जानें हल्के बल्ले से क्यों खेलना पसंद नहीं करते थे सचिन
नयी दिल्ली: सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा जब से बाजार में आयी है, उनके जीवन से जुड़ी कई नयी बातें सामने आ रहीं हैं. सचिन तेंदुलकर हमेशा भारी बल्ले से खेलते थे. उनका कहना है कि मुझे कई बार हल्के बल्ले से खेलने की सलाह दी गयी, लेकिन मैं उसके साथ खुद को सहज महसूस नहीं करता था, यही कारण है कि मैंने हमेशा भारी बल्ले का इस्तेमाल किया.
अपनी आत्मकथा प्लेइंग इट माय वे में तेंदुलकर ने लिखा कि उन्हें कई बार हल्का बल्ला आजमाने के लिये कहा गया लेकिन वह उन्हें कभी रास नहीं आया. उन्होंने कहा , मैंने काफी भारी बल्ला इस्तेमाल किया और कई बार मुझे हल्का बल्ला आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. मैंने आजमाया भी लेकिन कभी सहज महसूस नहीं किया क्योंकि मेरे पूरे बल्ले का स्विंग उस वजन पर निर्भर करता था.
जब मैं कोई ड्राइव लगा रहा हूं तो मुझे उसमें ताकत पैदा करने के लिए वजन की जरूरत होती थी. उन्होंने इस बारे में भी बताया है कि बल्ला कैसे पकडना चाहिए. तेंदुलकर ने कहा ,ह्यह्य मैं बल्ले को हाथ का ही एक हिस्सा मानता था और जब आप ऐसा मानने लगे तो बदलाव की जरूरत ही क्या है. सबसे अहम यह था कि मैं बल्लेबाजी करते हुए सहज महसूस कर रहा था. उन्होंने कहा ,जब तक मैं सहज महसूस कर रहा था, यह मायने नहीं रखता कि मैं कहां और किसके खिलाफ खेल रहा हूं .
आप तकनीकी बदलाव करके खुद को असहज महसूस कराने का जोखिम लेने लगते हैं. तेंदुलकर ने युवा बल्लेबाजों को अत्यधिक प्रयोग से बचने की सलाह देते हुए कहा ,बल्ला आपके हाथ का ही एक हिस्सा होना चाहिये और उस मुकाम पर पहुंचने के बाद आपको तकनीक में किसी बदलाव की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अपनी बल्लेबाजी के बारे में बहुत ज्यादा सोचने की बजाय बल्लेबाजों को गेंदबाज का दिमाग पढ़ने की कोशिश भी करनी चाहिए.
उन्होंने कहा ,मैंने हमेशा महसूस किया है कि मैंने सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी तब की है जब मेरा दिमाग गेंदबाज के छोर पर रहता था, मेरे छोर पर नहीं. मेरा हमेशा से मानना है कि चाहे गेंदबाज हो या बल्लेबाज, सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट तभी खेल सकता है जब दिमाग विरोधी छोर पर हो. अपने छोर पर दिमाग को ज्यादा उलझाने से दिक्कतें आती है.
अपनी आत्मकथा प्लेइंग इट माय वे में तेंदुलकर ने लिखा कि उन्हें कई बार हल्का बल्ला आजमाने के लिये कहा गया लेकिन वह उन्हें कभी रास नहीं आया. उन्होंने कहा , मैंने काफी भारी बल्ला इस्तेमाल किया और कई बार मुझे हल्का बल्ला आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. मैंने आजमाया भी लेकिन कभी सहज महसूस नहीं किया क्योंकि मेरे पूरे बल्ले का स्विंग उस वजन पर निर्भर करता था.
जब मैं कोई ड्राइव लगा रहा हूं तो मुझे उसमें ताकत पैदा करने के लिए वजन की जरूरत होती थी. उन्होंने इस बारे में भी बताया है कि बल्ला कैसे पकडना चाहिए. तेंदुलकर ने कहा ,ह्यह्य मैं बल्ले को हाथ का ही एक हिस्सा मानता था और जब आप ऐसा मानने लगे तो बदलाव की जरूरत ही क्या है. सबसे अहम यह था कि मैं बल्लेबाजी करते हुए सहज महसूस कर रहा था. उन्होंने कहा ,जब तक मैं सहज महसूस कर रहा था, यह मायने नहीं रखता कि मैं कहां और किसके खिलाफ खेल रहा हूं .
आप तकनीकी बदलाव करके खुद को असहज महसूस कराने का जोखिम लेने लगते हैं. तेंदुलकर ने युवा बल्लेबाजों को अत्यधिक प्रयोग से बचने की सलाह देते हुए कहा ,बल्ला आपके हाथ का ही एक हिस्सा होना चाहिये और उस मुकाम पर पहुंचने के बाद आपको तकनीक में किसी बदलाव की जरूरत नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि अपनी बल्लेबाजी के बारे में बहुत ज्यादा सोचने की बजाय बल्लेबाजों को गेंदबाज का दिमाग पढ़ने की कोशिश भी करनी चाहिए.
उन्होंने कहा ,मैंने हमेशा महसूस किया है कि मैंने सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी तब की है जब मेरा दिमाग गेंदबाज के छोर पर रहता था, मेरे छोर पर नहीं. मेरा हमेशा से मानना है कि चाहे गेंदबाज हो या बल्लेबाज, सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट तभी खेल सकता है जब दिमाग विरोधी छोर पर हो. अपने छोर पर दिमाग को ज्यादा उलझाने से दिक्कतें आती है.
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