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नारद पत्रकारिता सम्मान समारोह में बोले डॉ सुब्रमण्यम स्वामी




जबलपुर : राज्यसभा सदस्य डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि पत्रकारों को भारतीयता को आगे रख कर ही लिखना-पढ़ना और बोलना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते सैकड़ों सालों के इतिहास में विदेशी आक्रमण और गुलामी के दौर में हमारे  धर्म,संस्कृति और इतिहास को डिस्टर्ब किया गया है, नतीजतन आज देश के भीतर ही विघटनकारी ताकतें सिर उठा रही हैं। डॉ स्वामी विश्व संवाद केंद्र में आयोजित देवर्षि नारद पत्रकारिता सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि की आंसदी से बोल रहे थे।
 
 उन्होने कहा कि हमारे संविधान ने मूलभूत अधिकार, धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति को दे रखी है, लेकिन इसका मतलब मनमानी नहीं हो सकती। मैं जब यह कहता हूं कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी का डीएनए एक है तो कुछ लोगों को बहुत तकलीफ होती है।  डॉ. स्वामी ने यह भी कहा कि समाचार-पत्रों को जो आजादी है उसे लेकर भी गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए क्योंकि हमारे संविधान ने सभी के लिए नैतिकता का अंकुश बना रखा है। इसलिए देश,धर्म अथवा संस्कृति,अखंडता और संप्रभुता पर कोई कुछ भी कहने अथवा आचरण करने स्वतंत्र है ऐसा नहीं है।  पारसियों और यहूदियों को सम्मानपूर्वक शरण देने वाले देश में असहिष्णुता की बात करना अपने आप में हैरानी की बात है। डॉ. स्वामी ने पत्रकारों और छायाकारों को सम्मानित करते हुए कहा कि संविधान में संशोधन किए जा सकते हैं लेकिन उसके मूलभूत ढांचे को नहीं बदला जा सकता जो कि संविधान का चरित्र है। ऐसा तो हमने इमरजेंसी के वक्त में भी नहीं होने दिया था। डॉ. स्वामी ने भारतीय इतिहास को समझने ग्रंथ और पुराणों को प्रामाणिक मानने, तथ्यों की सत्यता जांचने और मजाक नहीं उड़ाने आदि सलाह देते हुए कहा कि  सरकार से उम्मीद है कि वो गलत इतिहास पढ़ाने वाली पुस्तकों को बंद कराएगी।

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