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आजीविका स्वसहायता समुह से जुड़कर केशकली हुई आत्मनिर्भर

आजीविका स्वसहायता समुह से जुड़कर केशकली हुई आत्मनिर्भर

अनूपपुर/ किरगी ग्राम की श्रीमती केशकली जायसवाल ने बताया कि पूर्व में मेरी कहानी अत्यंत दुखदाई थी, समूह में जुड़ने से पहले रो-रो के दिन गुजारती थी ,मेरे पति हमेशा मार-पीट किया करते थे, मेरे पति बाहर मजदूरी करने जाते थे ,सही वक्त में मजदूरी नहीं मिलती थी और हम लोग के पास खेेती के लिए जमीन भी नहीं थी, मजदूरी नहीं मिलने से घर में खाने की व्यवस्था भी बड़ी मुश्किल से होती थी। मैं और मेरे बच्चे भूखे सो जाया करते थे, घर की समस्या देख कर पति अपना गुस्सा मुझ में और मेरे बच्चे में उतारते थे। आठ दस दिन हो जाता था, चावल के लिये तरस जाते थे ,मक्का का दलिया और मक्के की ही रोटी खानी पड़ती थी। हमारा घर टाटी का बना हुआ था, ऊपर पन्नी छाई हुई थी। एक दिन मेरे पति मजदूरी के लिए गए और वो छत से नीचे गिर गये और दूसरे दिन हरितालिका तीज रहा उनके इलाज के लिये मेरे पास कुछ नहीं था मैं अपने जेवर 10,000/- रू- में गिरवी रख दी और उनका इलाज करवाई।  मुझे आज भी वह दिन अच्छे से याद है, जब पहली बार जुलाई 2013 दिन मंगलवार को आजीविका मिशन से सर और मैडम आई, जिन्होंने स्वसहायता समूह के विषय में समझाया तो फिर मैंने अपने मोहल्ले की 12 महिलाओं को जोड़ कर मीटिंग के लिए सर को बुलाई तब दुबारा सर आये और हमारे शुभम आजीविका स्व सहायता समूह को बनाने में हमारी मदद की। समूह में जुड़ने के बाद सबसे पहले मैंने 1400 रूपये का कर्ज अपने बच्चे की बीमारी के इलाज के लिए लिया था फिर मैंने आपने गहने जो गिरवी रखे थे वो मुक्त कराये, फिर उसके बाद मुझे ऐसा लगा की ये समूह मेरे लिए एक भगवान की तरह है। अभी तक मैंने समूह से कुल 83,400/ रू. का कर्ज ले चुकी हूॅं। सबसे पहले मैंने अपना घर को बनवाया, अपने पति का इलाज करवाया एवं आजीविका मिशन से मुझे सिलाई का प्रशिक्षण दिया गया एवं समूह से मशीन के लिए कर्ज ली, जिससे मै आज सिलाई करती हूं तथा एक दुकान भी खोल ली है, जिसमे कुछ सिले-सिलाये कपड़े को बेचती हंू एवं मेरे पति जो पहले मजदूरी करते थे वो आज सेंट्रिंग का काम करने लगे है तथा उन्होंने लकड़ी की सेंट्रिंग प्लेट भी खरीदी है, जिससे वे अब सेंट्रिंग किराये से लगाते है। अब वर्तमान में मेरे दुकान से एवं पति के व्यवसाय से 8 से 10 हजार महीने में आय हो जाती है। इससे मैं बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूॅ, इससे पूर्व मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। घर की जिम्मेदारी मैं संभाल रही हूॅ। मैं पहले बात करने से झिझकती रही अब हजारों के बीच में अपनी बात ब्यक्त कर सकती हूूंॅ। हर चीज का अनुभव हुअ। घर एवं बाहर इज्जत मिलती है। समूह में जुड़ने के बाद मुझे स्व सहायता समूह गठन सम्बन्धी, एसएचजी बुक कीपिंग, ग्राम संगठन गठन अवधारणा एवं प्रबंधन विषय पर एवं सीआरपी के संबध में प्रशिक्षण दिया गया, जिससे आज मैं दूसरे ग्रामो में जा कर स्व सहायता समूहों का निर्माण करती हूं तथा ग्राम संगठन को प्रशिक्षण देती हूँ, जिससे मुझे अतिरिक्त लाभ हो जाता है। समूह से लिये गए कुल ऋण राशि 83,400 रू में से 70,400 जमा कर दी है अब 13,000 रू ऋण शेष है। मेरे समूह का इंटरलोनिंग 3,24,1590/- रू- है। जिसका ब्याज 17,777 रू- मिला।

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