कप्तान के रूप में टूट चुके थे तेंदुलकर, संन्यास लेना चाहते थे
नई दिल्ली : क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले भारत रत्न सचिन तेंडुलकर ने वैसे तो इस खेल की बुलंदियों को छुआ है, लेकिन टीम इंडिया की कप्तानी करने के दौरान वह एक बार काफी हताश हो गए थे। एक मैच में टीम की हार के बाद तो उन्होंने दो दिन तक खुद को कमरे में बंद कर लिया था। यह खुलासा सचिन ने अपनी आटोबायोग्राफी 'प्लेइंग इट माय वे' में किया है। यह किताब 6 नवंबर को रिलीज होगी। बता दें कि तेंडुलकर का बतौर कप्तान रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। उन्होंने 1996 से 2000 तक 25 टेस्ट मैचों में भारत की कप्तानी की, जिनमें नौ में हार और चार में जीत मिली। बाकी मैच ड्रॉ रहे।
पत्नी अंजली से बांटा था दर्द
तेंडुलकर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है, "मुझे हारना पसंद नहीं और एक कप्तान के तौर पर भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानता था। काफी नजदीकी मुकाबले हारने से मैं काफी हताश था। मैंने अपना पूरा प्रयास किया और मुझे इतना भी विश्वास नहीं था कि मैं अपना 0.1 प्रतिशत भी ज्यादा दे सकता हूं। मैंने अपनी पत्नी अंजली को बताया कि मुझे डर है कि अब मैं टीम को हार से बाहर निकालने के लिए कुछ नहीं कर सकता। "
इसलिए किया कप्तानी छोड़ने का फैसला
तेंडुलकर ने कहा, "इस नाकामी से मुझे काफी दुख हुआ और इससे बाहर निकलने में मुझे काफी वक्त लगा। जब कुछ भी मेरे हिसाब से नहीं चल रहा था तो मैं इस खेल को छोड़ने के बारे में सोचने लगा।" तेंडुलकर ने खासतौर से वेस्ट इंडीज दौर का जिक्र किया है, जहां पर उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने सबसे कम स्कोर बनाया था। दो टेस्ट मैच ड्रॉ कराने के बाद भारत को तीसरे मैच में बारबाडोस में चौथी पारी में जीत के 120 रन की दरकार थी, लेकिन टीम 81 पर ऑल आउट हो गई थी।
31 मार्च, 1997 को बताया करियर का सबसे बुरा दिन
वेस्ट इंडीज के खिलाफ मिली इस करारी शिकस्त के बारे में सचिन ने लिखा है, "31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे काला दिन था और निश्चित तौर पर मेरे करियर का भी सबसे बुरा दिन था। सच में उस हार के लिए कोई दलील नहीं दी जा सकती। मैं हार के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता। टीम का हिस्सा और कप्तान होने के लिए मैं पूरी तरह से उस हार के जिम्मेदार था। इस हार में पूरी तरह टूट चुका था और मैंने अपने आप को दो दिनों तक कमरे में बंद कर लिया था। उस समय मैं इस हार से उबरने की कोशिश कर रहा था। मैं जब भी पीछे मुड़कर उस सीरीज की तरफ देखता हूं तो उस हार का दर्द महसूस करता हूं।"
पत्नी अंजली से बांटा था दर्द
तेंडुलकर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है, "मुझे हारना पसंद नहीं और एक कप्तान के तौर पर भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानता था। काफी नजदीकी मुकाबले हारने से मैं काफी हताश था। मैंने अपना पूरा प्रयास किया और मुझे इतना भी विश्वास नहीं था कि मैं अपना 0.1 प्रतिशत भी ज्यादा दे सकता हूं। मैंने अपनी पत्नी अंजली को बताया कि मुझे डर है कि अब मैं टीम को हार से बाहर निकालने के लिए कुछ नहीं कर सकता। "
इसलिए किया कप्तानी छोड़ने का फैसला
तेंडुलकर ने कहा, "इस नाकामी से मुझे काफी दुख हुआ और इससे बाहर निकलने में मुझे काफी वक्त लगा। जब कुछ भी मेरे हिसाब से नहीं चल रहा था तो मैं इस खेल को छोड़ने के बारे में सोचने लगा।" तेंडुलकर ने खासतौर से वेस्ट इंडीज दौर का जिक्र किया है, जहां पर उनकी कप्तानी में टीम इंडिया ने सबसे कम स्कोर बनाया था। दो टेस्ट मैच ड्रॉ कराने के बाद भारत को तीसरे मैच में बारबाडोस में चौथी पारी में जीत के 120 रन की दरकार थी, लेकिन टीम 81 पर ऑल आउट हो गई थी।
31 मार्च, 1997 को बताया करियर का सबसे बुरा दिन
वेस्ट इंडीज के खिलाफ मिली इस करारी शिकस्त के बारे में सचिन ने लिखा है, "31 मार्च 1997 भारतीय क्रिकेट के इतिहास में सबसे काला दिन था और निश्चित तौर पर मेरे करियर का भी सबसे बुरा दिन था। सच में उस हार के लिए कोई दलील नहीं दी जा सकती। मैं हार के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता। टीम का हिस्सा और कप्तान होने के लिए मैं पूरी तरह से उस हार के जिम्मेदार था। इस हार में पूरी तरह टूट चुका था और मैंने अपने आप को दो दिनों तक कमरे में बंद कर लिया था। उस समय मैं इस हार से उबरने की कोशिश कर रहा था। मैं जब भी पीछे मुड़कर उस सीरीज की तरफ देखता हूं तो उस हार का दर्द महसूस करता हूं।"
तेंडुलकर ने कहा, "वेस्ट इंडीज के खिलाफ मैच से एक दिन पहले रात को सेंट लॉरेंस गैप में एक रेस्त्रां में डिनर के दौरान मुझे याद है कि मैंने वेटर से मजाक किया कि कौन वेस्ट इंडीज की जीत की भविष्यवाणी कर रहा है। उसे विश्वास था कि अगली सुबह एंब्रोस भारत को ध्वस्त कर देगा।"
उन्होंने कहा, "मैच की पहली पारी में फ्रैंकलिन रोज ने मुझे बाउंसर फेंकी थी और मैंने पुल करते हुए छक्का जड़ा था। मैंने वेटर को वह शॉट याद दिलाया और मजाक में कहा कि अगर एंब्रोस मुझे बाउंसर फेंकने की कोशिश करेगा तो मैं गेंद को मारकर ऐंटिगा पहुंचा दूंगा।"
उन्होंने कहा, "मैच की पहली पारी में फ्रैंकलिन रोज ने मुझे बाउंसर फेंकी थी और मैंने पुल करते हुए छक्का जड़ा था। मैंने वेटर को वह शॉट याद दिलाया और मजाक में कहा कि अगर एंब्रोस मुझे बाउंसर फेंकने की कोशिश करेगा तो मैं गेंद को मारकर ऐंटिगा पहुंचा दूंगा।"
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