जनजातियों के सशक्त संचार माध्यमों पर शोध की आवश्यकता आईजीएनटीयू में पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन
जनजातियों के सशक्त संचार
माध्यमों पर शोध की आवश्यकता
आईजीएनटीयू में पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन
अनूपपुर / अमरकटंक/प्रदीप मिश्रा -8770089979
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी जनजातीय संचार-मिथक, प्रतीक और यथार्थ शुक्रवार से प्रारंभ हुई। इस अवसर पर जनजातियों के मध्य संचार के विभिन्न माध्यमों पर चर्चा करते हुए इन्हें सशक्त माध्यमों में से एक बताया गया और इन पर शोध कर इसका डाक्यूमेंटेशन करने पर बल दिया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए पं. सुंदरलाल शर्मा (ओपन) विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो. बी.जी. सिंह ने वास्तविकता को समाज के सामने प्रस्तुत करने पर जोर दिया। उनका कहना था कि सभी वर्ग तथ्यों को अपनी सुविधा के अनुसार प्रस्तुत कर जनजातियों की वास्तविक परिस्थितियों को समाज के सामने नहीं रख पाते हैं जिससे उनका सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है। उन्होंने जनजातियों को उन्हीं की भाषा में शिक्षा प्रदान करने पर जोर देते हुए कहा कि इस वर्ग का विकास बिना किसी धर्म या जाति को देखकर किए जाने की आवश्यकता है।
आईजीएनटीयू के कुलपति प्रो. टी.वी. कटटीमनी ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों को 70 शोध परियोजनाएं दी गई है जिनमें आधी से अधिक परियोजनाएं जनजातियों के विकास से संबंधित हैं। उन्होंने जनजातीय किसानों के बीजों को संरक्षित कर इस प्रोत्साहित करने की आवश्यकता बताई। उनका कहना था कि इस संदर्भ में नीति आयोग को विस्तृत परियोजना दी गई है जिस पर सकरात्मक संकेत मिले हैं। उन्होंने जनजातियों के मध्य अधिकारों और शिक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद् प्रो. मधुकर उपाध्याय ने भारत में जनजातियों के मध्य संचार, उनके विकास और पिछड़ेपन के ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि जनजातियों का संचार उनका सबसे सशक्त माध्यम है। उनमें शिक्षा का प्रसार न होने के कारण इसका डाक्यूमेंटेशन नहीं हो पाया है। उन्होंने शिक्षकों और शोधार्थियों को उनके संचार पर सघन शोध के लिए प्रोत्साहित किया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो. सैफी किदवई ने नई तकनीक के प्रयोग से सभी के विकास को सुनिश्चित करने पर बल देते हुए कहा कि इससे समाज के सभी वर्गों को सशक्त बनाया जा सकता है। कार्यक्रम में डॉ. राघवेंद्र मिश्रा, डॉ. नागेंद्र कुमार सिंह, डॉ. कृष्णमूर्ति बी. वाई., अभिलाषा एलिस तिर्के सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी और छात्र उपस्थित थे। दो दिवसीय संगोष्ठी में 25 से अधिक विशेषज्ञ व्याख्यान और शोधपत्र प्रस्तुत करेंगे।
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