नंदूभैया के सामने चुनौती...
चुनौती विचारधारा से वास्ता नहीं रखने वाले और धनबल के दम पर बीजेपी में पद-प्रतिष्ठा पा लेने वाले कार्यकर्ताओं से पार्टी को बाहर निकालकर जुझारू नेताओं को तैयार करने की भी होगी जिनकी छवि जनता की नजर में बेहतर हो और वो सरकार-जनता के बीच में सेतु का काम करके लगातार चौथी बार सरकार बनाने में अहम कड़ी साबित हो सकें।
नंदकुमार सिंह चौहान की गिनती जब निर्वाचित अध्यक्षों में होने लगी है तो उनसे अपेक्षाएं बढ़ना भी लाजमी है, चाहे फिर वो कार्यकर्ताओं की हो या फिर हाईकमान के साथ प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की। अपेक्षाएं नंदूभैया से तो बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनके सामने जो चुनौतियां होंगी उनका संबंध कहीं न कहीं इन तीनों से होगा। संगठन के इस चौहान ने सरकार के चौहान के साथ कदमताल कर मिशन-2018 का लक्ष्य हासिल करने के साथ मोदी को दोबारा पीएम बनाने का राग अलापकर भले ही खुद की जवाबदेही के साथ अहमियत का अहसास कराया हो लेकिन सबसे बड़ी चुनौती संगठन को एक नई पहचान देने की है जिसने चुनाव जीतकर लोकप्रियता भले ही हासिल की हो लेकिन पीढ़ी परिवर्तन के दौर में नए नेतृत्व के निखारना यदि अभी बाकी है तो आयाराम-गयाराम के इस दौर में बीजेपी की विचारधारा को प्रभावी और असरदार सिद्ध करना भी है जिस पर दूसरे दलों से आए नेता और कार्यकर्ता भारी साबित हो रहे हैं। चुनौती विचारधारा से वास्ता नहीं रखने वाले और धनबल के दम पर बीजेपी में पद-प्रतिष्ठा पा लेने वाले कार्यकर्ताओं से पार्टी को बाहर निकालकर जुझारू नेताओं को तैयार करने की भी होगी जिनकी छवि जनता की नजर में बेहतर हो और वो सरकार-जनता के बीच में सेतु का काम करके लगातार चौथी बार सरकार बनाने में अहम कड़ी साबित हो सकें। नंदकुमार सिंह चौहान और अरविन्द मेनन की इस जोड़ी ने दिल्ली रवाना होने से पहले आज दिनभर लंबा समय एक साथ बिताया और ये बताने की कोशिश की कि स्काउट-गाइड चुनाव को लेकर पूर्व सांसद और महापौर अशोक अर्गल और पूर्व सांसद जीतेंद्र बुंदेला के बीच रस्साकशी का समाधान तलाशना। इस दौरान पारस जैन और दीपक जोशी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई। नंदू-मेनन की बंद कमरे में इस मुलाकात का एक हिस्सा स्काउट-गाइड चुनाव रहे फिर भी इसके निहितार्थ निकाले जाना लाजमी है क्योंकि अगले तीन सप्ताह बीजेपी और खासतौर से शिवराज, नंदकुमार और मेनन के लिए कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं। अगले तीन-चार दिन में मैहर विधानसभा के उपचुनाव का ऐलान होना है जहां शिवराज पिछले 10 दिन में रात रुककर दो दौर में कई सभाएं और रोड शो कर क्षेत्र के विकास के लिए करोड़ों की सौगात दे आए हैं। शिवराज 11 से 15 जनवरी तक सिंगापुर के दौरे पर रहेंगे ऐसे में जब चुनाव निर्णायक दौर में होगा तो जिम्मेदारी संगठन के इन दो योद्धाओं पर होगी। इस बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की सरगर्मी भी बढ़ चुकी होगी। मध्यप्रदेश को ये संदेश देना है कि वो मोदी और पार्टी के साथ संघ की पसंद के पीछे एकजुटता के साथ खड़ा है। यानी संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन के लिए चुनौती यदि मैहर मेंे नेताओं और कार्यकर्ताओ के जमावट की है तो दिल्ली की अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाना है। मेनन और नंदूभैया की सतना-मैहर से लौटे शिवराज से मुलाकात के बाद दिल्ली दौरे का मकसद राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत केंद्रीय नेताओं का आशीर्वाद नंदूभैया के लिए हासिल करना है जिन्हें विश्वास में लेकर चौहान एक बार फिर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे। ऐसे में नंदकुमार के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं जिसकी शुरुआत यदि मैहर से होने जा रही है तो इस फेहरिस्त में नई टीम का गठन सबसे ऊपर है। मैहर यदि अग्निपरीक्षा है तो कार्यकारिणी का पुनर्गठन किसी चुनौती से कम नहीं है। नरेंद्र तोमर के उत्तराधिकारी के तौर पर नंदकुमार ने विरासत में मिली टीम पर भरोसा जताते हुए कुछ गिने-चुने नए चेहरों को उसमें शामिल किया था तब वो शिवराज के वीटो पॉवर के चलते अमित शाह के आशीर्वाद से अध्यक्ष घोषित किए गए थे। अब जबकि निर्वाचित अध्यक्ष के लिए उनकी स्वीकार्यता बनाने में कई पूर्व अध्यक्ष उनके पीछे खड़े नजर आए तो फिर उनकी अपेक्षाओं का भी उन्हें ख्याल रखना होगा चाहे फिर वो नरेंद्र तोमर हों, प्रभात झा, जटिया, विक्रम वर्मा, कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा ही क्यों न हों। ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि अभी तक नंदूभैया सिर्फ एक मुखौटा थे और संगठन की चाबी अरविन्द मेनन के पास थी जो शिवराज के इशारे पर ही भरी जाती थी जिसके बाद संगठन चलता हुआ नजर आता था। नंदूभैया अध्यक्ष के दावेदार थे इसलिए मंडल से लेकर प्रदेश तक बिछाई गई संगठन की बिसात पर मोहरे मेनन ने फिट किए। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या एक बार फिर नंदकुमार शिवराज और मेनन की कठपुतली साबित होंगे या फिर खुद और संगठन को एक नई पहचान कर एक नई इबारत लिखेंगे। चुनौती सिर्फ कार्यकारिणी और उसमें शामिल पदाधिकारियों के चयन की ही नहीं बल्कि मोर्चाें के साथ प्रकोष्ठों को समाप्त कर बनाए गए विभागों को प्रभावी सिद्ध करने की भी होगी। नंदूभैया के 18 महीने के खाते में यदि नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का सफाया करने का श्रेय जाता है तो झाबुआ की हार को वो अपवाद नहीं टाल सकते हैं। जीतने के बाद भी विधानसभा के उपचुनाव में वोटों का ग्राफ नीचे आया है। ऐसे में मैहर में जो माहौल बना है वहां कांग्रेस के आयातित उम्मीदवार पर दांव लगाकर बीजेपी ने अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की जो नाराजगी मोल ली है उससे उन्हें सावधान रहना होगा। चुनौती कार्यकर्ताओं को लालबत्ती दिलाने की भी होगी जिसे उनका हक नहीं बल्कि शिवराज की कृपा मानी जा रही है। 2 साल बाद यदि ये नियुक्तियां होती हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज मेनन की पसंद में नंदकुमार कहां खड़े नजर आते हैं। चुनौती मिशन-2018 के लिए एकजुट होने की कोशिश में जुटी कांग्रेस भी होगी जो संजीदगी के साथ आगे बढ़ रही है। अगले 3 साल में सत्ता में रहने का यदि नंदूभैया का फायदा मिलना है तो उनसे बढ़ती अपेक्षाएं चुनौती के रूप में भी सामने होंगी। नंदूभैया के लिए चुनौती मंत्रियों और विधायकों के बीच तालमेल बढ़ाने तो सांसदों और विधायकों के बीच समन्वय बनाने की भी होगी। इन नेताओं की पसंद पर ही जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष चुने गए हैं। सबसे बड़ी चुनौती शिवराज को मजबूत करने के साथ संगठन महामंत्री मेनन से भी तालमेल बनाकर आगे बढ़ने की होगी। मेनन ने जिस तरह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है उसके बाद उनकी नई भूिमका को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे हैं। शिवराज सिंह ने नंदूभैया को अपनी पसंद बनाकर भले ही उन्हें अध्यक्ष बनवा लिया लेकिन नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और मध्यप्रदेश में नई कार्यकारिणी के साथ संघ को तय करना है कि संगठन मंत्री के तौर पर कौन मोदी के साथ तो कौन शिवराज के साथ कदमताल करेगा।
नंदकुमार सिंह चौहान की गिनती जब निर्वाचित अध्यक्षों में होने लगी है तो उनसे अपेक्षाएं बढ़ना भी लाजमी है, चाहे फिर वो कार्यकर्ताओं की हो या फिर हाईकमान के साथ प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की। अपेक्षाएं नंदूभैया से तो बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनके सामने जो चुनौतियां होंगी उनका संबंध कहीं न कहीं इन तीनों से होगा। संगठन के इस चौहान ने सरकार के चौहान के साथ कदमताल कर मिशन-2018 का लक्ष्य हासिल करने के साथ मोदी को दोबारा पीएम बनाने का राग अलापकर भले ही खुद की जवाबदेही के साथ अहमियत का अहसास कराया हो लेकिन सबसे बड़ी चुनौती संगठन को एक नई पहचान देने की है जिसने चुनाव जीतकर लोकप्रियता भले ही हासिल की हो लेकिन पीढ़ी परिवर्तन के दौर में नए नेतृत्व के निखारना यदि अभी बाकी है तो आयाराम-गयाराम के इस दौर में बीजेपी की विचारधारा को प्रभावी और असरदार सिद्ध करना भी है जिस पर दूसरे दलों से आए नेता और कार्यकर्ता भारी साबित हो रहे हैं। चुनौती विचारधारा से वास्ता नहीं रखने वाले और धनबल के दम पर बीजेपी में पद-प्रतिष्ठा पा लेने वाले कार्यकर्ताओं से पार्टी को बाहर निकालकर जुझारू नेताओं को तैयार करने की भी होगी जिनकी छवि जनता की नजर में बेहतर हो और वो सरकार-जनता के बीच में सेतु का काम करके लगातार चौथी बार सरकार बनाने में अहम कड़ी साबित हो सकें। नंदकुमार सिंह चौहान और अरविन्द मेनन की इस जोड़ी ने दिल्ली रवाना होने से पहले आज दिनभर लंबा समय एक साथ बिताया और ये बताने की कोशिश की कि स्काउट-गाइड चुनाव को लेकर पूर्व सांसद और महापौर अशोक अर्गल और पूर्व सांसद जीतेंद्र बुंदेला के बीच रस्साकशी का समाधान तलाशना। इस दौरान पारस जैन और दीपक जोशी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं दी गई। नंदू-मेनन की बंद कमरे में इस मुलाकात का एक हिस्सा स्काउट-गाइड चुनाव रहे फिर भी इसके निहितार्थ निकाले जाना लाजमी है क्योंकि अगले तीन सप्ताह बीजेपी और खासतौर से शिवराज, नंदकुमार और मेनन के लिए कुछ ज्यादा ही मायने रखते हैं। अगले तीन-चार दिन में मैहर विधानसभा के उपचुनाव का ऐलान होना है जहां शिवराज पिछले 10 दिन में रात रुककर दो दौर में कई सभाएं और रोड शो कर क्षेत्र के विकास के लिए करोड़ों की सौगात दे आए हैं। शिवराज 11 से 15 जनवरी तक सिंगापुर के दौरे पर रहेंगे ऐसे में जब चुनाव निर्णायक दौर में होगा तो जिम्मेदारी संगठन के इन दो योद्धाओं पर होगी। इस बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की सरगर्मी भी बढ़ चुकी होगी। मध्यप्रदेश को ये संदेश देना है कि वो मोदी और पार्टी के साथ संघ की पसंद के पीछे एकजुटता के साथ खड़ा है। यानी संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन के लिए चुनौती यदि मैहर मेंे नेताओं और कार्यकर्ताओ के जमावट की है तो दिल्ली की अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाना है। मेनन और नंदूभैया की सतना-मैहर से लौटे शिवराज से मुलाकात के बाद दिल्ली दौरे का मकसद राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत केंद्रीय नेताओं का आशीर्वाद नंदूभैया के लिए हासिल करना है जिन्हें विश्वास में लेकर चौहान एक बार फिर अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे। ऐसे में नंदकुमार के लिए चुनौतियां ज्यादा हैं जिसकी शुरुआत यदि मैहर से होने जा रही है तो इस फेहरिस्त में नई टीम का गठन सबसे ऊपर है। मैहर यदि अग्निपरीक्षा है तो कार्यकारिणी का पुनर्गठन किसी चुनौती से कम नहीं है। नरेंद्र तोमर के उत्तराधिकारी के तौर पर नंदकुमार ने विरासत में मिली टीम पर भरोसा जताते हुए कुछ गिने-चुने नए चेहरों को उसमें शामिल किया था तब वो शिवराज के वीटो पॉवर के चलते अमित शाह के आशीर्वाद से अध्यक्ष घोषित किए गए थे। अब जबकि निर्वाचित अध्यक्ष के लिए उनकी स्वीकार्यता बनाने में कई पूर्व अध्यक्ष उनके पीछे खड़े नजर आए तो फिर उनकी अपेक्षाओं का भी उन्हें ख्याल रखना होगा चाहे फिर वो नरेंद्र तोमर हों, प्रभात झा, जटिया, विक्रम वर्मा, कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा ही क्यों न हों। ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि अभी तक नंदूभैया सिर्फ एक मुखौटा थे और संगठन की चाबी अरविन्द मेनन के पास थी जो शिवराज के इशारे पर ही भरी जाती थी जिसके बाद संगठन चलता हुआ नजर आता था। नंदूभैया अध्यक्ष के दावेदार थे इसलिए मंडल से लेकर प्रदेश तक बिछाई गई संगठन की बिसात पर मोहरे मेनन ने फिट किए। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या एक बार फिर नंदकुमार शिवराज और मेनन की कठपुतली साबित होंगे या फिर खुद और संगठन को एक नई पहचान कर एक नई इबारत लिखेंगे। चुनौती सिर्फ कार्यकारिणी और उसमें शामिल पदाधिकारियों के चयन की ही नहीं बल्कि मोर्चाें के साथ प्रकोष्ठों को समाप्त कर बनाए गए विभागों को प्रभावी सिद्ध करने की भी होगी। नंदूभैया के 18 महीने के खाते में यदि नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का सफाया करने का श्रेय जाता है तो झाबुआ की हार को वो अपवाद नहीं टाल सकते हैं। जीतने के बाद भी विधानसभा के उपचुनाव में वोटों का ग्राफ नीचे आया है। ऐसे में मैहर में जो माहौल बना है वहां कांग्रेस के आयातित उम्मीदवार पर दांव लगाकर बीजेपी ने अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं की जो नाराजगी मोल ली है उससे उन्हें सावधान रहना होगा। चुनौती कार्यकर्ताओं को लालबत्ती दिलाने की भी होगी जिसे उनका हक नहीं बल्कि शिवराज की कृपा मानी जा रही है। 2 साल बाद यदि ये नियुक्तियां होती हैं तो देखना दिलचस्प होगा कि शिवराज मेनन की पसंद में नंदकुमार कहां खड़े नजर आते हैं। चुनौती मिशन-2018 के लिए एकजुट होने की कोशिश में जुटी कांग्रेस भी होगी जो संजीदगी के साथ आगे बढ़ रही है। अगले 3 साल में सत्ता में रहने का यदि नंदूभैया का फायदा मिलना है तो उनसे बढ़ती अपेक्षाएं चुनौती के रूप में भी सामने होंगी। नंदूभैया के लिए चुनौती मंत्रियों और विधायकों के बीच तालमेल बढ़ाने तो सांसदों और विधायकों के बीच समन्वय बनाने की भी होगी। इन नेताओं की पसंद पर ही जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष चुने गए हैं। सबसे बड़ी चुनौती शिवराज को मजबूत करने के साथ संगठन महामंत्री मेनन से भी तालमेल बनाकर आगे बढ़ने की होगी। मेनन ने जिस तरह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है उसके बाद उनकी नई भूिमका को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे हैं। शिवराज सिंह ने नंदूभैया को अपनी पसंद बनाकर भले ही उन्हें अध्यक्ष बनवा लिया लेकिन नए राष्ट्रीय अध्यक्ष और मध्यप्रदेश में नई कार्यकारिणी के साथ संघ को तय करना है कि संगठन मंत्री के तौर पर कौन मोदी के साथ तो कौन शिवराज के साथ कदमताल करेगा।
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