अटल राग - "अखंड भारत को खंड खंड करने का प्रयास "
वर्तमान समय में हमारे राष्ट्र में विषमता की खाई इतनी गहरी पैदा कि जा रही है आने वाला समय राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के लिए आपसी संघर्ष में कटकर इस राष्ट्र को क्षत -विक्षत करने का घ्रणित कुत्सित षड्यंत्र रचा जा रहा है।
आज आप धरातल पर देखेंगे तो राष्ट्र के नागरिकों को विभिन्न जाति समाज की आधार पर तोड़ा जा रहा है यह अभियान एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है।
इसका एक पक्ष यह नजर आ रहा है कि:-
इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारे देश को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि संपूर्ण विश्व यह जानता है कि भारत से प्रत्यक्ष तौर पर लड़ा नहीं जा सकता है और न ही इसकी हिम्मत जुटाने की सामर्थ्य वर्तमान में किसी में है।
इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा हमारे देश को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि संपूर्ण विश्व यह जानता है कि भारत से प्रत्यक्ष तौर पर लड़ा नहीं जा सकता है और न ही इसकी हिम्मत जुटाने की सामर्थ्य वर्तमान में किसी में है।
क्योंकि भारत इस समय में सामरिक दृष्टि व पौरुष बल से लबरेज़ है ज्यादातर आबादी युवा है और यदि किसी ने हिमाकत की तो विश्व को इसके दूरगामी दुस्परिणाम भुगतने पड़ जाएंगे। तो क्या यह माना जाए कि बाहरी शक्तियों द्वारा जो प्रत्यक्ष प्रणाली से भारत से नहीं लड़ सकते हैं। और भारत के विश्व-पटल में बढ़ते रूतबे से खौफ खा रहे हैं ,इसीलिये उनके द्वारा वित्तपोषित संस्थाएँ चलाई जा रही हैं।
जिनका उद्देश्य भारत को दीर्घावधि तक आपसी संघर्ष यानि कि आपसी मतभेदों जिनके मायने यह हैं कि आपको जाति,वर्ण ,पूर्व की पीढ़ियों के हुए शोषण ,अमीर-गरीब व ऊँच-नीच की भावना के आधार पर तोड़ते रहना है इसका परिणाम यह होगा कि ज्यादातर अल्प-शिक्षित युवा ,मध्यम पीढ़ी इनके आगोश में आ जाएगी और वह उन्ही के बताए रास्तों पर चलने लगेगी और उनका सहयोग देने का कारण और साफ रास्ता यह है कि :-उन सभी को पानी की तरह रूपये दिए जाएंगे और उन्हें खास तरह के प्रशिक्षण अलग-अलग अवधि में दिए जाएंगे और उन्हें मानसिक तौर पर गुलाम बना लिया जाएगा जिससे वह एक रिमोट कंट्रोलर की भाँति व्यवहार करने लगेंगे उन्हे सच वही लगेगा और वही प्रतीत होगा जो उनके तथाकथित आका निर्देशित करेंगे
इसके लिए भी एक विशेष स्तर पर तैयारी कराई जाती है ,बकायदे उनके तबके के कुछ एक लोगों को एकत्रित किया जाता है और उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया जाने लगा जाता है एक निश्चित अवधि के उपरांत उन्हें प्रायोजित तरीके से उनके तबके,समाज में लाँच किया जाता है तथा वही प्रायोजित साहित्य भी उनके हाथों थमा दिया जाता है जिसमें मनगढंत घटनाओं कहानियों और तथाकथित उनके ऊपर हुए अत्याचारों को दर्शाया जाता है।
इसके लिए भी एक विशेष स्तर पर तैयारी कराई जाती है ,बकायदे उनके तबके के कुछ एक लोगों को एकत्रित किया जाता है और उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया जाने लगा जाता है एक निश्चित अवधि के उपरांत उन्हें प्रायोजित तरीके से उनके तबके,समाज में लाँच किया जाता है तथा वही प्रायोजित साहित्य भी उनके हाथों थमा दिया जाता है जिसमें मनगढंत घटनाओं कहानियों और तथाकथित उनके ऊपर हुए अत्याचारों को दर्शाया जाता है।
और वह शख्स उस समाज में धीरे-धीरे उन्ही समस्त निर्देशित व प्रशिक्षित तरीकों से अन्धानुकरण करवाने में जुट जाता है और उसकी टीम सक्रिय की जाती है और उन्हें वित्तपोषित किया जाता है तथा उसी प्रकार के प्रशिक्षण से गुजारा जाता है।
इस प्रकार जाति,वर्ण,आर्थिक-सामाजिक भेदभाव के आधार पर उनके बाँटने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है
जिसके दुस्परिणाम यह होते हैं कि एक निश्चित तबके, समाज या उस जाति के होनहार नवनिहालों को पतन के गर्त्त में भेजना प्रारम्भ हो जाता है ,उन्हे तो यही समझ में आता है कि हम अपने समाज,जाति ,को गौरवान्वित व समृद्धशाली बनाने के लिए चल रहे हैं उन्हें यह नहीं पता रहता है कि यह सब एक योजनाबद्ध तरीके से चलाया जाने वाला कार्य है और उन्हें पता भी कैसे लगेगा क्योंकि वे तो मानसिक गुलामी के बन्धन से जकड़े हुए हैं।
इस प्रक्रिया द्वारा आपसी वर्ग ,जाति संघर्ष बढ़ने लगता है जिनके कार्यों के द्वारा इस राष्ट्र की विकास व उन्नति की दशा एवं दिशा तय होनी है वे अगर इन समस्त प्रकार के षड्यंत्रों के शिकार होंगे तो निश्चित ही राष्ट्र को हानि पहुँचेगी और पहुँच भी रही है।
और इस प्रक्रिया का अंतिम परिणाम यह होगा कि
धीरे-धीरे आपसी पृथकता की भावना एक न एक दिन अलगावाद व विशेष समाज,जाति के लिए अलग से क्षेत्रवाद की भावना को बल मिलने लगेगा और आने वाली पीढ़ियाँ भी इसी तरह आपस में कटती-मरती रह जाएँगी और विदेशी आक्रांता अपने उद्देश्य में सफल होने लगेगें जो राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति होगी ।
दूसरा पक्ष यह है कि;-
क्या जातिवादिता, पूर्व की पीढ़ियों के समाजिक -आर्थिक शोषण की दुहाई देकर राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस प्रकार के दुस्कर कार्य योजनाबद्ध तरीके से कराए जा रहे हैं
इस प्रकार की बातों से भी इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि अक्सर यह सब ज्यादातर चुनावी सरगर्मियों के समय देखा जाता है
विभिन्न उम्मीदवारों द्वारा जाति,समाज के नाम पर बहकाकर वोट प्राप्त किए जाते रहे हैं
या यूँ कहे तो जातिवादिता ,वर्ग-संघर्ष इत्यादि के जन्म देने के पीछे राजनैतिक महत्वाकांक्षा ही सम्मिलित है और यही इसका पूर्ण उद्देश्य है ।
अपनी राजनैतिक स्वार्थपरता हेतु इस प्रकार के कार्यों को
इसके लिए भी एक मशीनरी सिस्टम के तहत प्रयोगशाला में शोध होते हैं कि किस प्रकार से फला जाति के लोगों को बरगलाना है। और अपने निजी हित के लिए इनका उपयोग करना है इसके लिए विधिवत मनगढ़ंत साहित्य उपलब्ध कराया जाता है जिसमें केवल वही भ्रामक जानकारियां रहती हैं और उन्हें किसी खास घटनाक्रम से तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है और इस चीज का विशेष ध्यान रखा जाता है किस वर्ग की आपसी प्रतिद्वंदिता है।
उस तबके के विरुद्ध साहित्य उपलब्ध कराया जाता है।
और फिर छोटी-छोटी सभाएं की जाती हैं जिनका मुख्य उद्देश्य अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु " आपसी संघर्ष को जन्म देना होता है यह जातिगत हो या सामाजिक हो "
यह सब विधिवत ढंग से चलाया जाता है और उन्हें यह एहसास कराया जाता है कि 'हम ही आपके लिए कर्तव्यपरायणता के साथ संघर्ष कर रहे हैं ,और यदि आप हमारा संघर्ष नहीं देना चाहते हैं ,तो कोई बात नहीं हमारा क्या जाता है ?"
इस वाक्य से ही बेचारे भोले भाले अल्पशिक्षित विशेष तबके कज लोगों द्वारा यह मान लिया जाता है की यही हमारे सर्वदाता हैं तथा यह तो हमारी जाति से आते है और इन्हीं के द्वारा ही हमारे सारे कार्य होंगे तथा हम इनकी बात नहीं सुनेंगे तो किसकी सुनेंगे ? क्योंकि यह तो हमारी ही जाति या समाज से हैं।
और इस प्रकार से विशेष समाज या जाति के लोगों को अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा की रोटियां सीखने के लिए भरपूर आपसी वर्ग संघर्ष कराया जाता है जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि वे लोग जो आपस में घर गांव गली बस्ती शहर इत्यादि में आपसी भाईचारे और सद्भाव के साथ रहते हैं वह एक दूसरे को हेय दृष्टि सी देखने लग जाते हैं और यह सामाजिक और पारंपरिक पद्धति के अनुरूप संगठनात्मक तरीके में फूट पड़ने लगती है , जिससे एक दूसरे की विपत्ति में भी यह लोग साथ नहीं आ पाते हैं और यहीं से राजनैतिक वोट बैंकों का ध्रुवीकरण हो जाता है तथा अपनी मात्र राजनीतिक पदलोलुपता हेतु अखंडता को नष्ट किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और यही राजनैतिक व्यक्ति बाद में जाकर उन्हीं सब लोगों के साथ आपसी सामंजस्य बनाने लगते हैं जिनके विरुद्ध इन्होंने एक विशेष समाज या तबके को बरगलाकर वोट बैंकों का ध्रुवीकरण किया है लेकिन यह सामान्य लोग इस चीज को समझ नहीं पाते हैं और इनके बनाए हुए जाल में फँस जाते हैं।
और यह चीज किसी से छिपी नहीं है जितने भी नेता जातिवाद की अवधारणा लेकर राजनीतिक पृष्ठभूमि में आए उन्होंने केवल और केवल अपने घर और परिवार की ही समृद्धि की है उसके अलावा उन्होंने उस जाति या समाज का उत्थान नहीं किया है और ना ही आगे आने वाले समय में कुछ कर सकते हैं लेकिन यह पीड़ित तबका कब समझेगा कि आखिरकार हमारा दुरुपयोग क्यों किया जा रहा है ? और कब तक किया जाएगा
इसमें तो गलती तो जितनी ऐसे राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की है उससे ज्यादा गलती प्रभावित लोगों की है आप देखिए जातिवाद या समाजवाद के आधार पर जितने नेतृत्व में आए उन्होंने केवल वित्त पोषण से अपने वंश को ही बढ़ाया है उसके बाद उनके जीवन शैली बदल गई लेकिन उनकी जीवनशैली नहीं बदली जिन्होंने उन्हें इस स्तर तक पहुंचाया।
भीमा कोरेगांव की घटना दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है वहां भी कुछ ऐसा ही हुआ है और ऐसे पूर्व में कई सारे उदाहरण भरे पड़े हैं लेकिन जब तक इन विषयों पर गहनता से अध्ययन नहीं किया जाएगा या लोगों तक जागृति नहीं जाएगी तब तक इसी प्रकार हमारा राष्ट्र इस आपसी संघर्ष से जलता रहेगा।
इसी सन्दर्भ में शिवमंगल सिंह सुमन जी की यह पंक्तियां प्रकाश डालती हैं
जाति-धर्म गृह-हीन
युगों का नंगा-भूखा-प्यासा,
आज सर्वहारा तू ही है
एक हमारी आशा।
ये छल छंद शोषकों के हैं
कुत्सित, ओछे, गंदे,
तेरा खून चूसने को ही
ये दंगों के फंदे।
तेरा एका गुमराहों को
राह दिखानेवाला ,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।
"इसी आशा के साथ मेरा देश अखण्ड रहे एकता आपसी भाईचारे व सद्भाव की भावना से इस राष्ट्र को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए कृतसंकल्पित हों"
ये लेखक के स्वयं के विचार है
कृष्णमुरारी त्रिपाठी "अटल"
संपर्क:-9617585228
जाति-धर्म गृह-हीन
युगों का नंगा-भूखा-प्यासा,
आज सर्वहारा तू ही है
एक हमारी आशा।
ये छल छंद शोषकों के हैं
कुत्सित, ओछे, गंदे,
तेरा खून चूसने को ही
ये दंगों के फंदे।
तेरा एका गुमराहों को
राह दिखानेवाला ,
मेरा देश जल रहा,
कोई नहीं बुझानेवाला।
"इसी आशा के साथ मेरा देश अखण्ड रहे एकता आपसी भाईचारे व सद्भाव की भावना से इस राष्ट्र को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए कृतसंकल्पित हों"
ये लेखक के स्वयं के विचार है
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