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आज ही के दिन डूबा था सबसे बड़ा जहाज पढ़े पूरी खबर क्या था मामला देखिए PHOTOS

15 अप्रैल 1912 को दुनिया का सबसे बड़ा और आलीशान जहाज आरएमएस टाइटैनिक समुद्र की गहराइयों में समा गया था और अपने साथ ले गया था सैकड़ों लोगों की जिंदगी। टाइटैनिक के बनने और डूबने की कहानी भी इसकी विशालता की तरह ही अमर हो गई है। ऐसा कहा जाता था कि टाइटैनिक कभी नहीं डूब सकता लेकिन चालक दल की जरा सी लापरवाही से टाइटैनिक डूब गया।

आरएमएस टाइटैनिक 10 अप्रैल 1912 को इंग्लैंड के साउथम्पटन से न्यूयॉर्क के लिए अपनी पहली यात्रा पर निकला था। चार दिन तक तो इसने अपनी यात्रा बहुत आराम से पूरी की। टाइटैनिक में सवार लोग इस सफर को अपनी जिंदगी का सबसे मजेदार और आलीशान सफर मान रहे थे लेकिन चार दिन के बाद 14 अप्रैल की रात 11 बजकर 40 मिनट पर चालक दल की लापरवाही से टाइटैनिक एक हिमखंड से टकरा गया। हिमखंड इतना बड़ा था कि इससे टकराने से टाइटैनिक के निचले हिस्सों में पानी भरना शुरू हो गया। जहाज के टकराने से लोग घबरा गए लेकिन लाइफबोट्स से बच्चों और महिलाओं को बचाने का काम शुरू हो गया। लेकिन जहाज की जिंदगी ज्यादा नहीं थी। हिमखंड से टकराने के लगभग 3 घंटे बाद 15 अप्रैल की सुबह 2 बजकर 20 मिनट पर जहाज पूरी तरह से उत्तरी अटलांटिक महासागर में डूब गया।

एक अनुमान के मुताबिक टाइटैनिक में 3547 लोग सवार थे जिनमें से 1500 से ज्यादा लोगों की जान चली गई लेकिन सिर्फ 306 लोगों के शव ही मिले। 14 अप्रैल की रात में हिमखंड से टकराने से पहले टाइटैनिक को छह वार्निंग मिली थीं लेकिन फिर भी यह दुर्घटना के वक्त अपनी अधिकतम गति से चल रहा था। तेज गति में होने के कारण जहाज समय पर मुड़ नहीं पाया और इसका दक्षिणी किनारा हिमखंड से टकरा गया जिससे जहाज के 16 में से पांच कम्पार्टमेंट खुल गए और उनमें पानी भरना शुरू हो गया। क्रू के सदस्यों को इस बात का अंदाजा हो गया था कि अब जहाज को डूबने से नहीं बचाया जा सकता इसलिए उन्होंने वायरलेस से लोगों के लाइफबोट्स की सहायता से बचाने का संदेश दिया।

टाइटैनिक की लाइफबोट को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि उनकी सहायता से यात्रियों को पास के बचाव स्थलों तक पहुंचाया जा सके लेकिन उनमें इतनी क्षमता नहीं थी कि वे एक साथ कई लोगों को ज्यादा देर तक झेल सकें। घबराहट में कई लोग अपनी जान बचाने के लिए पानी में कूद गए लेकिन पानी का तापमान इतना कम था कि लोग 15 मिनट से ज्यादा जीवित नहीं रह सके और हाइपोथर्मिया से मर गए। जहाज के डूबने एक डेढ़ घंटे में आरएमएस कैरपथिया दुर्घटना स्थल पर पहुंच गया और 15 अप्रैल की सुबह 9 बजकर 15 मिनट तक कई लोगों की जान बचाई।

टाइटैनिक के बारे में लिखी गई किताब गुड एज गोल्ड के मुताबिक, टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार लाइन के चेयरमैन ने टक्कर के बाद भी कैप्टन से जहाज को धीमी गति से आगे चलाते रहने की जिद की। करीब दस मिनट तक चलने के बाद जहाज की पेंद में घुस रहे पानी का दबाव बढ़ गया जिसकी वजह से टाइटैनिक जल्दी डूब गया। अगर जहाज को टक्कर के बाद पानी में स्थिर खड़ा रखा जाता तो ये कई घंटों बाद पानी में डूबता जिससे चार घंटे की दूरी पर खड़े दूसरे जहाज से मदद मिल सकती थी और हादसे का शिकार हुए 1500 से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

द टेलिग्राफ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना के सौ साल बाद इस पुस्तक में कहा गया है कि हिमखंड को देखने के बाद चालक दल के पास काफी समय था और वे टाइटैनिक को उससे टकराने से बचा सकते थे। लेकिन वे इस कदर भयभीत हो गए कि जहाज को उन्होंने उसी दिशा में मोड़ दिया। जब तक गलती का पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

टाइटैनिक में टिकट का रेट: 
फर्स्ट क्लास : करीब 2.60 लाख रुपए (4,350 डॉलर) 
सेकेंड क्लास : करीब एक लाख रुपए (1750 डॉलर) 
थर्ड क्लास : 1800 रुपए (30 डॉलर)

टाइटैनिक से जुड़ी कुछ खास बातें: 
1. जहाज पर सवार 13 जोड़े हनीमून सेलिब्रेशन के लिए यात्रा पर निकले थे। 
2. टाइटैनिक की सीटी की आवाज 11 मील दूर से सुनी जा सकती थी। 
3. टाइटैनिक के इंजन को चलाने में हर दिन 825 टन कोयले की खपत होती थी।
4. इसे बनाने में 30 लाख से ज्यादा कीलों का इस्तेमाल किया गया था। 
5. टाइटैनिक में चार एलिवेटर्स थे, जिनमें से तीन फर्स्ट क्लास में और एक सेकेंड क्लास में था। 
6. 20 नॉट्स (37 किलोमीटर) की रफ्तार से चल रहे टाइटैनिक को रोकने के लिए इसके इंजन को पूरी रफ्तार से उल्टा चलाने की जरूरत थी। इतनी रफ्तार पर भी यह आधे मील की दूरी में रुक सकता था।











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