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भोपाल चुनाव के निहितार्थ ... आभाव या पराभाव.

भोपाल चुनाव के निहितार्थ ... आभाव या पराभाव.

( चुभती बात --मनोज द्विवेदी, अनूपपुर )

2019 के आम चुनाव में सर्वाधिक चर्चित लोकसभा सीटों मे से एक म प्र के भोपाल मे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को कांग्रेस द्वारा अपना प्रत्याशी बनाए जाने के बाद मेरा व्यक्ति गत मत था कि यदि यहाँ से भाजपा पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को उतार देती तो यह परंपरागत सीट भले ही भाजपा के पास ही रहती , भोपाल का यह चुनाव इतना सनसनीखेज तो नहीं ही रहता। उम्र के बंधन से जकडे बाबूलाल गौर या प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लडने पर भी मामला जीत हार से परे इतना हाईप्रोफाइल तो नहीं ही हो पाता जितना साध्वी प्रग्या सिंह को प्रत्याशी बनाए जाने बन गया।  साध्वी हमेशा भगवा आतंकवाद के नाम पर दिग्विजय सिंह को घेरती रही हैं। चुनाव मे दो धुर विरोधी प्रत्याशी वस्तुत: दो दलों के नहीं बल्कि दो रंगों के प्रतीक माने गये। ठाकुर प्रग्या सिंह को प्रत्याशी बनाना भाजपा के लिये निर्णय आसान कदापि नहीं रहा होगा। एक  खांटी अनुभवी राजनेता के सामने बिल्कुल गैर राजनैतिक अनुभव हीन साध्वी को चुनाव मैदान मे उतारने के बाद वोटों का तेजी से ध्रुवीकरण होने की संभावना जिन राजनैतिक जानकारों को रही होगी वह ना सिर्फ हिन्दु- मुस्लिम बल्कि भगवा आतंकवाद ,राष्ट्रवाद के साथ मिक्सवोट के गरम चरम वर्ग मे बदलता दिखा।  साध्वी तथा दिग्विजय सिंह के बीच मुकाबला शुरु मे एकतरफा लगा। यहाँ के नामचीन पत्रकारों को साध्वी शेर के सामने बकरी जैसी दिखी। कुछ ने उन्हे अपरिपक्व वक्ता करार दिया तो कुछ के लिये वे अनुभवहीन गैर राजनैतिक मुंहफट महिला थीं।  इसके उलट दिग्विजय सिंह ने अपनी मुंहफट छवि के विपरीत संयम रखा। योजनाबद्ध तरीके से उन्होंने संपर्क ,प्रचार मे व्यापक बढत  हासिल की। प्रत्याशी चयन मे  लेटलतीफी , नामाकंन के साथ साध्वी के कुछ बयानों से भाजपा बैकफुट पर जाती दिखी। यहाँ तक की अमित शाह व संघ को स्वत: मोर्चा संभालना पडा ।
 ***  मतदान से पहले दिग्विजय सिंह के पक्ष मे कम्प्यूटर बाबा के मिर्ची हवन तथा रोड शो से कितना लाभ हुआ, यह तो 23 मई को मतगणना के बाद ही पता चलेगा । लेकिन इससे दिग्विजय सिंह किससे डर रहे हैं या उनसे कौन डरता है, यह सवाल जरुर उठ खडा हुआ । मेरा मानना है कि दिग्विजय को जैसे थे- हैं , उन्हे वैसा ही रहना था। भाजपा यदि साध्वी की जगह आडवाणी, शिवराज, तोमर या गौर को प्रत्याशी बनाती तो दिग्विजय को कम्प्यूटर बाबा की शरण मे नहीं जाना पडता। दिग्विजय साध्वी की कट्टर हिन्दूवादी छवि से डर गये। उनमें यह अंदेशा घर कर गया कि भोपाल की जनता उनकी मुस्लिम परस्त छवि के चीथडे उडा सकती है। भगवान राजा राम को अपना आराध्य बताने वाले   नर्मदा परिक्रमा यात्री का भरोसा ना तब भगवान राम पर बचा ना नर्मदा मैया पर । बडा एवं कडा हिन्दू दिखने के चक्कर मे उन्होंने  कम्प्यूटर बाबा की शरण ली। जिन्होंने तथाकथित रुप से हजारो भगवाधारियों के साथ रोड शो किया तथा शत्रुनाशक मिर्ची हवन भी। यह आधी छोड पूरी को धावे ....पूरी मिले ना आधी पावे की कहावत को चरितार्थ करते दिग्विजय सिंह के इस आचरण ने उनके भय को उजागर कर दिया । दो साल पहले नर्मदा यात्रा के दौरान   राजनैतिक यात्रा को उन्होंने भले ही नितांत गैर राजनीतिक बताया हो....नर्मदा मैया पर या उनके आराध्य राजाराम पर उन्होने भरोसा किया नहीं । ना ही उन्हे स्वयं या अपनी पार्टी पर भरोसा था। यही कारण है कि कम्प्यूटर बाबा के मिर्ची हवन जैसे आडंबर का प्रोपेगंडा किया। दूसरी ओर यह सवाल भी उठा कि राजगढ जैसे सुरक्षित सीट से दिग्विजय को न लडा कर भॊपाल से प्रत्याशी बनाना कांग्रेस की जीत की योजना थी या किसी अन्य रणनीति का हिस्सा ?  कुछ लोगों का यह भी मानना है कि स्वत: राहुल गांधी ,कमलनाथ ने उन्हे भोपाल में घेरे रखा । अन्यथा दिग्विजय सिंह की क्षमताओं  का म प्र सहित अन्य राज्यों मे भी इस्तेमाल किया जा सकता था। समूचे चुनाव मे प्रदेश कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेता कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव,सुरेश पचॊरी, अजय सिंह राहुल अपने अपने क्षेत्रों मे ही फंसे दिखे। दिग्विजय सिंह जैसे राष्ट्रीय नेता से भाजपा डरती दिखे ऐसा लगा नहीं तो कांग्रेस के भीतर ही कुछ ठीक नहीं है ... क्या कांग्रेस ही अपने इस दिग्गज नेता से भय खा रही है ...जैसे सवाल उठ खडे हुए। 23 मई को परिणाम आते ही हार जीत का फैसला हो जाएगा। लेकिन इस सवाल का जवाब समय आने पर ही मिलेगा कि भोपाल जैसी प्रबुद्ध मतदाताओं वाली लोकसभा के लिये कांग्रेस मे प्रत्याशियों का आभाव था या यह किसी पराभाव की नयी कहानी लिखने जा रही है ?

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