चिंताजनक है झूठे मामलों की बढ़ती तादात
आज भारत जिस रफ़्तार से नारी सशक्तिकरण की ओर बढ़ रहा है ठीक उसी तरह इसका दुरूपयोग भी बढ़ता जा रहा है।आखिर क्या कारण है कि दहेज़ प्रताड़ना और बलात्कार संबंधी मामलों को सुलझाने में न्यायालय को 5 से लेकर 10 वर्ष तक का समय लग जाता है? सबका कारण एक ही है, हत्याओं तथा आत्महत्याओं के मामले में दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की बढ़ती संख्या तथा प्रेमी युगलों द्वारा की गयी बेवकूफियों को बलात्कार का रूप देना।जहाँ एक ओर अबला नारी पर हुई घरेलू हिंसा के मामले सालों तक न्यायालय में रखी फाइलों में सड़ते रहते है वही दूसरी ओर दहेज़ प्रताड़ना के झूठे केसों की दर्ज संख्या बढ़ती जाती है।जहां एक ओर अंगारों से दागी हुई महिला न्यायालय में इन्साफ की भीख मांगती रह जाती है वहीं दूसरी ओर एक निर्दोष पिता अपने बच्चों और परिवार को छोड़ सलाखों के पीछे पहुँच जाता है।यही हालात बलात्कार संबंधी मामलों के भी है।भारत में हर साल दर्ज 34000 दुष्कर्म के केसों में जितने सैंकड़ों केस झूठे होते है या प्रेमी युगलों की गलतियों के परिणाम होते है उतने ही सैंकड़ों केस समाज में बदनामी के डर से दबे रह जाते है और निर्दोष लड़कियो के साथ हुई दरिंदगी का न्याय उन्हें नही मिल पाता है।पश्चिमी सभ्यता की ओर तेजी से बढ़ते कदम युवावस्था में कई बेवकूफियां करवा देते है और परिणाम स्वरुप भारत की सभ्यता पर एक कलंक का दाग छोड़ जाते है।जिस प्रकार महिला सशक्तिकरण का दुरूपयोग हो रहा है उसे देखते हुए पुरुषों की दृष्टि में भारत महिला प्रधान बनता जा रहा है।ये बदलती हुई सोच ज्यादातर भारतीय युवाओ में देखने को मिल रही है जो बलात्कार या महिला प्रताड़ना का नाम सुनकर तिलमिला उठते है और पुरुष के बेचारेपन की ओर देखने की दुहाई देते है।लोगो की मानसिकता कुछ ऐसी हो गयी है की यदि कोई नारी पर हो रहे अत्याचार के बारें में तर्क दें तो महिला प्रधान कहला जाता है और यदि पुरुषों पर लगे झूठे केसों की बात करें तो महिला विरोधी बन जाता है।तात्पर्य यह निकलता है कि एक ओर कुआ है ओर दूसरी ओर खाई।जनता और न्यायालय इसी असमन्जस में रह जाते है कि दहेज़ का केस कहीं झूठा तो नही या बलात्कार का केस झूठा तो नही? यहाँ कोई सन्दर्भ एकतरफा नही है,और न ही भारत देश एकतरफा है।भारत को न तो पुरुष प्रधान कहा जाय और न ही महिला प्रधान कहा जाय।हमारा ये भारत संस्कृति प्रधान माना जाए।वह भारत जो संस्कारों की जननी है वहां न कोई नारी प्रताड़ित हो और न ही कोई पुरुष।भारत में प्रत्येक महिला और पुरुष एक दुसरे के कंधे से कन्धा मिला कर चले।महिला और पुरुष एक गाड़ी के दो पहियों के सामान होते है जिनकी आपस में तुलना नही होनी चाहिए क्योंकि ये दोनों एक दुसरे के पूरक होते है।हमारे देश की न्याय व्यवस्था पर यह सबसे बड़ा कलंक है कि जानते बूझते हुए भी सही निर्णय नहीं लिया जाता।सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भारत में महिला प्रताड़ना के झुठे केस लगातार बढ़ रहे है।इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के 2 अहम फैसले आये है जो कि सराहनीय है।
- शिवांगी पुरोहित, स्वतंत्र लेखक
ये लेखक के स्वयं के विचार है
- शिवांगी पुरोहित, स्वतंत्र लेखक
ये लेखक के स्वयं के विचार है
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