दिल्ली की 4 सीटों पर टिका है भाजपा-अकाली गठबंधन
जालंधर : हरियाणा विधानसभा चुनावों से अंकुरित हुआ भाजपा-अकाली दल के बीच फूट का बीज दिल्ली विधानसभा चुनावों के आते-आते पूरी तरह से खिलता नजर आ रहा है। दोनों दलों के बीच दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान कटुता तलाक में बदलती दिख रही है जिस कारण संभव है कि दिल्ली से लेकर पंजाब तक भाजपा व अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ें। असलियत में भाजपा व अकाली दल के रिश्तों में वैसे तो खटास पड़ चुकी है लेकिन दिल्ली में 4 सीटों को लेकर अकाली दल के साथ भाजपा का तलाक होने की संभावना बनती दिख रही है। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान अकालियों ने मनपसंद सीटें नहीं मिलने पर 17 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की चेतावनी दे डाली थी। इसके बाद भाजपा ने भी आंखें तरेरीं तो अकाली दल हरिनगर, राजौरी, कालका जी तथा शाहदरा सीटों पर सिमट गया। इनमें से हरिनगर तथा राजौरी सीट पर अकाली उम्मीदवार शिअद के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े थे जबकि कालका जी और शाहदरा में ‘कमल’ चुनाव चिन्ह पर इसके प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे।
इस बार भाजपा जब केंद्रीय सत्ता में है तो वह चाहती है कि दिल्ली में अकाली दल अपना चुनाव चिन्ह छोड़ कर भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े। भाजपा के अंदर इस बात को लेकर अकाली दल के प्रति रवैया बेहतर नहीं है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा जो अकाली दल पर अपना चुनाव चिन्ह थोप रही है उसके पीछे कारण भाजपा के अंदर का गेम प्लान है जिसमें भाजपा चाहती है कि अकाली दल किसी बात पर अड़े तो उसको दरकिनार किया जाए।
अगर दिल्ली की 4 सीटों को लेकर अकाली दल भाजपा की बात नहीं मानता तो साफ है कि भाजपा अकाली दल के साथ गठबंधन तोड़ सकती है। अगर दिल्ली में यह गठबंधन टूटेगा तो जाहिर है कि पंजाब में भी भाजपा इससे बाहर आ जाएगी। दिल्ली में इसी बात को ध्यान में रख कर भाजपा ने अभी से सिख बहुल क्षेत्रों में अपने सिख नेताओं को उतार दिया है। भाजपा नेता आर.पी. सिंह भी उसी कड़ी का एक हिस्सा हैं जो दिल्ली में सिख क्षेत्रों में 84 दंगा पीड़ितों को दी राहत से लेकर अन्य मसलों पर उनका रवैया भाजपा के प्रति सकारात्मक कर रहे हैं।
वैसे भी दावा किया जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने की सूरत में सिख विधायकों को अहम मंत्रालय देने की योजना है। वैसे भी भाजपा के पास आर.पी. सिंह के साथ-साथ हरशरण सिंह बल्ली तथा पूर्व ‘आप’ नेता व स्पीकर एम.एस. धीर जैसे सिख चेहरे हैं जिनका दिल्ली के सिख बहुल क्षेत्रों में आधार अच्छा है। इसी बात को लेकर भाजपा चाहती है कि अकाली दल या तो उसके अनुसार चुनाव लड़े नहीं तो वह अकाली दल से अलग होकर अपने दमखम पर चुनाव लडऩे को तैयार है।
इस बार भाजपा जब केंद्रीय सत्ता में है तो वह चाहती है कि दिल्ली में अकाली दल अपना चुनाव चिन्ह छोड़ कर भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े। भाजपा के अंदर इस बात को लेकर अकाली दल के प्रति रवैया बेहतर नहीं है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा जो अकाली दल पर अपना चुनाव चिन्ह थोप रही है उसके पीछे कारण भाजपा के अंदर का गेम प्लान है जिसमें भाजपा चाहती है कि अकाली दल किसी बात पर अड़े तो उसको दरकिनार किया जाए।
अगर दिल्ली की 4 सीटों को लेकर अकाली दल भाजपा की बात नहीं मानता तो साफ है कि भाजपा अकाली दल के साथ गठबंधन तोड़ सकती है। अगर दिल्ली में यह गठबंधन टूटेगा तो जाहिर है कि पंजाब में भी भाजपा इससे बाहर आ जाएगी। दिल्ली में इसी बात को ध्यान में रख कर भाजपा ने अभी से सिख बहुल क्षेत्रों में अपने सिख नेताओं को उतार दिया है। भाजपा नेता आर.पी. सिंह भी उसी कड़ी का एक हिस्सा हैं जो दिल्ली में सिख क्षेत्रों में 84 दंगा पीड़ितों को दी राहत से लेकर अन्य मसलों पर उनका रवैया भाजपा के प्रति सकारात्मक कर रहे हैं।
वैसे भी दावा किया जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने की सूरत में सिख विधायकों को अहम मंत्रालय देने की योजना है। वैसे भी भाजपा के पास आर.पी. सिंह के साथ-साथ हरशरण सिंह बल्ली तथा पूर्व ‘आप’ नेता व स्पीकर एम.एस. धीर जैसे सिख चेहरे हैं जिनका दिल्ली के सिख बहुल क्षेत्रों में आधार अच्छा है। इसी बात को लेकर भाजपा चाहती है कि अकाली दल या तो उसके अनुसार चुनाव लड़े नहीं तो वह अकाली दल से अलग होकर अपने दमखम पर चुनाव लडऩे को तैयार है।
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