आश्चर्यजनक : दुनियाभर में प्रदूषण से होने वाली मौत के मामले में पहले नंबर पर भारत
दुनियाभर में साल 2015 में प्रदूषण से 90 लाख लोगों की मौत हो गई थी। यह आंकड़ा इतना चौंकाने वाला है कि एड्स, टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों से होने वाली मौतों के कुल आंकड़े का 3 गुना है। वैज्ञानिकों की मानें तो गरीब देशों में सरकारों को प्रदूषण के प्रति सख्त कदम उठाने की जरूरत है। पलूशन और हेल्थ के लिए बनाए गए लैंसेट कमीशन की मानें तो दुनियाभर में प्रदूषण से होने वाली मौत के मामले में भारत पहले नंबर पर है जहां हर साल प्रदूषण की वजह से 25 लाख लोगों की मौत होती है। जबकि दूसरे नंबर पर चीन है जहां पलूशन से 18 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
6 में से 1 मौत का कारण है प्रदूषण
लैंसेट मेडिकल जर्नल में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में हर 6 में से एक 1 मौत का कारण प्रदूषण ही है जिसमें से सबसे ज्यादा मौतें विकासशील देशों में होती हैं। इस रिपोर्ट की ऑथर और इन्वाइरनमेंटल ग्रुप प्योर अर्थ की अडवाइजर कार्ति शांडिल्य कहती हैं, 'ग्लोबलाइजेशन की वजह से खनन और उत्पादन जैसी चीजें गरीब देशों की ओर स्थानांतरित हो गई हैं जहां वातावरण से जुड़े नियम-कानून बेहद ढीले और शिथिल हैं।'
लैंसेट मेडिकल जर्नल में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में हर 6 में से एक 1 मौत का कारण प्रदूषण ही है जिसमें से सबसे ज्यादा मौतें विकासशील देशों में होती हैं। इस रिपोर्ट की ऑथर और इन्वाइरनमेंटल ग्रुप प्योर अर्थ की अडवाइजर कार्ति शांडिल्य कहती हैं, 'ग्लोबलाइजेशन की वजह से खनन और उत्पादन जैसी चीजें गरीब देशों की ओर स्थानांतरित हो गई हैं जहां वातावरण से जुड़े नियम-कानून बेहद ढीले और शिथिल हैं।'
प्रदूषण से नहीं बच पाते गरीब तबके के लोग
अविकसित और विकासशील देशों में रहने वाले गरीब लोग, उदाहरण के लिए नई दिल्ली में रहने वाला एक कंस्ट्रक्शन मजदूर वायु प्रदूषण के प्रति ज्यादा एक्पोज्ड होता है और खुद को प्रदूषण से बचा भी नहीं पाता क्योंकि वह अपने काम की जगह तक पहुंचने के लिए सड़क पर पैदल चलता है या फिर बस का इस्तेमाल करता है जो पहले से ही प्रदूषित है। तो वहीं, दूसरी तरफ विकसित देशों में रहने वाले ज्यादातर लोग एयर-कंडिशन्ड ऑफिसों में काम करते हैं और एयर कंडिशन्ड गाड़ियों में चलते हैं।
अविकसित और विकासशील देशों में रहने वाले गरीब लोग, उदाहरण के लिए नई दिल्ली में रहने वाला एक कंस्ट्रक्शन मजदूर वायु प्रदूषण के प्रति ज्यादा एक्पोज्ड होता है और खुद को प्रदूषण से बचा भी नहीं पाता क्योंकि वह अपने काम की जगह तक पहुंचने के लिए सड़क पर पैदल चलता है या फिर बस का इस्तेमाल करता है जो पहले से ही प्रदूषित है। तो वहीं, दूसरी तरफ विकसित देशों में रहने वाले ज्यादातर लोग एयर-कंडिशन्ड ऑफिसों में काम करते हैं और एयर कंडिशन्ड गाड़ियों में चलते हैं।
प्रदूषण से हृदय रोग, कैंसर का खतरा
लंबे समय तक अगर इंसान का शरीर वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के बीच रहता है तो इससे इंसान के श्वास संबंधी सिस्टम और इन्फ्लेमेटरी सिस्टम पर गहरा असर पड़ता है जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और लंग कैंसर होने का खतरा रहता है। विकासशील देशों में करोड़ों लोग आज भी लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल कर खुले में खाना बनाते हैं जिससे वे लोग खासकर महिलाएं और बच्चे खतरनाक धुएं की गिरफ्त में आ जाते हैं। लैंसेट कमिशन की मानें तो सबसे ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित वे देश हैं औद्योगिकरण तेजी से हो रहा है। इन देशों में सख्त नियम-कानून बनाकर ही लोगों की सेहत को बचाया जा सकता है।
लंबे समय तक अगर इंसान का शरीर वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के बीच रहता है तो इससे इंसान के श्वास संबंधी सिस्टम और इन्फ्लेमेटरी सिस्टम पर गहरा असर पड़ता है जिससे हृदय रोग, स्ट्रोक और लंग कैंसर होने का खतरा रहता है। विकासशील देशों में करोड़ों लोग आज भी लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल कर खुले में खाना बनाते हैं जिससे वे लोग खासकर महिलाएं और बच्चे खतरनाक धुएं की गिरफ्त में आ जाते हैं। लैंसेट कमिशन की मानें तो सबसे ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित वे देश हैं औद्योगिकरण तेजी से हो रहा है। इन देशों में सख्त नियम-कानून बनाकर ही लोगों की सेहत को बचाया जा सकता है।
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