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शिवराज का नया एजेंडा ‘गरीब नवाज’

राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
मैहर में मिली जीत के साथ ही शिवराज सिंह चौहान ने मिशन-2018 के अपने एजेंडे में खुद को गरीबों का हिमायती साबित कर उन मतदाताओं पर अपनी नजर गड़ा दी है िजन्हें उस रहनुमा की तलाश है, जो उनकी जिंदगी खुशहाल बना सके.. इस वोट बैंक पर बीजेपी ने नजर गड़ा दी है और शुरुआत खुद शिवराज मैहर उपचुनाव के ऐलान से पहले करीब 115 गांवों के गरीबों को बीपीएल कार्ड मुहैया कराकर कर चुके हैं.. जीत की घोषणा के बाद बीजेपी दफ्तर में सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस वोट बैंक के प्रति अपनी कटिबद्धता जाहिर कर ये संकेत दे दिया कि 12 साल सत्ता में रहने के बाद बीजेपी को अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए जात-पांत से ऊपर उठकर वर्ग-समुदाय की तलाश थी वो उन्हें मिल गया है जिन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़कर और उन्हें उनका हक देकर अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सरकार में लौट सकती है.. यहां सवाल ये खड़ा होता है कि क्या विकास पुरुष शिवराज अब खुद को गरीबों का मसीहा बनाने और गरीब नवाज साबित करने की जिस लाइन पर आगे बढ़ रहे हैं क्या उससे बीजेपी का वोट बैंक बढ़ेगा?

मैहर चुनाव के अपने मायने हैं..यानी गलतियों से सीख लेकर चुनाव जीतना शिवराज को बखूबी आता है.. झाबुआ के बाद यदि मैहर भी बीजेपी हारती तो शिवराज के जादू पर न सिर्फ सवाल खड़े होते बल्कि मिशन-2018 में उनकी नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े होते.. कह सकते हैं कि झाबुआ ने सीएम की जो किरकिरी कराई थी उसे शिवराज ही नहीं बीजेपी को बाहर निकालने में मैहर संजीवनी साबित हुआ.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किसान महासम्मेलन से पहले यदि मैहर में कमल नहीं खिलता तो शेरपुर में किसानों को जुटाने और उनमें जोश भरने के लिए कितनी मशक्कत शिवराज को करना पड़ती.. बीजेपी ने जहां अगले चुनाव के लिए माहौल बनाने में सफलता  हािसल कर ली है तो उधर कांग्रेस में घमासान मचना तय है.. क्योंकि अब झाबुआ की जीत का श्रेय अरुण यादव और कांग्रेस के क्षत्रपों को नहीं जाएगा और उसे सिर्फ और सिर्फ कांतिलाल भूरिया की जीत जब बताया जाएगा तो फिर नेतृत्व परिवर्तन की मांग जोर पकड़ेगी यानी जिनदिग्गजों ने मोहन प्रकाश के कहने पर मैहर में प्रचार किया वो अपनी भड़ास अरुण यादव के साथ अजय सिंह पर भी निकालने से बाज नहीं आएंगे.. सबसे ज्यादा नुकसान अजय सिंह का हुआ है जो न सिर्फ नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में थे बल्कि राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर एक बड़ी भूमिका में नजर आ सकते थे क्योंकि बीजेपी ये प्रचारित करने लगी है कि कांग्रेस को जो भी वोट मिले हैं वो मनीष पटेल के बसपा के प्रभाव वाले और कुर्मी मतदाता हैं यानी कांग्रेस के वोट बैंक में भी नारायण ने सेंध लगाई और गुटीय राजनीति के चलते अजय सिंह के विरोधियों ने भी उन्हें नीचा दिखाने के लिए भाजपा का साथ दिया.. शिवराज की मानें तो इस जीत का श्रेय गरीबों को जाता है और वो पीएम मोदी को इस जीत का तोहफा देंगे.. बीजेपी का चेहरा शिवराज थे जिन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत पहले और अंतिम दौर में सघन सभाएं और रोड शो कर कार्यकर्ताओं में जोश भरा.. इस उपचुनाव में हारने या कोई अनहोनी होने पर जिनकी सबसे ज्यादा किरकिरी हो सकती है उन्हें भी इसका श्रेय जरूर दिया जाएगा चाहे वो बतौर प्रभारी मंत्री पूरे समय चुनाव की कमान संभाले रहे राजेंद्र शुक्ल हों या फिर संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन का माइक्रो मैनेजमेंट और निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष घोषित होने के बाद नंदकुमार सिंह चौहान की सफल सभाएं ही क्योें न हों.. राजेंद्र शुक्ला की विनम्रता और गुप्त रणनीति ने जिस तरह गणेश सिंह और नारायण त्रिपाठी को एक पलड़े में साथ खड़ा दिखाकर हर जाति-समुदाय के बीच शिवराज के विकास के एजेंडे को सामने रखा उसका परिणाम है कि जीत ने मैहर में एक नया इतिहास लिखा.. खासतौर से मंत्री रामपाल सिंह की सक्रियता और उनकी हर वर्ग में बदलती भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है, जिनके मुताबिक कांग्रेस के सभी दिग्गजों, क्षत्रपों ही नहीं, देश के अलग-अलग राज्यों से बुलाए गए समर्थकों द्वारा बनाए गए माहौल में बीजेपी का झंडा बुलंद करना एक बड़ी चुनौती बन गया था..

मैहर विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत के अपने मायने हैं जिसने यदि झाबुआ में मिली जीत के बाद आत्ममुग्ध कांग्रेस को आईना दिखाकर ये सोचने को मजबूर किया है कि कमलनाथ,दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गजों को पैराशूट से उतारकर चुनाव नहीं जीता जा सकता है.. इसके लिए जमीन पर उतरना होगा और उस वर्ग की सुध लेना होगी जो खुद को गरीब और बेसहारा ही नहीं उपेक्षित समझता है.. आज इस जीत की हकदार बीजेपी और उसके नेता शिवराज की दूरदर्शिता यानी उसके नए एजेंडे का आंकलन  करना लाजमी है.. क्योंकि प्रदेश मुख्यालय में जीत के जश्न के दौरान शिवराज ने साफ कर दिया कि बीजेपी के प्रति दलित, आिदवासी ही नहीं गरीबों का झुकाव भी बढ़ा है और उनकी सरकार इस वर्ग के कल्याण के लिए कृतसंकल्पित है.. आदिवासी बहुल झाबुआ में मिली हार के बाद शिवराज से इस वर्ग का मोह भंग होने के जो आरोप लगाए जा रहे थे शायद उसको ध्यान में रखते हुए सीएम शिवराज ने इस वर्ग विशेष पर अपनी नजर गड़ा दी है..  जिस जीवंत मुद्दे को कांग्रेस भुना सकती थी उसकी सुध देर से ही सही मुख्यमंत्री ने ली और मैहर में ऐसा माहौल बना कि जब ईवीएम खुली तो कांग्रेस शुरुआती दौर से ही पिछड़ गई.. चुनाव से पहले शिवराज ने मैहर को मिनी स्मार्ट सिटी बनाने के लिए करोड़ों की जो घोषणाएं की थीं उसने भले ही मतदाताओं को विकास का सपना दिखाया लेकिन इससे ज्यादा बड़ी सोच शिवराज की तब सार्थक सिद्ध हुई जब उन्होेंने नगरीय प्रशासन विभाग के कमिश्नर और अपने सचिव विवेक अग्रवाल को लाव लश्कर के साथ मैहर में विशेष कैंप लगाकर करीब 115 गांवों के गरीबों को बीपीएलधारी बनाकर एक बड़ी सौगात दी थी.. इस क्षेत्र के मतदाताओं ने चुनाव में बीजेपी को ताकत और समर्थन के साथ वोट देकर मुख्यमंत्री को कुछ ऐसा ही पूरे प्रदेश में करने को विवश कर दिया..

मैहर में 1990 के बाद हुआ ये सातवां चुनाव था जिनसे सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर 28 हजार से ज्यादा वोटों से जीत का मैहर में एक नया इतिहास लिखा.. इससे पहले सबसे बड़ी जीत करीब 15 हजार 740 मतों की 1990 में जदयू की हुई थी तो बीजेपी ने शिवराज के सीएम रहते 2008 में 13 हजार 986 मतों से कांग्रेस को हराया था.. खुद नारायण त्रिपाठी 2003 में सपा उम्मीदवार के तौर पर 13 हजार 186 तो 2013 में कांग्रेस के टिकट पर 7 हजार 745 मतों से जीते थे.. यानी 28 हजार से ज्यादा वोट से मिली बीजेपी की इस जीत के अपने मायने हैं.. इसमें कोई दो राय नहीं कि नारायण त्रिपाठी फैंस क्लब और उनके व्यक्तिगत समर्थक माने जाने वाले वोट बैंक बीजेपी के परंपरागत मतदाताओं को साथ जोड़ने में सफल रहा.. कांग्रेस के बहुत पीछे छूट जाने के साथ बसपा और सपा का करीब 10-10 हजार के अंदर सिकुड़ जाना इस बात का बड़ा संकेत है कि कम से कम विंध्य की राजनीति में तीसरे दल की राजनीति करने वाले नेताओं से जनता का मोह भंग हो चुका है.. शिवराज सिंह चौहान, नंदकुमार सिंह चौहान और अरविन्द मेनन की तिकड़ी की दूरदर्शिता का कमाल था जो उन्होंने बीएसपी को उपचुनाव में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारने को मजबूर किया.. सपा और बसपा की प्रतिस्पर्धा के बावजूद दोनों दलों के समर्थक बड़ी संख्या में बीजेपी के साथ खड़े नजर आए.. मतलब साफ है कि बीजेपी ने बसपा, सपा ही नहीं गोंगपा समेत दूसरे क्षेत्रीय दलों में सेंधमारी कर अपने वोट बैंक में इजाफा किया है.. बसपा के लिए ये उपचुनाव आत्मघाती माना जाएगा और जिसका असर अगले विधानसभा चुनाव में देखने को भी मिल सकता है क्योंकि उसकी बंद मुट्ठी खुल गई है.. चुनाव परिणाम से संदेश उन बाहरी नेताओं को भी चला गया है जो कांग्रेस, बसपा और दूसरे दल छोड़कर बीजेपी में शामिल होते हैं और बड़ी जीत हासिल करते हैं क्योंकि कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल करने वाले संजय पाठक ही नहीं, नारायण त्रिपाठी ने बीजेपी से बतौर उम्मीदवार अपनी जीत का फासला आगे बढ़ाया है, यानी बीजेपी का कार्यकर्ता अनुशासन के दायरे में ही सही अब बाहरी को गले लगाने लगा है.. सवाल ये खड़ा होता है कि क्या शिवराज का नया एजेंडा ‘गरीब नवाज’ कांग्रेस के लिए अगले चुनाव में बड़ी मुसीबत साबित होगा जो बीजेपी के खिलाफ एंटी इंकम्बैंसी का तोड़ भी साबित होगा..


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Rakesh Agnihotri
political editor
स्वराजExpress MP/CG

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