किसे क्या हासिल होगा?
राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
सब हैड - मोदी के महासम्मेलन से किसानों का होगा भला?
नरेंद्र मोदी के अभिनंदन से किसे क्या हासिल होगा? ये सवाल बहस का मुद्दा बन गया है। कांग्रेस ने भी कुछ सवाल खड़े किए हैं जिन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। सवाल ये खड़ा होता है कि क्या वाकई समय रहते देश के साथ मध्यप्रदेश के किसानों का कायाकल्प हो जाएगा, जिन्हें शिवराज सरकार ने बहुत कुछ दिया। फिर भी उन्हें मुआवजे से ज्यादा मरहम का इंतजार है, जो प्राकृतिक आपदा से पीड़ित हैं। जब किसान महासम्मेलन को लेकर सियासत शुरू हो गई है तो ये भी देखना दिलचस्प होगा कि इस किसान महासम्मेलन से किसे क्या हासिल होता है? क्या उनका लक्ष्य पूरा होता है? चाहे फिर वो सूट-बूट की सरकार के आरोप के बाद भूमि अधिग्रहण बिल पर बैकफुट पर आने को मजबूर हुए पीएम नरेंद्र मोदी हों या फिर किसानों के सबसे बड़े हितैषियों में शािमल सीएम शिवराज सिंह चौहान हों या फिर सियासी दल के तौर पर कांग्रेस-बीजेपी ही क्यों न हों।
किसान महासम्मेलन जो सरकारी खर्चे को लेकर विवादों में आ चुका है, उस कार्यक्रम के वक्ताओं की सूची ने आग में घी का काम किया है। इस मंच से पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा जिनका उदबोधन होगा उसमें वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज, केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह और मेजबान सीएम शिवराज सिंह चौहान को शामिल करते हुए एमपी के दूसरे दो केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र तोमर और थावरचंद्र गहलोत को इससे दूर रखा गया है। अब सवाल वक्ताओं के क्राइटेरिया और उनकी मंच पर मौजूदगी को लेकर खड़ा हो सकता है। यदि एमपी का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री के तौर पर यदि सुषमा स्वराज किसानों को संबोधित कर सकती हैं तो मोदी कैबिनेट में शामिल नरेंद्र तोमर और थावरचंद्र गहलोत क्यों नहीं? पार्टी नेतृत्व और पीएमओ के बनाए गए क्राइटेरिये में सुषमा स्वराज को उनकी वरिष्ठता के नाते शामिल करना भले ही मजबूरी हो सकती है, लेकिन तोमर और गहलोत अब इतने भी जूनियर नहीं हैं कि एमपी के मंच पर आए पीएम की मौजूदगी में उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए। यहीं पर सवाल खड़ा होता है कि आखिर फसल बीमा योजना की सौगात के आगाज पर मोदी की इस पहली रैली से प्रदेश और देश और उसके किसानों के साथ किस नेता को सियासी तौर पर क्या हासिल होगा? जहां तक बात पीएम की है तो दिल्ली में जेएनयू को लेकर जब देशभक्ति और देशद्रोह को लेकर माहौल गरमा दिया है तब वो मध्यप्रदेश के 6 लाख किसानों से रूबरू होने जा रहे हैं। यानी बजट सत्र से ठीक पहले देश के ह्दय प्रदेश मध्यप्रदेश से वो सबसे बड़ा संदेश उन किसानों को देंगे जो चुनाव में मुद्दा बनते रहे तो कभी आत्महत्या, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित समस्या और फिर मुआवजे को लेकर परेशान रहे। फसल बीमा योजना की सौगात उन्हें बड़ी राहत के तौर पर दी जा रही है तो सवाल ये खड़ा होता है कि हैरान-परेशान किसान खुशहाल हो जाएगा या फिर तकनीकी और नियम-कानून में उलझकर सपने पूरे करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। ये मोदी सरकार की एक महत्वाकांक्षी और बड़ी योजना है जो बीजेपी के वोट बैंक को मजबूत कर सकती है। यही नहीं मोदी की उस छवि में भी निखार ला सकती है जिसे विरोधियों खासकर राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल की आड़ में उनकी छवि को धूमिल करने के लिए सूट-बूट की सरकार का जुमाल उछाला था जिसके बाद ये बिल सरकार को वापस लेना पड़ा था। उस वक्त केंद्र सरकार पर चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप विपक्ष ने लगाया था। देखना दिलचस्प होगा कि युवाओं और बेरोजगारों को स्टार्टअप योजना से रिझाने वाले और मेक इन इंडिया का आगाज कर देश के कायाकल्प का भरोसा दिलाने वाले मोदी अब किसानों की नब्ज पर हाथ रखकर उन्हें हासिल होता है।
सवाल शिवराज के सियासी हितों को लेकर भी खड़े होंगे जिन्होंने मोदी को सबसे पहले एमपी के किसानों से रूबरू कराकर बाजी मार ली है और जिनके लिए 6 लाख किसानों को एक पंडाल में खड़ा करना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले वो जम्बूरी मैदान में बड़े कार्यक्रम कर अपनी प्रबंधन क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं। इस बार तो किसानों को बीमा की बड़ी सौगात मिलने जा रही है और कार्यक्रम का खर्च सरकार उठा रही है। इसके बाद भी शिवराज के लिए चुनौती होगी कि मोदी के इस दौरे को आगामी तीन और रैलियों से बेहतर और अलग साबित करें साथ ही मध्यप्रदेश के किसानों में ये भरोसा पैदा करें कि उनके अच्छे दिन आ गए हैं और उन्हें उनका हक समय रहते मिलेगा। शिवराज को कांग्रेस द्वारा खड़े किए गए उन सवालों का जवाब देना होगा जो मोदी की यात्रा से पहले अरुण यादव ने खड़ेकिए हैं। चाहे फिर वो राज्य सरकार के आर्थिक दिवालियापन से जुड़ा हो जिस पर 1 लाख 71 हजार करोड़ की कर्ज है और किसानों को फसल बीमा की राशि में राज्य सरकार का अंशदान करने के लिए धन का अभाव है। सवाल बीजेपी की 12 साला सरकार में रहते प्रदेश में 29 हजार से अधिक किसानों की आत्महत्याओं का भी खड़ा किया गया है जिसमें प्राकृतिक आपदा से पीड़ित पिछले 7 महीने में 2230 किसानों की आत्महत्या का है। सवाल 22 हजार करोड़ की क्षति से पीड़ित किसानों को केंद्र द्वारा विशेष पैकेज के नाम पर सीमित मुआवजा राशि का भी है। यहां पर बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि जितना पैसा पीएम मोदी के कार्यक्रम को सफल बनाने और भीड़ जुटाने के लिए खर्च किया जा रहा है क्या वो राशि बीमा के लिए जरूरी किसानों के प्रीमियम में खर्च करके एक अलग मिसाल कायम नहीं की जा सकती थी। निश्चित तौर पर शिवराज जो खुद बड़े किसान नेता हैं पीएम के दौरे के बाद उनके और करीब ही नहीं भरोसेमंद साबित होंगे लेकिन कुछ दिन बाद ही विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है जिसमें उन्हें विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा। ये देखना भी दिलचस्प होगा कि मोदी के इस दौरे के बाद जब भी शिवराज कैबिनेट का विस्तार करेंगे तब वो क्या संदेश देते हैं।
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Rakesh Agnihotri
political editor
स्वराजExpress MP/CG
सब हैड - मोदी के महासम्मेलन से किसानों का होगा भला?
नरेंद्र मोदी के अभिनंदन से किसे क्या हासिल होगा? ये सवाल बहस का मुद्दा बन गया है। कांग्रेस ने भी कुछ सवाल खड़े किए हैं जिन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है। सवाल ये खड़ा होता है कि क्या वाकई समय रहते देश के साथ मध्यप्रदेश के किसानों का कायाकल्प हो जाएगा, जिन्हें शिवराज सरकार ने बहुत कुछ दिया। फिर भी उन्हें मुआवजे से ज्यादा मरहम का इंतजार है, जो प्राकृतिक आपदा से पीड़ित हैं। जब किसान महासम्मेलन को लेकर सियासत शुरू हो गई है तो ये भी देखना दिलचस्प होगा कि इस किसान महासम्मेलन से किसे क्या हासिल होता है? क्या उनका लक्ष्य पूरा होता है? चाहे फिर वो सूट-बूट की सरकार के आरोप के बाद भूमि अधिग्रहण बिल पर बैकफुट पर आने को मजबूर हुए पीएम नरेंद्र मोदी हों या फिर किसानों के सबसे बड़े हितैषियों में शािमल सीएम शिवराज सिंह चौहान हों या फिर सियासी दल के तौर पर कांग्रेस-बीजेपी ही क्यों न हों।
किसान महासम्मेलन जो सरकारी खर्चे को लेकर विवादों में आ चुका है, उस कार्यक्रम के वक्ताओं की सूची ने आग में घी का काम किया है। इस मंच से पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा जिनका उदबोधन होगा उसमें वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज, केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह और मेजबान सीएम शिवराज सिंह चौहान को शामिल करते हुए एमपी के दूसरे दो केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र तोमर और थावरचंद्र गहलोत को इससे दूर रखा गया है। अब सवाल वक्ताओं के क्राइटेरिया और उनकी मंच पर मौजूदगी को लेकर खड़ा हो सकता है। यदि एमपी का प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री के तौर पर यदि सुषमा स्वराज किसानों को संबोधित कर सकती हैं तो मोदी कैबिनेट में शामिल नरेंद्र तोमर और थावरचंद्र गहलोत क्यों नहीं? पार्टी नेतृत्व और पीएमओ के बनाए गए क्राइटेरिये में सुषमा स्वराज को उनकी वरिष्ठता के नाते शामिल करना भले ही मजबूरी हो सकती है, लेकिन तोमर और गहलोत अब इतने भी जूनियर नहीं हैं कि एमपी के मंच पर आए पीएम की मौजूदगी में उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए। यहीं पर सवाल खड़ा होता है कि आखिर फसल बीमा योजना की सौगात के आगाज पर मोदी की इस पहली रैली से प्रदेश और देश और उसके किसानों के साथ किस नेता को सियासी तौर पर क्या हासिल होगा? जहां तक बात पीएम की है तो दिल्ली में जेएनयू को लेकर जब देशभक्ति और देशद्रोह को लेकर माहौल गरमा दिया है तब वो मध्यप्रदेश के 6 लाख किसानों से रूबरू होने जा रहे हैं। यानी बजट सत्र से ठीक पहले देश के ह्दय प्रदेश मध्यप्रदेश से वो सबसे बड़ा संदेश उन किसानों को देंगे जो चुनाव में मुद्दा बनते रहे तो कभी आत्महत्या, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित समस्या और फिर मुआवजे को लेकर परेशान रहे। फसल बीमा योजना की सौगात उन्हें बड़ी राहत के तौर पर दी जा रही है तो सवाल ये खड़ा होता है कि हैरान-परेशान किसान खुशहाल हो जाएगा या फिर तकनीकी और नियम-कानून में उलझकर सपने पूरे करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। ये मोदी सरकार की एक महत्वाकांक्षी और बड़ी योजना है जो बीजेपी के वोट बैंक को मजबूत कर सकती है। यही नहीं मोदी की उस छवि में भी निखार ला सकती है जिसे विरोधियों खासकर राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण बिल की आड़ में उनकी छवि को धूमिल करने के लिए सूट-बूट की सरकार का जुमाल उछाला था जिसके बाद ये बिल सरकार को वापस लेना पड़ा था। उस वक्त केंद्र सरकार पर चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने का आरोप विपक्ष ने लगाया था। देखना दिलचस्प होगा कि युवाओं और बेरोजगारों को स्टार्टअप योजना से रिझाने वाले और मेक इन इंडिया का आगाज कर देश के कायाकल्प का भरोसा दिलाने वाले मोदी अब किसानों की नब्ज पर हाथ रखकर उन्हें हासिल होता है।
सवाल शिवराज के सियासी हितों को लेकर भी खड़े होंगे जिन्होंने मोदी को सबसे पहले एमपी के किसानों से रूबरू कराकर बाजी मार ली है और जिनके लिए 6 लाख किसानों को एक पंडाल में खड़ा करना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले वो जम्बूरी मैदान में बड़े कार्यक्रम कर अपनी प्रबंधन क्षमता का लोहा मनवा चुके हैं। इस बार तो किसानों को बीमा की बड़ी सौगात मिलने जा रही है और कार्यक्रम का खर्च सरकार उठा रही है। इसके बाद भी शिवराज के लिए चुनौती होगी कि मोदी के इस दौरे को आगामी तीन और रैलियों से बेहतर और अलग साबित करें साथ ही मध्यप्रदेश के किसानों में ये भरोसा पैदा करें कि उनके अच्छे दिन आ गए हैं और उन्हें उनका हक समय रहते मिलेगा। शिवराज को कांग्रेस द्वारा खड़े किए गए उन सवालों का जवाब देना होगा जो मोदी की यात्रा से पहले अरुण यादव ने खड़ेकिए हैं। चाहे फिर वो राज्य सरकार के आर्थिक दिवालियापन से जुड़ा हो जिस पर 1 लाख 71 हजार करोड़ की कर्ज है और किसानों को फसल बीमा की राशि में राज्य सरकार का अंशदान करने के लिए धन का अभाव है। सवाल बीजेपी की 12 साला सरकार में रहते प्रदेश में 29 हजार से अधिक किसानों की आत्महत्याओं का भी खड़ा किया गया है जिसमें प्राकृतिक आपदा से पीड़ित पिछले 7 महीने में 2230 किसानों की आत्महत्या का है। सवाल 22 हजार करोड़ की क्षति से पीड़ित किसानों को केंद्र द्वारा विशेष पैकेज के नाम पर सीमित मुआवजा राशि का भी है। यहां पर बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि जितना पैसा पीएम मोदी के कार्यक्रम को सफल बनाने और भीड़ जुटाने के लिए खर्च किया जा रहा है क्या वो राशि बीमा के लिए जरूरी किसानों के प्रीमियम में खर्च करके एक अलग मिसाल कायम नहीं की जा सकती थी। निश्चित तौर पर शिवराज जो खुद बड़े किसान नेता हैं पीएम के दौरे के बाद उनके और करीब ही नहीं भरोसेमंद साबित होंगे लेकिन कुछ दिन बाद ही विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है जिसमें उन्हें विपक्ष के सवालों का जवाब देने के लिए तैयार रहना होगा। ये देखना भी दिलचस्प होगा कि मोदी के इस दौरे के बाद जब भी शिवराज कैबिनेट का विस्तार करेंगे तब वो क्या संदेश देते हैं।
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Rakesh Agnihotri
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