फिल्म रिव्यू : इमोशनल अत्याचार है साला खडूस
'चक-दे इंडिया' और 'मैरी कॉम' के आगे 'साला खडूस' चवन्नी भी नहीं है। पूरी फिल्म में इमोशन का अतिरेक है। कहानी कल्पनीय है और गाने औसत। तमिल और हिन्दी में एक साथ बनने वाली साला खडूस तमिल में भले ही सुपर-डुुपर हिट हो, हिन्दी के दर्शक उतना पसंद नहीं करने वाले। फिल्म की उपलब्धि इसकी अभिनेत्री ऋतिका कुमारी है, जो वास्तव में नेशनल लेवल की बॉक्सर हैं। माधवन एक फुुस्सी बम हैं। तमिल में ऐसे फुुस्सी बमों की भरमार है।
साला खडूस में जैसी एक्टिंग ऋतिका कुमारी ने की है, उसमें स्वाभाविकता का पुट है। मैरी कॉम में इससे अच्छी एक्टिंग प्रियंका चोपड़ा ने की थी, जो बॉक्सर नहीं है। इस फिल्म को देखने पर लगता है कि पूरे के पूरे खेल फेडरेशन भ्रष्टाचारों और सेक्स स्कैंडल से भरे पड़े हैं। वास्तव में ऐसा नहीं होता या होता भी होगा, तो अपवाद के रूप में।
फिल्म बॉक्सिंग के बारे में है। फिल्म में आर. माधवन लड़कियों के बॉक्सिंग कोच है, जो खेलों की राजनीति के शिकार हो जाते है। वे अपनी शार्गिदों को कड़ी ट्रेनिंग देते है। इस कारण सभी उन्हें लोग उन्हें खडूस मानते हैं, लेकिन इस फिल्म में माधवन से ज्यादा खडूस ऋतिका कुमारी को दिखाया गया है। फिल्म में बॉक्सिंग, राजनीति और दूसरी घटनाओं के साथ ही प्यार मोहब्बत भी ठूंसी गई है। दो महिला बॉक्सरों के बीच की प्रतिस्पर्धा, जो बहन होते हुए भी एक-दूसरे के लिए घात-प्रतिघात करने से नहीं चूकती। इसमें हीरोइन को तो अच्छा दिखाना ही था।
खेल आधारित फिल्मों का चलन बढ़ गया है। यह भी उसी कड़ी की फिल्म है। मैरी कॉम और भाग मिल्खा भाग बायोपिक थीं, यह फिल्म केवल कल्पनाओं पर आधारित है। कल्पनाएं भी ऐसी-ऐसी हो गई -- न तो हंसते बनता है और न ही रोते। रिलीज होने के पहले ही फिल्म का काफी प्रचार हो चुका है, लेकिन फिल्म में नयापन कुछ नहीं है।
फिल्म की भाषा और गाने चलताऊ है- जैसे लाइफ में ऊपर जाने के लिए नीचे जाना पड़ता है, बॉक्सरों की उमर और कमर दोनों बढ़ रही है, लक्ष्मी में आग नहीं; झाग, झाग ही झाग है, पिछवाड़ा सिर्फ अपना धोया जाता है, टट्टी मैं साफ करता हूं, बदबू तुमसे आती है। गाने की लाइनें है मुझको शर्म क्या नंगा हू मैं, साला खडूूस बोले मुझे, दिल में हुआ घोटाला।
इमोशन का ओवरडोज है साला खडूस। तमिल में यहीं फिल्म इरूधी सुत्तरू (फाइनल राउंड) के नाम से रिलीज हुई है। फिल्म का निर्देशन सुधा कोंद्रा ने किया है। तमिल में इसे बनाने वाले माधवन खुुद है। पौने दो घंटे की यह फिल्म खिलाड़ी दर्शकों को पसंद आ सकती है।
डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी
Media Activist
साला खडूस में जैसी एक्टिंग ऋतिका कुमारी ने की है, उसमें स्वाभाविकता का पुट है। मैरी कॉम में इससे अच्छी एक्टिंग प्रियंका चोपड़ा ने की थी, जो बॉक्सर नहीं है। इस फिल्म को देखने पर लगता है कि पूरे के पूरे खेल फेडरेशन भ्रष्टाचारों और सेक्स स्कैंडल से भरे पड़े हैं। वास्तव में ऐसा नहीं होता या होता भी होगा, तो अपवाद के रूप में।
फिल्म बॉक्सिंग के बारे में है। फिल्म में आर. माधवन लड़कियों के बॉक्सिंग कोच है, जो खेलों की राजनीति के शिकार हो जाते है। वे अपनी शार्गिदों को कड़ी ट्रेनिंग देते है। इस कारण सभी उन्हें लोग उन्हें खडूस मानते हैं, लेकिन इस फिल्म में माधवन से ज्यादा खडूस ऋतिका कुमारी को दिखाया गया है। फिल्म में बॉक्सिंग, राजनीति और दूसरी घटनाओं के साथ ही प्यार मोहब्बत भी ठूंसी गई है। दो महिला बॉक्सरों के बीच की प्रतिस्पर्धा, जो बहन होते हुए भी एक-दूसरे के लिए घात-प्रतिघात करने से नहीं चूकती। इसमें हीरोइन को तो अच्छा दिखाना ही था।
खेल आधारित फिल्मों का चलन बढ़ गया है। यह भी उसी कड़ी की फिल्म है। मैरी कॉम और भाग मिल्खा भाग बायोपिक थीं, यह फिल्म केवल कल्पनाओं पर आधारित है। कल्पनाएं भी ऐसी-ऐसी हो गई -- न तो हंसते बनता है और न ही रोते। रिलीज होने के पहले ही फिल्म का काफी प्रचार हो चुका है, लेकिन फिल्म में नयापन कुछ नहीं है।
फिल्म की भाषा और गाने चलताऊ है- जैसे लाइफ में ऊपर जाने के लिए नीचे जाना पड़ता है, बॉक्सरों की उमर और कमर दोनों बढ़ रही है, लक्ष्मी में आग नहीं; झाग, झाग ही झाग है, पिछवाड़ा सिर्फ अपना धोया जाता है, टट्टी मैं साफ करता हूं, बदबू तुमसे आती है। गाने की लाइनें है मुझको शर्म क्या नंगा हू मैं, साला खडूूस बोले मुझे, दिल में हुआ घोटाला।
इमोशन का ओवरडोज है साला खडूस। तमिल में यहीं फिल्म इरूधी सुत्तरू (फाइनल राउंड) के नाम से रिलीज हुई है। फिल्म का निर्देशन सुधा कोंद्रा ने किया है। तमिल में इसे बनाने वाले माधवन खुुद है। पौने दो घंटे की यह फिल्म खिलाड़ी दर्शकों को पसंद आ सकती है।
डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी
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