मध्यप्रदेश में बाढ़ से भारी जान माल का भारी नुकसान, किसान तबाह
सतना/रीवा। भीषण बाढ़ के कारण किसानी चौपट हो गई है। धान की फसलें पूरी तरह स्वाहा हो चुकी हैं। बताया गया कि किसानों ने 50 हजार हेक्टयर में धान की फसल लगाई थी जो दांव पर लग गई है। बारिश का सिलसिला एक दो दिन और चलता रहा तो अन्नदाता अन्य विहीन हो जाएगा। बाढ़ के चलते खेतों में हुए जलभराव ने किसानों के होश उड़ा दिए हैं।
जलस्तर कम होने के बाद किसान न केवल खेतों से पानी निकालने में जुट गए हैं, बल्कि उनके द्वारा कृषि वैज्ञानिकों से सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। बारिश बंद होने के बाद से वैज्ञानिकों से संपर्क करने वाले किसानों की संख्या के मद्देनजर यही साबित हो रहा है कि किसान हर हाल में अपनी फसल बचाने की कोशिश में जुट गया है।
मौसम की मार
जिले में किसान लगातार तीन साल से मौसम की मार झेल रहा है। एक हफ्ते से लगातार चल रही बारिश अन्नदाता फिर सकते में आ गया है। कृषि महाविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से बुधवार को आधा सैकड़ा से अधिक किसानों ने संपर्क किया है। हर किसान तिल के अलावा अरहर, मूंग व उड़द की फसल को सुरक्षित करने का उपाय पूछ रहा है।
किसान करें रोग प्रबंधन का उपाय
किसानों को वैज्ञानिकों का विमर्श है कि सबसे पहले खेत से पानी को निकाल दिया जाए। खासतौर पर तिल व दलहन की फसल में पानी का भराव फसल को रोग व कीट दोनों से प्रभावित करेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक किसान पानी की निकासी के बाद ही कीट व रोग प्रबंधन का उपाय करें। जलभराव की स्थिति में कोई भी उपाय कारगर नहीं होगा।
फसल को सुरक्षित करने के उपाय
पानी निकालने के बाद किसान सबसे पहले फसल में एनपीके 19-19-19 का छिड़काव करें। इसके लिए एक किलोग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाएं। इससे पौधे पुष्ट होंगे।
तिल व सब्जी में पछेती झुलसा रोग के लिए किसानों को मेटालैक्सिल प्लस मैंकोजेब का ढाई ग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाकर छिड़काव करना होगा। इससे रोग से राहत मिलेगी।
मूंग व उड़द की फसल में भूरे धब्बे से निजात पाने के लिए मैंकोजेब ढाई ग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाकर छिड़काव करें। इससे इन दोनों फसलों में रोग की संभावना कम होगी।
पौधों में फूल लग जाने की स्थिति में नाइट्रोजन युक्त खाद का छिड़काव नहीं करें। छिड़काव करने की स्थिति में पौधों में वानस्पतिक वृद्धि होगी। इससे उत्पादकता प्रभावित होगी।
जलस्तर कम होने के बाद किसान न केवल खेतों से पानी निकालने में जुट गए हैं, बल्कि उनके द्वारा कृषि वैज्ञानिकों से सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। बारिश बंद होने के बाद से वैज्ञानिकों से संपर्क करने वाले किसानों की संख्या के मद्देनजर यही साबित हो रहा है कि किसान हर हाल में अपनी फसल बचाने की कोशिश में जुट गया है।
मौसम की मार
जिले में किसान लगातार तीन साल से मौसम की मार झेल रहा है। एक हफ्ते से लगातार चल रही बारिश अन्नदाता फिर सकते में आ गया है। कृषि महाविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से बुधवार को आधा सैकड़ा से अधिक किसानों ने संपर्क किया है। हर किसान तिल के अलावा अरहर, मूंग व उड़द की फसल को सुरक्षित करने का उपाय पूछ रहा है।
किसान करें रोग प्रबंधन का उपाय
किसानों को वैज्ञानिकों का विमर्श है कि सबसे पहले खेत से पानी को निकाल दिया जाए। खासतौर पर तिल व दलहन की फसल में पानी का भराव फसल को रोग व कीट दोनों से प्रभावित करेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक किसान पानी की निकासी के बाद ही कीट व रोग प्रबंधन का उपाय करें। जलभराव की स्थिति में कोई भी उपाय कारगर नहीं होगा।
फसल को सुरक्षित करने के उपाय
पानी निकालने के बाद किसान सबसे पहले फसल में एनपीके 19-19-19 का छिड़काव करें। इसके लिए एक किलोग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाएं। इससे पौधे पुष्ट होंगे।
तिल व सब्जी में पछेती झुलसा रोग के लिए किसानों को मेटालैक्सिल प्लस मैंकोजेब का ढाई ग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाकर छिड़काव करना होगा। इससे रोग से राहत मिलेगी।
मूंग व उड़द की फसल में भूरे धब्बे से निजात पाने के लिए मैंकोजेब ढाई ग्राम प्रति लीटर के अनुपात में घोल बनाकर छिड़काव करें। इससे इन दोनों फसलों में रोग की संभावना कम होगी।
पौधों में फूल लग जाने की स्थिति में नाइट्रोजन युक्त खाद का छिड़काव नहीं करें। छिड़काव करने की स्थिति में पौधों में वानस्पतिक वृद्धि होगी। इससे उत्पादकता प्रभावित होगी।
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