आचार संहिता से जम्मू कश्मीर के राहत कार्य प्रभावित नहीं होंगे : EC
नई दिल्ली : निर्वाचन आयोग ने आज उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि जम्मू कश्मीर के बाढ़ प्रभावितों के लिये चल रहे राहत एवं पुनर्वास कार्यो में आदर्श आचार संहिता बाधक नहीं बनेगी। जम्मू कश्मीर विधान सभा के लिये 25 नवंबर से पांच चरणों मे मतदान होना है।
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को निर्वाचन आयोग के वकील ने सूचित किया, ‘‘सरकारें सभी राहत कार्य एवं प्रशासनिक कार्य करती रह सकती हैं।’ आयोग ने इस संबंध में कैबिनेट सचिव, राज्य सरकार के मुख्य सचिव और जम्मू कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी के बीच हुये तमाम संवादों से भी न्यायालय को अवगत कराया। आयोग ने कहा कि पांच नवंबर को यह स्पष्ट किया जा चुका है कि राहत एवं पुनर्वास के कार्य बगैर किसी व्यवधान के जारी रखे जा सकते हैं।
न्यायालय ने जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रमुख भीम सिंह की जनहित याचिका में उठाये गये अन्य मुद्दों पर आज विचार करने से इंकार करते हुये कहा कि इन पर 14 नवंबर को सुनवाई की जायेगी। इस बीच, न्यायालय ने केन्द्र सरकार से कहा कि राहत एवं पुनर्वास कार्यो के लिये 44 हजार करोड़ रूपए की राज्य सरकार की मांग के बारे में वह अपनी स्थिति स्पष्ट करे। बाढ़ प्रभावित परिवारों को घटिया किस्म के खाद्यान्नों की आपूर्ति किये जाने के बारे में न्यायालय का ध्यान आकर्षित किये जाने पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘हम राज्य सरकार से अच्छे शासन की अपेक्षा करते हैं।’
शीर्ष अदालत ने पिछली तारीख पर इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि था कि हाल ही में आयी बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित क्षेत्रों में सरकार के राहत और पुनर्वास कार्यो में किसी भी सरकार की बाधा दूर करने के लिये आचार संहिता में ढील देने के पक्ष में है। न्यायालय ने इस मुद्दों पर निर्वाचन आयोग से जवाब मांगते हुये सवाल किया था कि राज्य की स्थिति के मद्देनजर राजनीतिक दलों ने चुनाव स्थगित करने के लिये आयोग से संपर्क क्यों नहीं किया था।
बाढ़ से प्रभावित इस राज्य में राहत और पुनर्वास कार्यो में आचार संहिता के बाधक बनने की ओर न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किये जाने पर न्यायाधीशों ने यह टिप्पणियां की थीं। भीम सिंह चाहते थे कि बाढ़ से हुये विनाश को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाय । न्यायालय ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ रजिस्ट्रार की अध्यक्षता में 24 सितंबर को गठित पांच सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद ये टिप्पणियां की थीं। समिति का कहना था कि कुछ जिलों, विशेषकर श्रीनगर, उधमपुर और राजौरी में ठीक से और समान रूप से राहत सामग्री वितरित नहीं की जा रही है।
आयोग ने कहा, ‘ ऐसे समय में जब दिल्ली में विधानसभा उप चुनाव के संबंध में आदर्श आचार संहिता लागू हो, तब समान अवसर प्रदान करने की व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इससे बचा जाना चाहिए था।’ 31 अक्तूबर को अपने पत्र में चुनाव आयोग ने कहा था कि दिल्ली में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है, जहां 25 नवंबर को कृष्णानगर, महरौली और तुगलकाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं। इन सीटों के विधायकों के मई में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के बाद यह सीटें रिक्त हो गईं। राष्ट्रपति ने चार नवंबर को दिल्ली विधानसभा भंग कर दी, ऐसे में उपचुनाव को रद्द कर दिया गया ।
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में भड़की सिख विरोधी हिंसा के 3,325 पीड़ितों के परिजन में प्रत्येक को पांच-पांच लाख रूपये मुआवजा देने का निर्णय किया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा था कि सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के परिवारों को दिया जाने वाला यह मुआवजा इस संबंध में समय समय पर सरकारी और अन्य एजेंसियों की ओर से प्रदान की गई राशि के अतिरिक्त होगा।
गौरतलब है कि इन दंगों के 3,325 पीड़ितों में 2733 की मौत दिल्ली में हुई जबकि शेष पीड़ित उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं अन्य राज्यों से थे। बहरहाल, तीन नवंबर को गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग को सूचित किया था कि उसने मुआवजे के बारे में कोई निर्णय नहीं किया है।
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ को निर्वाचन आयोग के वकील ने सूचित किया, ‘‘सरकारें सभी राहत कार्य एवं प्रशासनिक कार्य करती रह सकती हैं।’ आयोग ने इस संबंध में कैबिनेट सचिव, राज्य सरकार के मुख्य सचिव और जम्मू कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी के बीच हुये तमाम संवादों से भी न्यायालय को अवगत कराया। आयोग ने कहा कि पांच नवंबर को यह स्पष्ट किया जा चुका है कि राहत एवं पुनर्वास के कार्य बगैर किसी व्यवधान के जारी रखे जा सकते हैं।
न्यायालय ने जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर्स पार्टी के प्रमुख भीम सिंह की जनहित याचिका में उठाये गये अन्य मुद्दों पर आज विचार करने से इंकार करते हुये कहा कि इन पर 14 नवंबर को सुनवाई की जायेगी। इस बीच, न्यायालय ने केन्द्र सरकार से कहा कि राहत एवं पुनर्वास कार्यो के लिये 44 हजार करोड़ रूपए की राज्य सरकार की मांग के बारे में वह अपनी स्थिति स्पष्ट करे। बाढ़ प्रभावित परिवारों को घटिया किस्म के खाद्यान्नों की आपूर्ति किये जाने के बारे में न्यायालय का ध्यान आकर्षित किये जाने पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘हम राज्य सरकार से अच्छे शासन की अपेक्षा करते हैं।’
शीर्ष अदालत ने पिछली तारीख पर इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि था कि हाल ही में आयी बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित क्षेत्रों में सरकार के राहत और पुनर्वास कार्यो में किसी भी सरकार की बाधा दूर करने के लिये आचार संहिता में ढील देने के पक्ष में है। न्यायालय ने इस मुद्दों पर निर्वाचन आयोग से जवाब मांगते हुये सवाल किया था कि राज्य की स्थिति के मद्देनजर राजनीतिक दलों ने चुनाव स्थगित करने के लिये आयोग से संपर्क क्यों नहीं किया था।
बाढ़ से प्रभावित इस राज्य में राहत और पुनर्वास कार्यो में आचार संहिता के बाधक बनने की ओर न्यायालय का ध्यान आकषिर्त किये जाने पर न्यायाधीशों ने यह टिप्पणियां की थीं। भीम सिंह चाहते थे कि बाढ़ से हुये विनाश को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाय । न्यायालय ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ रजिस्ट्रार की अध्यक्षता में 24 सितंबर को गठित पांच सदस्यीय समिति की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद ये टिप्पणियां की थीं। समिति का कहना था कि कुछ जिलों, विशेषकर श्रीनगर, उधमपुर और राजौरी में ठीक से और समान रूप से राहत सामग्री वितरित नहीं की जा रही है।
आयोग ने कहा, ‘ ऐसे समय में जब दिल्ली में विधानसभा उप चुनाव के संबंध में आदर्श आचार संहिता लागू हो, तब समान अवसर प्रदान करने की व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इससे बचा जाना चाहिए था।’ 31 अक्तूबर को अपने पत्र में चुनाव आयोग ने कहा था कि दिल्ली में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है, जहां 25 नवंबर को कृष्णानगर, महरौली और तुगलकाबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं। इन सीटों के विधायकों के मई में लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होने के बाद यह सीटें रिक्त हो गईं। राष्ट्रपति ने चार नवंबर को दिल्ली विधानसभा भंग कर दी, ऐसे में उपचुनाव को रद्द कर दिया गया ।
गौरतलब है कि गृह मंत्रालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में भड़की सिख विरोधी हिंसा के 3,325 पीड़ितों के परिजन में प्रत्येक को पांच-पांच लाख रूपये मुआवजा देने का निर्णय किया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा था कि सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के परिवारों को दिया जाने वाला यह मुआवजा इस संबंध में समय समय पर सरकारी और अन्य एजेंसियों की ओर से प्रदान की गई राशि के अतिरिक्त होगा।
गौरतलब है कि इन दंगों के 3,325 पीड़ितों में 2733 की मौत दिल्ली में हुई जबकि शेष पीड़ित उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं अन्य राज्यों से थे। बहरहाल, तीन नवंबर को गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग को सूचित किया था कि उसने मुआवजे के बारे में कोई निर्णय नहीं किया है।
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