथों में आम्रकूट के नाम से भी इस स्थान का वर्णन आता है। वृक्षों से आच्छादित यह वनभूमि प्रकृति प्रेमियों को सदैव ही आकर्षित करती है। यहाँ आकर मन, मस्तिष्क और शरीर प्रफुल्लित हो जाते हैं। प्रकृति के सान्निध्य से मानसिक तनाव और शारीरिक थकान दूर हो जाती है। अमरकंटक आकर अंतरमन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। कालिदास के मेघदूत जब लंबी यात्रा पर निकले थे, तब उन्होंने अपनी थकान मिटाने के लिए अमरकंटक को ही अपना पड़ाव बनाया था। कवि कालिदास ने 'मेघदूत' में लिखा है कि रामगिरि पर कुछ देर रुकने के बाद तुम (मेघदूत) आम्रकूट (अमरकंटक) पर्वत जाकर रुकना। अमरकंटक ऊंचे शिखरों वाला पर्वत है। वह अपने ऊंचे शिखर पर ही तुम्हारा स्वागत करेगा। मार्ग में जंगलों में लगी आग को तुमने बुझाया होगा, इसलिए तुम थक गए होगे। एक छोटे से छोटा व्यक्ति भी उसका स्वागत करता है, जिसने कभी उसके साथ उपकार किया था। फिर अमरकंटक जैसों की क्या बात कहना, जो स्वयं इतना महान है। जब महान कवि कालिदास अपने मेघदूत को अमरकंटक में ठहरने के लिए कह रहे हैं, तब मेरा यही सुझाव है कि हमें भी कुछ दिन अमरकंटक में गुजारने चाहिए। यह स्थान प्रकृति प्रेमियों, पर्वतरोहियों, रोमांचक यात्रा पर जाने वाले युवाओं के साथ-साथ धार्मिक मन के व्यक्तियों के लिए भी सर्वोत्तम स्थान है।*

*प्राकृतिक रूप से समृद्ध होने के साथ-साथ अमरकंटक का धार्मिक महत्त्व भी बहुत अधिक है। पुराणों में अमरकंटक का महात्म वर्णित है। अमरकंटक के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि भगवान शिव ने धरती पर परिवार सहित रहने के लिए कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को चुना है। महादेव शिव की बेटी नर्मदा का उद्गम स्थल भी यही है। नर्मदा के साथ ही अमरकंटक शोणभद्र और जोहिला नदी का उद्गम स्थल भी है। नर्मदा और शोणभद्र के विवाह की कथाएं भी यहाँ के जनमानस में प्रचलित हैं*

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