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शिलान्यास तो बहाना है, बिसाहूलाल का मकशद तो रामलाल को नीचा दिखाना है। प्रभुता पाय काहे मद नाही ?

शिलान्यास तो बहाना है, बिसाहूलाल का मकशद तो रामलाल को नीचा दिखाना है।
प्रभुता पाय काहे मद नाही ?


 
 
अनूपपुर।
प्रदीप मिश्रा -8770089979
भारत वर्ष में राम के भरत ही इकलौते ऐसे मनुष्य हुए थे, जिन्हें प्रभुता पाकर भी घमण्ड नही हुआ था। अपितु आज के दौर में अगर एक नेता किसी कस्बा का विधायक या प्रदेश का मंत्री भी हो जाये, तो वह स्वयं को किसी का भाग्य विधाता से कम नही समझता है। और यह भी सच है कि राजनीति में कब किसके पाले में मजूबत दांव आ जाये और वह वो दांव खेलकर विजय हो जाये कहा नही जा सकता।
मामला इतना ही है कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में रामलाल की उपेक्षा स्वयं भाजपा के बड़े पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता तक हज़म नही कर पा रहे हैं। सभी के जुबां पर सीएम के कार्यक्रम में रामलाल की उपेक्षा तैर गया है, और क्यों न तैरे क्योंकि जिस फ्लाई ओवर ब्रिज का शिलान्यास तत्कालीन प्रभारी मंत्री संजय पाठक व विधायक रामलाल कर चुके थे, उस फ्लाई ओवर ब्रिज का बारम्बार शिलान्यास किया जाना राजनीति किये जाने से कम थोड़ी न है। एक ओर यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा में रामलाल की लोकप्रियता से 5 वर्ष से ओमप्रकाश द्विवेदी का राजनीति से दूरियां बनी रही, 

 और अब बिसाहूलाल के आने से ओमप्रकाश द्विवेदी का पार्टी में खुलकर आने का रास्ता साफ़ हो गया है। साथ ही मंच पर ओमप्रकाश द्विवेदी बिसाहूलाल के इर्दगिर्द मंडरा कर यह भी संदेश दे रहे हैं कि भाजपा में कल के आये बिसाहूलाल का चुनावी बागडोर सँभालने के लिए वो स्वयं तैयार हैं। इस बात पर तब मोहर लगा जब रामलाल नाराज़ होकर मंच से दूरियां बना ली तो मनाने के लिए न बिसाहूलाल मंच से आये और ना ही ओमप्रकाश द्विवेदी। मंच पर रामलाल की उपेक्षा से यह भी चर्चा का मुद्दा बना रहा कि जब बिसाहूलाल कांग्रेस में थे, तब रामलाल ने उनके कई कामों का खुलकर विरोध किया था। फ़िर चाहे ज़मीनी मामला हो या विधायक बनकर फ्लाई ओवर ब्रिज के शिलान्यास करने का मामला हो। ऐसे में अब भाजपा में आकर अगर बिसाहूलाल अपने कांग्रेस वाली निजी वैमनस्यता रामलाल से न भाँजा पाए, तो बिसाहूलाल का कांग्रेस वाली बेचैनी करवट, चैन की करवट में कैसे तब्दील होगी। अब देखना यह है कि मध्यप्रदेश विधानसभा उपचुनाव में जब भाजपा अपना विधायक का उम्मीदवार बिसाहूलाल को घोषित करती है, तो क्या रामलाल पार्टी के लिए काम करेंगे या नही, और करते भी हैं तो किन शर्तो पर पार्टी के लिए या प्रत्याशी के लिए यह यक्ष प्रश्न उपचुनाव के परिणाम आने तक खड़ा रहेगा ? व साथ ही क्या बिसाहूलाल, रामलाल की उपेक्षा कर अपने क़रीबी ओमप्रकाश द्विवेदी और ब्रजेश गौतम के सहारे जीत का सहरा बंधवा पाएंगे।

 

 

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