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एकात्म यात्रा के सन्दर्भ मे कलेक्टेड भवन के मोहन सभागार मे जिला आयोजन समिति की बैठक सम्पन्न


रीवा : आदि गुरु शंकराचार्य जी की एकात्म यात्रा प्रदेश के 51 जिलों मे 19 दिसंबर से शुरू हो रही है इसी क्रम मे रीवा से भी यात्रा रवाना हो रही है जिसकी आयोजन समिति  की समीक्षा बैठक आयोजित हुई बैठक मे *माननीय मंत्री राजेन्द्र शुक्ला जी, रीवा की यात्रा के मार्गदर्शक महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद जी महाराज, भाजपा जिला अध्यक्ष विद्या प्रकाश श्रीवास्तव जी भाजपा के वरिष्ठ नेता संम्मानीय केशव पाण्डेय जी कलेक्टर प्रीती मैथिल नायक जी,प्रमुख रुप से उपस्थित रहे मां मंत्री राजेन्द्र शुक्ल जी ने यात्रा की समीक्षा कर तैयारियों की समीक्षा की जिसमे उन्होंने समाज   मे रहने वाले हर व्यक्ति को यात्रा मे जुडने की अपील की उन्होंने  बताया कि मुख्यमंत्री जी 2 कार्यक्रमों  मे शामिल होगे उज्जैन  व रीवा  माननीय  मुख्यमंत्री जी रीवा 3 बजे पहुँच कर यात्रा  का शुभारंभ करेगें उनके साथ महत्पूर्ण संत व कलाकार उपस्थित होगे। पूज्य स्वामी महामंडलेश्वर अखिलेश्वरानंद जी ने सभी को शंकराचार्य जी के जीवन से परिचय कराते हुऐ  बताया कि आदिगुरु शंकराचार्य का दर्शन*
अद्वैतवाद आदिशंकराचार्य ने अपने *अद्वैत दर्शन*के प्रत्येक पक्ष की पुष्टि के लिये वैदिक ऋचाओं(मंत्रों)का आश्रय लिया है वेद विरुद्ध कथन या व्याख्यानों को उन्होंने सर्वथा अस्वीकार किया है,इतना ही नहीं उन्होंने वेद मंत्रों के पारम्परिक अर्थों और भावों को ही मान्यता दी है;वेद मंत्रों के अन्यथा अर्थों और भावों को वे अनर्गल प्रलाप कहते हैं। श्रुति-स्मृति एवं भारत के प्राचीन वैदिक ऋषियों के आर्ष वचनों(आर्ष कथन)को उन्होंने प्रमाण माना है। उनका स्पष्ट कथन है कि बिना प्रमाण के अप्रामाणिक, अतार्किक तथ्य उन्हें अस्वीकार्य हैं।
    श्रुति,स्मृति ,युक्ति,तर्क, प्रमाण एवंअनुभव ये ही सिद्धांत की पुष्टि में सहायक और अनिवार्य तत्त्व हैं। आचार्य शंकर के अद्वैतवाद को वेदान्तदर्शन और अद्वैत दर्शन इस नाम से भी जाना गया है। आचार्य ने अपनी दार्शनिक मान्यता में एक *सत्य*को ही स्वीकारा हैऔर वे जीवन पर्यंत इसी सत्य का ही प्रतिपादन करते रहे, वे असत्य के कभी भी पक्षधर नहीं रहे। उन्होंने अपने दार्शनिक विवेचन में सत् (अर्थात् सत्य)को *त्रिकालाबाधित सत्*निरूपित किया।उन्होंने अपने* तत्त्वबोध*ग्रन्थ में *सत्*की परिभाषा की*कालत्रयेपि तिष्ठतीति सत्*अर्थात् जो तीनों काल में(अर्थात् भूत-वर्तमान और भविष्य में अपरिवर्तनीय)रहे वह सत्य है। आचार्य शंकर का सिद्धांत वाक्य है:-
*ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरा* अर्थात् ब्रह्म ही सत्य है बाकी सब लौकिक प्रपञ्च(अर्थात् संसार)मिथ्या है। मिथ्या शब्द का अर्थ उन्होंने शून्य नहीं माना बल्कि मिथ्या का अर्थ उन्होंने परिवर्तनशील ,परिवर्तनीय पदार्थ माना है ;जो अनेक रूपों में प्रस्तुत होता रहता है।उनका स्पष्ट कथन है कि-जीव मात्र में जो चैतन्यांस है वह ब्रह्म की ही सत्ता है।चीटीं से लेकर हाथी पर्यंत समस्त देहधारियों में उसी ब्रह्म का चैतन्यांस है। उन्होंने अपने सैद्धांतिक उद्घोष में कहा:-*जीव नाम का जो तत्त्व है,वह ब्रह्म से अपर (अर्थात् पृथक्)नहीं है,वस्तुतः जीव ,ब्रह्म एक ही हैं।
संसार को उन्होंने प्रापञ्चिक कहा और इसे मायाकृत विस्तार बताया।आदि शंकर माया का विलक्षण अर्थ करते हैं:-मा *शब्द संस्कृत भाषा में *निषेधार्थक*है *मा*माने नहीं, *या*माने जो, इसका अर्थ हुआ *जो तीनों काल में है ही नहीं ,उसे माया कहते हैं*। माया को उन्होंने ब्रह्म की आवरण शक्ति माना है जो अंधकार की भाँति है,जिसे उन्होंने* अनिर्वचनीय* कहा है,वे माया का अर्थ *अज्ञान*भी करते हैं,जिसके कारण भ्रमात्मक स्थिति निर्मित होती है,जो सत्य वस्तु का आवरण बनकर अन्य रूप में ही उसे प्रस्तुत कर देती है; जिसके कारण जीव भ्रमित होकर स्वयं को भूल जाता है।इसी भ्रम तत्त्व को हटाने का आग्रह आदि शंकर जोर देकर करते हैं। *बैठक  मे  गौ संवर्धन के जिला उपाध्यक्ष   राजेश  पाण्डेय जी, प्रदेश कार्यसमिति  सदस्य  महाबली  गौतम  जी, बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय सयोजक राजेश  पाण्डेय जी, नगर निगम कमिश्नर सौरभ सुमन जी,  मुख्य कार्यपालन अधिकारी मंयक अग्रवाल जी, संभाग समन्वयक अमिताभ श्रीवास्तव जी, जिला समन्वयक प्रवीण पाठक जी, उप संचालक रोजगार  अधिकारी अनिल दुबे जी, रीवा की यात्रा के प्रभारी  विरेन्द्र गुप्ता जी, विद्याभारती के प्रन्तीय सचिव संतोष अवधिया जी, विधायक प्रतिनिधि सिरमौर हरगोविंद द्विवेदी, भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्तागण विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधिगण, सामाजिक कार्यकर्तागण,  जन अभियान परिषद् के  ब्लाक  समन्वयक, मेन्टर, छात्र, विभिन्न समितियों के  प्रतिनिधि तथा शहर के वरिष्ठ नागरिक उपस्थित रहे।*

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