रीवा में पहला पारिजात वृक्ष, भगवान कृष्ण लाये थे स्वर्ग से
लगभग 5,300 वर्ष पूर्व रानी की मांग पर पारिजात का एक पेड़ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वर्ग से लाकर वर्तमान रीवा में लगाया था। वैसे तो पारिजात वृक्ष पुरे भारत में पाये जाते है, पर रीवा का पारिजात वृक्ष अपने आप कई मायनों में अनूठा है तथा यह अपनी तरह का पुरे भारत में इकलौता पारिजात वृक्ष है। यह पेंड़ मध्यप्रदेश के रीवा जिले में शिल्पी प्लाजा ए-ब्लाॅक परिसर, उद्यान विभाग के सामने था।
कैसे आया पारिजात धरती (वर्तमान-रीवा) में
एक बार देवऋषि नारद जब धरती पर श्रीकृष्ण से मिलने आये तो अपने साथ पारिजात के सुन्दर पुष्प ले कर आये। उन्होंने वे पुष्प श्री कृष्ण को भेट किये। श्री कृष्ण ने पुष्प साथ बैठी अपनी पत्नी रुक्मणि को दे दिए। लेकिन जब श्री कृष्ण कि दूसरी पत्नी सत्य भामा को पता चला कि स्वर्ग से आये पारिजात के सारे पुष्प श्री कृष्ण ने रुक्मणि को दे दिए तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्री कृष्ण के सामने जिद पकड़ ली कि उन्हें अपनी वाटिका के लिये पारिजात वृक्ष चाहिए। श्रीकृष्ण के लाख समझाने पर भी रानी सत्यभामा नहीं मानी।
अंततः सत्यभामा कि जिद के आगे झुकते हुए श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग पारिजात वृक्ष लाने के लिए भेजा पर इंद्र ने पारिजात वृक्ष देने से मना कर दिया। दूत ने जब यह बात आकर श्री कृष्ण को बताई तो उन्होंने स्व्यं ही इंद्र पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को पराजित करके पारिजात वृक्ष को जीत लिया। इससे रुष्ट होकर इंद्र ने पारिजात वृक्ष को फल से वंचित हो जाने का श्राप दे दिया और तभी से पारिजात वृक्ष फल विहीन हो गया।
रीवा में थी वाटिका
श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को ला कर सत्यभामा कि वाटिका में रोपित कर दिया (वर्तमान रीवा, मध्यप्रदेश) पर सत्यभामा को सबक सिखाने के लिया ऐसा कर दिया कि जब पारिजात वृक्ष पर पुष्प आते तो गिरते वो रुक्मणि कि वाटिका में और यही कारण है कि पारिजात के पुष्प वृक्ष के नीचे न गिरकर वृक्ष से दूर गिरते है। इस तरह पारिजात वृक्ष, स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गया।
इसके बाद जब पाण्डवों ने कंटूर (वर्तमान बांराबांकी, उत्तरप्रदेश) में अज्ञातवास किया तो उन्होंने वहाँ माता कुन्ती के लिए भगवान शिव के एक मंदिर कि स्थापना कि जो कि अब कुन्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। कहते है कि माता कुन्ती पारिजात के पुष्पों से भगवान् शंकर कि पूजा अर्चना कर सके इसलिए पांडवों ने सत्यभामा कि वाटिका से बीज लाकर पेड़ स्थापित कर दिया और तभी पाण्डवों द्वारा लाया गया पारिजात वृक्ष बांराबांकी पर है।
जो वर्तमान में ऐतिहासिक संपदाओं के संरक्षण में कमी एवं जागरूकता न हो पाने के कारण शहर के विकास की बली चढ़ गया।
पारिजात वृक्ष-एक परिचय
आमतौर पर पारिजात वृक्ष 10 फीट से 40 फीट तक ऊंचे होता है, पर रीवा का पारिजात वृक्ष लगभग 45 फीट ऊंचा और 55 फीट मोटा है। इस पारिजात वृक्ष की खासियत यह थी कि यह अपने आप में एकलौता ऐसा वृक्ष था जिसपर पूरे वर्ष सफेद रंग के खूबसूरत फूल उगते थे, आमतौर पर दुनियाभर में मौजूद पारिजात वृक्षों में जून के आस पास फूल खिलते है। पारिजात के फूल केवल रात कि खिलते है और सुबह होते ही मुरझा जाते है। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्त्व है। पर एक बात ध्यान रहे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते है जो वृक्ष से टूट कर गिर जाते है, वृक्ष से फूल तोड़ने कि मनाही है।
पारिजात वृक्ष के ऐतिहासिक महत्त्व व इसकी दुर्लभता को देखते हुए सरकार ने इसे संरक्षित घोषित कर दिया है। भारत सरकार ने इस पर एक डाक टिकट भी जारी किया है।
पारिजात वृक्ष के औषधीय गुण
पारिजात को आयुर्वेद में हरसिंगार भी कहा जाता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।
कैसे आया पारिजात धरती (वर्तमान-रीवा) में
एक बार देवऋषि नारद जब धरती पर श्रीकृष्ण से मिलने आये तो अपने साथ पारिजात के सुन्दर पुष्प ले कर आये। उन्होंने वे पुष्प श्री कृष्ण को भेट किये। श्री कृष्ण ने पुष्प साथ बैठी अपनी पत्नी रुक्मणि को दे दिए। लेकिन जब श्री कृष्ण कि दूसरी पत्नी सत्य भामा को पता चला कि स्वर्ग से आये पारिजात के सारे पुष्प श्री कृष्ण ने रुक्मणि को दे दिए तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्री कृष्ण के सामने जिद पकड़ ली कि उन्हें अपनी वाटिका के लिये पारिजात वृक्ष चाहिए। श्रीकृष्ण के लाख समझाने पर भी रानी सत्यभामा नहीं मानी।
अंततः सत्यभामा कि जिद के आगे झुकते हुए श्री कृष्ण ने अपने दूत को स्वर्ग पारिजात वृक्ष लाने के लिए भेजा पर इंद्र ने पारिजात वृक्ष देने से मना कर दिया। दूत ने जब यह बात आकर श्री कृष्ण को बताई तो उन्होंने स्व्यं ही इंद्र पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को पराजित करके पारिजात वृक्ष को जीत लिया। इससे रुष्ट होकर इंद्र ने पारिजात वृक्ष को फल से वंचित हो जाने का श्राप दे दिया और तभी से पारिजात वृक्ष फल विहीन हो गया।
रीवा में थी वाटिका
श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष को ला कर सत्यभामा कि वाटिका में रोपित कर दिया (वर्तमान रीवा, मध्यप्रदेश) पर सत्यभामा को सबक सिखाने के लिया ऐसा कर दिया कि जब पारिजात वृक्ष पर पुष्प आते तो गिरते वो रुक्मणि कि वाटिका में और यही कारण है कि पारिजात के पुष्प वृक्ष के नीचे न गिरकर वृक्ष से दूर गिरते है। इस तरह पारिजात वृक्ष, स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गया।
इसके बाद जब पाण्डवों ने कंटूर (वर्तमान बांराबांकी, उत्तरप्रदेश) में अज्ञातवास किया तो उन्होंने वहाँ माता कुन्ती के लिए भगवान शिव के एक मंदिर कि स्थापना कि जो कि अब कुन्तेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। कहते है कि माता कुन्ती पारिजात के पुष्पों से भगवान् शंकर कि पूजा अर्चना कर सके इसलिए पांडवों ने सत्यभामा कि वाटिका से बीज लाकर पेड़ स्थापित कर दिया और तभी पाण्डवों द्वारा लाया गया पारिजात वृक्ष बांराबांकी पर है।
जो वर्तमान में ऐतिहासिक संपदाओं के संरक्षण में कमी एवं जागरूकता न हो पाने के कारण शहर के विकास की बली चढ़ गया।
पारिजात वृक्ष-एक परिचय
आमतौर पर पारिजात वृक्ष 10 फीट से 40 फीट तक ऊंचे होता है, पर रीवा का पारिजात वृक्ष लगभग 45 फीट ऊंचा और 55 फीट मोटा है। इस पारिजात वृक्ष की खासियत यह थी कि यह अपने आप में एकलौता ऐसा वृक्ष था जिसपर पूरे वर्ष सफेद रंग के खूबसूरत फूल उगते थे, आमतौर पर दुनियाभर में मौजूद पारिजात वृक्षों में जून के आस पास फूल खिलते है। पारिजात के फूल केवल रात कि खिलते है और सुबह होते ही मुरझा जाते है। इन फूलों का लक्ष्मी पूजन में विशेष महत्त्व है। पर एक बात ध्यान रहे कि पारिजात वृक्ष के वे ही फूल पूजा में काम लिए जाते है जो वृक्ष से टूट कर गिर जाते है, वृक्ष से फूल तोड़ने कि मनाही है।
पारिजात वृक्ष के ऐतिहासिक महत्त्व व इसकी दुर्लभता को देखते हुए सरकार ने इसे संरक्षित घोषित कर दिया है। भारत सरकार ने इस पर एक डाक टिकट भी जारी किया है।
पारिजात वृक्ष के औषधीय गुण
पारिजात को आयुर्वेद में हरसिंगार भी कहा जाता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है। इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।
सम्भार : www.rewariyasat.com
No comments
सोशल मीडिया पर सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त करते हुए एमपी ऑनलाइन न्यूज़ मप्र का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला रीजनल हिन्दी न्यूज पोर्टल बना हुआ है। अपने मजबूत नेटवर्क के अलावा मप्र के कई स्वतंत्र पत्रकार एवं जागरुक नागरिक भी एमपी ऑनलाइन न्यूज़ से सीधे जुड़े हुए हैं। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ एक ऐसा न्यूज पोर्टल है जो अपनी ही खबरों का खंडन भी आमंत्रित करता है एवं किसी भी विषय पर सभी पक्षों को सादर आमंत्रित करते हुए प्रमुखता के साथ प्रकाशित करता है। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ की अपनी कोई समाचार नीति नहीं है। जो भी मप्र के हित में हो, प्रकाशन हेतु स्वीकार्य है। सूचनाएँ, समाचार, आरोप, प्रत्यारोप, लेख, विचार एवं हमारे संपादक से संपर्क करने के लिए कृपया मेल करें Email- editor@mponlinenews.com/ mponlinenews2013@gmail.com