2 अप्रैल भारत बंद : SC-ST ACT के 8 मामले निकले झूठे, सभी आरोपी दोषमुक्त । MP NEWS
ग्वालियर। 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के बाद अनारक्षित व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज हुए SC-ST ACT के मामलों में से 8 मामलों में विशेष सत्र न्यायालय का फैसला आ गया हे। सभी केसों में कहानी झूठी निकली। फरियादी अपने आरोप प्रमाणित नहीं कर पाए और जाति सूचक गालियां देना भी प्रमाणित नहीं हुआ। इसके बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया। बता दें कि इन मामलों में कई आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया था।
एट्रोसिटी एक्ट के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय का गठन किया गया है। जिले में इस धारा के अपराधों के चालान विशेष कोर्ट में पेश किए जाते हैं। हाल ही में विशेष सत्र न्यायाधीश रविंदर सिंह का स्थानांतरण हो गया, उनकी जगह न्यायाधीश जाकिर हुसैन की पदस्थापना की गई है। नए न्यायाधीश ने 8 केसों की सुनवाई पूरी कर फैसला भी सुना दिया है। सुनवाई के दौरान एट्रोसिटी एक्ट के आरोप झूठे निकले। फरियादी व गवाहों ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया।
बता दें कि वर्ष 2018 में एट्रोसिटी एक्ट के बदलाव को लेकर पूरे देश में हंगामा हुआ था। सामाजिक संगठनों का कहना था कि एट्रोसिटी एक्ट के ज्यादातर केस झूठे होते हैं। वहीं कोर्ट से आने वाले फैसले भी इसका समर्थन कर रहे हैं। क्योंकि इस धारा के तहत दर्ज होने वाले केसों में 95 फीसदी केस झूठे निकल रहे हैं। केन्द्र सरकार ने एक्ट में संसोधन कर धारा 18 ए लागू कर दी है, इसके लागू होने से गिरफ्तारी अनिवार्य हो गई।
एट्रोसिटी एक्ट में कोर्ट ने सुनाए फैसलों पर एक नजर
महेन्द्र सिंह के खिलाफ 14 मई 2016 को अजाक थाने में केस दर्ज किया गया था। फरियादी को कोर्ट में गाली देना प्रमाणित नहीं हुआ। केस झूठा होने पर आरोपी दोषमुक्त हो गया।
धर्मेन्द्र गुर्जर सहित 4 लोगों पर 15 मार्च को मुरार थाने में केस दर्ज किया गया। आरोपियों के ऊपर आरोप था कि जाति सूचक गालियां दीं, लेकिन कोर्ट में घटना स्थल पर गालियां देना प्रमाणित नहीं हुआ।
कप्तान सिंह रावत सहित 6 लोगों पर करहिया थाने में 1 नवंबर 2017 को केस दर्ज किया गया। अभियोजन अपनी कहानी को साबित नहीं कर पाया। घटना स्थल पर जाति सूचक गालियां देना प्रमाणित नहीं हुआ।
मलकीत सिंह के खिलाफ ग्वालियर थाने में 16 जनवरी 2018 को केस दर्ज हुआ। गवाह ने बताया कि पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज बयान उसका नहीं है।
राहुल परिहार के खिलाफ बहोड़ापुर थाने में 8 जुलाई 2013 को केस दर्ज हुआ। फरियादी ने घटना का समर्थन नहीं किया।
कासिम कुरैशी सहित 4 लोगों पर जनकगंज थाने में 24 जनवरी 2014 को केस दर्ज हुआ। जाति सूचक गालियां देना प्रमाणित नहीं हुआ।
लवली बाथम के खिलाफ 12 सितंबर 2013 को पुरानी छावनी केस दर्ज किया गया। आरोपी पर एक महिला ने गालियां देने का आरोप लगाया, लेकिन वह कोर्ट में घटना से मुकर गई।
बंटी धाकड़ सहित 4 लोगों पर 25 दिसंबर 2017 को मोहना थाने में केस दर्ज किया गया। घटना प्रमाणित नहीं निकली।
सुप्रीम कोर्ट के नियमों को बदल दिया है सरकार ने
सुप्रीम कोर्ट ने एट्रोसिटी एक्ट के लिए नए प्रावधान किए थे। बिना जांच के किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं होगी। अगर थाना गिरफ्तार करता है तो उसके पीछे वाजिब कारण देना होगा। उसके लिए वरिष्ठ अधिकारी से इजाजत लेनी पड़ेगी। कोर्ट ने शासकीय कर्मचारी की बिना जांच व अनुमति के गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी, लेकिन सरकार ने एक्ट में संसोधन करके गिरफ्तारी अनिवार्य कर दी है।
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