देश के नाम राष्ट्रपति कोविंद का पहला संबोधन- पढ़ें पूरा भाषण
एमपी ऑनलाइन न्यूज़
नई दिल्ली: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि देश की विविधता ही इसकी सफलता का मंत्र है। गौरतलब है कि रामनाथ कोविंद ने पिछले महीने की 25 तारीख को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी।
राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगे हुए मेरे प्यारे देशवासियो,
स्वतंत्रता के 70 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। कल देश आजादी की सत्तरवीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इस वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर मैं आप सबको हार्दिक बधाई देता हूं।
15 अगस्त, 1947 को हमारा देश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था। संप्रभुता पाने के साथ-साथ उसी दिन से देश की नियति तय करने की जिम्मेदारी भी ब्रिटिश हुकूमत के हाथों से निकलकर हम भारतवासियों के पास आ गई थी। कुछ लोगों ने इस प्रक्रिया को ‘सत्ता का हस्तांतरण’ भी कहा था।
लेकिन वास्तव में वह केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं था। वह एक बहुत बड़े और व्यापक बदलाव की घड़ी थी। वह हमारे समूचे देश के सपनों के साकार होने का पल था - ऐसे सपने जो हमारे पूर्वजों और स्वतंत्रता सेनानियों ने देखे थे। अब हम एक नये राष्ट्र की कल्पना करने और उसे साकार करने के लिए आजाद थे।
हमारे लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि स्वतंत्र भारत का उनका सपना, हमारे गांव, गरीब और देश के समग्र विकास का सपना था।
आजादी के लिए हम उन सभी अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी हैं जिन्होंने इसके लिए कुर्बानियां दी थीं।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, भारत छोड़ो आंदोलन की शहीद मातंगिनी हाज़रा जैसी वीरांगनाओं के अनेक उदाहरण हैं।
मातंगिनी हाज़रा लगभग 70 वर्ष की बुजुर्ग महिला थीं। बंगाल के तामलुक में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते समय ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गोली मार दी थी। ‘वंदे मातरम्’ उनके होठों से निकले आखिरी शब्द थे और भारत की आज़ादी, उनके दिल में बसी आखिरी इच्छा।
देश के लिए जान की बाजी लगा देने वाले सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, तथा बिरसा मुंडा जैसे हजारों स्वतंत्रता सेनानियों को हम कभी नहीं भुला सकते।
आजादी की लड़ाई की शुरुआत से ही हम सौभाग्यशाली रहे हैं कि देश को राह दिखाने वाले अनेक महापुरुषों और क्रांतिकारियों का हमें आशीर्वाद मिला।
उनका उद्देश्य सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं था। महात्मा गांधी ने समाज और राष्ट्र के चरित्र निर्माण पर बल दिया था। गांधीजी ने जिन सिद्धांतों को अपनाने की बात कही थी, वे हमारे लिए आज भी प्रासंगिक हैं।
राष्ट्रव्यापी सुधार और संघर्ष के इस अभियान में गांधीजी अकेले नहीं थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जब ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ का आह्वान किया तो हजारों-लाखों भारतवासियों ने उनके नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ते हुए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
नेहरूजी ने हमें सिखाया कि भारत की सदियों पुरानी विरासतें और परंपराएं, जिन पर हमें आज भी गर्व है, उनका टेक्नॉलॉजी के साथ तालमेल संभव है, और वे परंपराएं आधुनिक समाज के निर्माण के प्रयासों में सहायक हो सकती हैं।
सरदार पटेल ने हमें राष्ट्रीय एकता और अखंडता के महत्व के प्रति जागरूक किया; साथ ही उन्होंने यह भी समझाया कि अनुशासन-युक्त राष्ट्रीय चरित्र क्या होता है।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान के दायरे मे रहकर काम करने तथा ‘कानून के शासन’ की अनिवार्यता के विषय में समझाया। साथ ही, उन्होंने शिक्षा के बुनियादी महत्व पर भी जोर दिया।
इस प्रकार मैंने देश के कुछ ही महान नेताओं के उदाहरण दिए हैं। मैं आपको और भी बहुत से उदाहरण दे सकता हूं। हमें जिस पीढ़ी ने स्वतंत्रता दिलाई, उसका दायरा बहुत व्यापक था, उसमें बहुत विविधता भी थी। उसमें महिलाएं भी थीं और पुरुष भी, जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते थे।
आज देश के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने का समय है। आज देश के लिए कुछ कर गुजरने की उसी भावना के साथ राष्ट्र निर्माण में सतत जुटे रहने का समय है।
नैतिकता पर आधारित नीतियों और योजनाओं को लागू करने पर उनका जोर, एकता और अनुशासन में उनका दृढ़ विश्वास, विरासत और विज्ञान के समन्वय में उनकी आस्था, विधि के अनुसार शासन और शिक्षा को प्रोत्साहन, इन सभी के मूल में नागरिकों और सरकार के बीच साझेदारी की अवधारणा थी।
यही साझेदारी हमारे राष्ट्र-निर्माण का आधार रही है - नागरिक और सरकार के बीच साझेदारी, व्यक्ति और समाज के बीच साझेदारी, परिवार और एक बड़े समुदाय के बीच साझेदारी।
मेरे प्यारे देशवासियो,
अपने बचपन में देखी गई गांवों की एक परंपरा मुझे आज भी याद है। जब किसी परिवार में बेटी का विवाह होता था, तो गांव का हर परिवार अपनी-अपनी जिम्मेदारी बांट लेता था, और सहयोग करता था। जाति या समुदाय कोई भी हो, वह बेटी उस समय सिर्फ एक परिवार की ही बेटी नहीं, बल्कि पूरे गांव की बेटी होती थी।
शादी में आने वाले मेहमानों की देखभाल, शादी के अलग-अलग कामों की जिम्मेदारी, यह सब पड़ोसी और गांव के सारे लोग आपस में तय कर लेते थे। हर परिवार, कोई न कोई मदद जरूर करता था। कोई परिवार शादी के लिए अनाज भेजता था, कोई सब्जियां भेजता था, तो कोई तीसरा परिवार जरूरत की अन्य चीजों के साथ पहुंच जाता था।
उस समय पूरे गांव में अपनेपन का भाव होता था, साझेदारी का भाव होता था, एक दूसरे की सहायता करने का भाव होता था। यदि आप जरूरत के समय अपने पड़ोसियों की मदद करेंगे तो स्वाभाविक है कि वे भी आपकी जरूरत के समय मदद करने के लिए आगे आएंगे।
लेकिन आज, बड़े शहरों में स्थिति बिल्कुल अलग है। बहुत से लोगों को वर्षों तक यह भी नहीं मालूम होता कि उनके पड़ोस में कौन रहता है। इसलिए, गांव हो या शहर, आज समाज में उसी अपनत्व और साझेदारी की भावना को पुनः जगाने की आवश्यकता है। इससे हमें एक दूसरे की भावनाओं को समझने और उनका सम्मान करने में तथा एक संतुलित, संवेदनशील और सुखी समाज का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
आज भी एक दूसरे के विचारों का सम्मान करने का भाव, समाज की सेवा का भाव, और खुद आगे बढ़कर दूसरों की मदद करने का भाव, हमारी रग-रग में बसा हुआ है। अनेक व्यक्ति और संगठन, गरीबों और वंचितों के लिए चुपचाप और पूरी लगन से काम कर रहे हैं।
इनमें से कोई बेसहारा बच्चों के लिए स्कूल चला रहा है, कोई लाचार पशु-पक्षियों की सेवा में जुटा है, कोई दूर-दराज के इलाकों में आदिवासियों तक पानी पहुंचा रहा है, कोई नदियों और सार्वजनिक स्थानों की सफाई में लगा हुआ है। अपनी धुन में मगन ये सभी राष्ट्र निर्माण में संलग्न हैं। हमें इन सब से प्रेरणा लेनी चाहिए।
राष्ट्र निर्माण के लिए ऐसे कर्मठ लोगों के साथ सभी को जुड़ना चाहिए; साथ ही सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का लाभ हर तबके तक पहुंचे इसके लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए। इसके लिए नागरिकों और सरकार के बीच साझेदारी महत्वपूर्ण हैः
¨ सरकार ने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान शुरू किया है लेकिन भारत को स्वच्छ बनाना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार शौचालय बना रही है और शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन दे रही है, लेकिन इन शौचालयों का प्रयोग करना और देश को ‘खुले में शौच से मुक्त’ कराना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार देश के संचार ढांचे को मजबूत बना रही है, लेकिन इंटरनेट का सही उद्देश्य के लिए प्रयोग करना, ज्ञान के स्तर में असमानता को समाप्त करना, विकास के नए अवसर पैदा करना, शिक्षा और सूचना की पहुंच बढ़ाना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार ‘बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ’ के अभियान को ताकत दे रही है लेकिन यह सुनिश्चित करना कि हमारी बेटियों के साथ भेदभाव न हो और वे बेहतर शिक्षा प्राप्त करें - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार कानून बना सकती है और कानून लागू करने की प्रक्रिया को मजबूत कर सकती है लेकिन कानून का पालन करने वाला नागरिक बनना, कानून का पालन करने वाले समाज का निर्माण करना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार पारदर्शिता पर जोर दे रही है, सरकारी नियुक्तियों और सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार समाप्त कर रही है, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में अपने अंतःकरण को साफ रखते हुए कार्य करना, कार्य संस्कृति को पवित्र बनाए रखना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
¨ सरकार ने टैक्स की प्रणाली को आसान करने के लिए जी.एस.टी. को लागू किया है, प्रक्रियाओं को आसान बनाया है; लेकिन इसे अपने हर काम-काज और लेन-देन में शामिल करना तथा टैक्स देने में गर्व महसूस करने की भावना को प्रसारित करना - हममें से हर एक की जिम्मेदारी है।
मुझे खुशी है कि देश की जनता ने जी.एस.टी. को सहर्ष स्वीकारा है। सरकार को जो भी राजस्व मिलता है, उसका उपयोग राष्ट्र निर्माण के कार्यों में ही होता है। इससे किसी गरीब और पिछड़े को मदद मिलती है, गांवों और शहरों में बुनियादी सुविधाओं का निर्माण होता है, और हमारे देश की सीमाओं की सुरक्षा मजबूत होती है।
प्यारे देशवासियो,
सन् 2022 में हमारा देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे करेगा। तब तक ‘न्यू इंडिया‘ के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने का हमारा ‘राष्ट्रीय संकल्प’ है।
जब हम ‘न्यू इंडिया’ की बात करते हैं तो हम सबके लिए इसका क्या अर्थ होता है? कुछ तो बड़े ही स्पष्ट मापदंड हैं जैसे - हर परिवार के लिए घर, मांग के मुताबिक बिजली, बेहतर सड़कें और संचार के माध्यम, आधुनिक रेल नेटवर्क, तेज और सतत विकास।
लेकिन इतना ही काफी नहीं है। यह भी जरूरी है कि ‘न्यू इंडिया’ हमारे डीएनए में रचे-बसे समग्र मानवतावादी मूल्यों को समाहित करे। ये मानवीय मूल्य हमारे देश की संस्कृति की पहचान हैं। यह ‘न्यू इंडिया’ एक ऐसा समाज होना चाहिए, जो भविष्य की ओर तेजी से बढ़ने के साथ-साथ, संवेदनशील भी होः
¨ एक ऐसा संवेदनशील समाज, जहां पारंपरिक रूप से वंचित लोग, चाहे वे अनुसूचित जाति के हों, जनजाति के हों या पिछड़े वर्ग के हों, देश के विकास प्रक्रिया में सहभागी बनें।
¨ एक ऐसा संवेदनशील समाज, जो उन सभी लोगों को अपने भाइयों और बहनों की तरह गले लगाए, जो देश के सीमांत प्रदेशों में रहते हैं, और कभी-कभी खुद को देश से कटा हुआ सा महसूस करते हैं।
¨ एक ऐसा संवेदनशील समाज, जहां अभावग्रस्त बच्चे, बुजुर्ग और बीमार वरिष्ठ नागरिक, और गरीब लोग, हमेशा हमारे विचारों के केंद्र में रहें। अपने दिव्यांग भाई-बहनों पर हमें विशेष ध्यान देना है और यह देखना है कि उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में अन्य नागरिकों की तरह आगे बढ़ने के अधिक से अधिक अवसर मिलें।
¨ एक ऐसा संवेदनशील और समानता पर आधारित समाज, जहां बेटा और बेटी में कोई भेदभाव न हो, धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
¨ एक ऐसा संवेदनशील समाज जो मानव संसाधन रूपी हमारी पूंजी को समृद्ध करे, जो विश्व स्तरीय शिक्षण संस्थानों में अधिक से अधिक नौजवानों को कम खर्च पर शिक्षा पाने का अवसर देते हुए उन्हें समर्थ बनाए, तथा जहां बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और कुपोषण एक चुनौती के रूप में न रहें।
‘न्यू इंडिया’ का अभिप्राय है कि हम जहां पर खड़े हैं वहां से आगे जाएं। तभी हम ऐसे ‘न्यू इंडिया’ का निर्माण कर पाएंगे जिस पर हम सब गर्व कर सकें। ऐसा ‘न्यू इंडिया’ जहां प्रत्येक भारतीय अपनी क्षमताओं का पूरी तरह विकास और उपयोग करने में इस प्रकार सक्षम हो कि हर भारतवासी सुखी रहे। यह एक ऐसा ‘न्यू इंडिया’ बने जहां हर व्यक्ति की पूरी क्षमता उजागर हो सके और वह समाज और राष्ट्र के लिए अपना योगदान कर सके।
मुझे पूरा भरोसा है कि नागरिकों और सरकार के बीच मजबूत साझेदारी के बल पर ‘न्यू इंडिया’ के इन लक्ष्यों को हम अवश्य हासिल करेंगे।
नोटबंदी के समय जिस तरह आपने असीम धैर्य का परिचय देते हुए कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का समर्थन किया, वह एक जिम्मेदार और संवेदनशील समाज का ही प्रतिबिंब है। नोटबंदी के बाद से देश में ईमानदारी की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला है। ईमानदारी की भावना दिन-प्रतिदिन और मजबूत हो, इसके लिए हमें लगातार प्रयास करते रहना होगा।
मेरे प्यारे देशवासियो,
आधुनिक टेक्नॉलॉजी को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाने की आवश्यकता है। हमें अपने देशवासियों को सशक्त बनाने के लिए टेक्नॉलॉजी का प्रयोग करना ही होगा, ताकि एक ही पीढ़ी के दौरान गरीबी को मिटाने का लक्ष्य हासिल किया जा सके। ‘न्यू इंडिया’ में गरीबी के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
आज पूरी दुनिया भारत को सम्मान से देखती है। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, आपसी टकराव, मानवीय संकटों और आतंकवाद जैसी कई अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने में विश्व पटल पर भारत अहम भूमिका निभा रहा है।
विश्व समुदाय की दृष्टि में भारत के सम्मान को और बढ़ाने का एक अवसर है - सन् 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में भारत के प्रदर्शन को प्रभावशाली बनाना। अब से लगभग तीन सालों में हासिल किए जाने वाले इस उद्देश्य को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में लेना चाहिए। सरकारें, खेलकूद से जुड़े संस्थान, तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठान एकजुट होकर प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को आगे लाने, उन्हें विश्व स्तर की सुविधाएं और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने में इस तरह से लग जाएं जिससे खिलाडि़यों को अधिक से अधिक सफलता मिल सके।
चाहे हम देश में रहें या विदेश में, देश के नागरिक और भारत की संतान होने के नाते, हमें हर पल अपने आप से यह सवाल पूछते रहना चाहिए कि हम अपने राष्ट्र का गौरव कैसे बढ़ा सकते हैं।
प्यारे देशवासियो,
अपने परिवार के बारे में सोचना स्वाभाविक है लेकिन साथ-साथ हमें अपने समग्र समाज के बारे में भी सोचना चाहिए। हमें अपने अंतर्मन की उस आवाज पर जरूर ध्यान देना चाहिए जो हमसे थोड़ा और अधिक निःस्वार्थ होने के लिए कहती है; कर्तव्य पालन से कहीं आगे बढ़ते हुए हमें और अधिक कुछ करने के लिए पुकारती है। अपने बच्चे का लालन-पालन करने वाली मां केवल अपना कर्तव्य नहीं निभाती। वह अद्वितीय समर्पण और निष्ठा का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करती है जिसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है।
¨ तपते हुए रेगिस्तानों और ठंडे पहाड़ों की ऊंचाइयों पर हमारी सीमाओं की रक्षा करने वाले हमारे सैनिक केवल अपने कर्तव्य का ही पालन नहीं करते - बल्कि निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं।
¨ आतंकवाद और अपराध से मुकाबला करने के लिए मौत को ललकारते हुए हमें सुरक्षित रखते वाले हमारे पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान केवल अपने कर्तव्य का ही पालन नहीं करते - बल्कि निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं।
¨ हमारे किसान, देश के किसी दूसरे कोने में रहने वाले अपने उन देशवासियों का पेट भरने के लिए, जिन्हें उन्होंने कभी देखा तक नहीं है, बेहद मुश्किल हालात में कड़ी मेहनत करते हैं। वे किसान सिर्फ अपना काम ही नहीं करते - बल्कि निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं।
¨ प्राकृतिक आपदाओं के बाद राहत और बचाव के काम में दिन-रात जुटे रहने वाले संवेदनशील नागरिक, स्वयं-सेवी संस्थाओं से जुड़े लोग, सरकारी एजेंसियों में काम करने वाले कर्मचारी केवल अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे होते - बल्कि वे निःस्वार्थ भाव से देश की सेवा करते हैं।
क्या हम सब, देश की निःस्वार्थ सेवा के इस भाव को आत्मसात नहीं कर सकते? मुझे विश्वास है कि हम यह अवश्य कर सकते हैं, और हमने ऐसा किया भी है।
प्रधान मंत्री की एक अपील पर, एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी इच्छा से एल.पी.जी. पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ दी। ऐसा उन परिवारों ने इसलिए किया ताकि एक गरीब के परिवार की रसोई तक गैस सिलेंडर पहुंच सके और उस परिवार की बहू-बेटियां मिट्टी के चूल्हे के धुँए से होने वाले आंख और फेफड़े की बीमारियों से बच सकें।
मैं सब्सिडी का त्याग करने वाले ऐसे परिवारों को नमन करता हूं। उन्होंने जो किया, वह किसी कानून या सरकारी आदेश का पालन नहीं था। उनके इस फैसले के पीछे उनके अंतर्मन की आवाज थी।
हमें ऐसे परिवारों से प्रेरणा लेनी चाहिए। हममें से हर एक को समाज में योगदान करने के तरीके खोजने चाहिएं। हममें से हर एक को कोई एक ऐसा काम चुनना चाहिए जिससे किसी गरीब की जिंदगी में बदलाव आ सके।
राष्ट्र निर्माण के लिए सबसे जरूरी है कि हम अपनी भावी पीढ़ी पर पूरा ध्यान दें। आर्थिक या सामाजिक सीमाओं के कारण हमारा एक भी बच्चा पीछे न रह जाए। इसलिए मैं राष्ट्र निर्माण में लगे आप सभी लोगों से समाज के गरीब बच्चों की शिक्षा में मदद करने का आग्रह करता हूं। अपने बच्चे के साथ ही, किसी एक और बच्चे की पढ़ाई में भी मदद करें। यह मदद किसी बच्चे का स्कूल में दाखिला करवाना हो सकता है, किसी बच्चे की फीस भरनी हो सकती है या किसी बच्चे के लिए किताबें खरीदना हो सकता है। ज्यादा नहीं, सिर्फ एक बच्चे के लिए। समाज का हर व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से ऐसे काम करके राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका रेखांकित कर सकते हैं।
आज भारत महान उपलब्धियों के प्रवेश द्वार पर खड़ा है। अगले कुछ वर्षों में, हम एक पूर्ण साक्षर समाज बन जाएंगे। हमें शिक्षा के मापदण्ड और भी ऊंचे करने होंगे तभी हम एक पूर्णतया शिक्षित और सुसंस्कृत समाज बन सकेंगे।
हम सभी इन लक्ष्यों को पाने के प्रयास में साझीदार हैं। जब हम इन लक्ष्यों को हासिल करेंगे, तो हम अपनी आंखों के सामने अपने देश में होता हुआ व्यापक बदलाव देख सकेंगे। इस प्रकार हम इस बदलाव के वाहक बनेंगे। राष्ट्र निर्माण की दिशा में किया गया यह प्रयास ही हम सबकी सच्ची साधना होगी।
ढाई हजार वर्ष पहले, गौतम बुद्ध ने कहा था, ‘अप्प दीपो भव... यानि अपना दीपक स्वयं बनो...’ यदि हम उनकी शिक्षा को अपनाते हुए आगे बढ़ें तो हम सब मिलकर आजादी की लड़ाई के दौरान उमड़े जोश और उमंग की भावना के साथ सवा सौ करोड़ दीपक बन सकते हैं; ऐसे दीपक जब एक साथ जलेंगे तो सूर्य के प्रकाश के समान वह उजाला सुसंस्कृत और विकसित भारत के मार्ग को आलोकित करेगा।
मैं एक बार पुनः आप सभी को देश की स्वतंत्रता की सत्तरवीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिंद
वंदे मातरम्
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