अपनी मां को ये नायाब तोहफा देना चाहेंगे रहाणे!
नई दिल्ली। टीम इंडिया के भरोसेमंद बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे के पास अब धन की कोई समस्या नहीं है, लेकिन एक ऐसा भी समय था, जब उनका परिवार उनके खर्चों को उठाने की स्थिति में नहीं था।
14 टेस्ट और 46 वनडे खेल चुका यह बल्लेबाज अपने माता-पिता को हर संभव आराम देकर संतुष्ट किया है। रहाणे अपनी मां को विश्व कप जीतकर क्रिकेट खेलने का उपहार देना चाहते हैं। गौरतलब है कि रहाणे का सपना ही विश्व कप जीतना है।
रहाणे विश्व कप में भारतीय टीम के प्रमुख बल्लेबाज है, टीम उन पर निर्भर है। माना जा रहा है कि अगर उनका बल्ला चला तो भारत विश्व कप का खिताब जीतने में जरुर कामयाब होगा।
इस तरह के काबिल क्रिकेट खिलाड़ी को जन्म देने वाले रहाणे के पिता मधुकर रहाणे और माता सुजाता रहाणे को अपने बेटे को लेकर देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों में दिख रहे इस विश्वास से अपार खुशी होती है, लेकिन इन दोनों ने अपने इस बेटे को इस स्तर तक पहुंचाने के लिए कई तरह के त्याग किए हैं।
सुजाता रहाणे एक अतिसाधारण मराठी महिला हैं। वह सार्वजनिक तौर पर अपने बेटे को लेकर कोई बात नहीं करतीं, लेकिन बेस्ट के पूर्व कर्मचारी मधुकर का कहना है कि रहाणे को एक सफल क्रिकेट खिलाड़ी बनाने में जितना त्याग सुजाता ने किया है, उसके सामने वह कुछ भी नहीं।
एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचीं सुजाता ने सिर्फ इतना कहा कि वह अपने बेटे से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करती हैं और चाहती हैं कि टीम विश्व कप जीते, लेकिन सुधाकर ने कुछ ऐसी बातें बताईं जो साफ बयां करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने को आतुर रहाणे के पीछे दरअसल एक साधारण परिवार का संस्कार रहा है, जो अपने सपनों को तिलांजलि देकर अपने बेटे के सपनों को सींच रहा था।
मधुकर ने कहा, "हम उस समय दोम्बीवली में रहा करते थे। हमारे घर से क्रिकेट मैदान लगभग दो किलोमीटर दूर था। रहाणे (अजिंक्य) ने आठ साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया था और उस समय उसका भाई सिर्फ आठ महीने का था। मेरी पत्नी अपनी गोद में छोटे बेटे को लेकर और दूसरे हाथ में अजिंक्य का क्रिकेट किट लेकर रोजाना मैदान जाया करती थीं।"
उन्होंने कहा, "मेरे पास इन सबके लिए वक्त नहीं था। मेरा काम सिर्फ परिवार के लिए धन कमाना था और छोटी सरकारी नौकरी में परिवार बड़ी मुश्किल से चल पाता था। हमारे लिए रहाणे के क्रिकेट के खर्चे का वहन करना मुश्किल था। कई बार मैंने इस ओर गम्भीरता से सोचा, लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे रहाणे को खेलने से रोकने से मना कर दिया। उन्हें शायद उसी समय से बेटे की प्रतिभा पर यकीन था।"
रहाणे 17 साल की उम्र में भारत के पूर्व टेस्ट बल्लेबाज और सचिन तेंडुलकर के बचपन के साथी प्रवीण आमरे के शिष्य बने, लेकिन उससे पहले अरविंद कदम नाम के एक व्यक्ति ने रहाणे परिवार को भरपूर मदद की थी।
मधुकर कहते हैं, "अरविंद ने हमारे परिवार की बहुत सहायता की। उन्होंने हमसे बिना कोई पैसे लिए रहाणे को अपनी क्रिकेट अकादमी में अभ्यास का मौका दिया।"
भारतीय टीम विश्व कप जीत पाएगी या नहीं, इस सवाल के जवाब में बेहद सौम्य सुजाता ने सिर्फ मुस्कुराकर कहा कि अच्छा खेले तो जरूर जीतेंगे। जाहिर है, मां होने के नाते सुजाता की दुआएं रहाणे के साथ हैं और टीम का अहम सदस्य होने के नाते वह देश के लिए विश्व कप जीतने का पूरा दम लगाएंगे, लेकिन सुजाता ऐसी मां हैं, जिन्होंने आज तक रहाणे से यह नहीं कहा कि तुम अच्छा खेलते हो या फिर खराब खेलते हो।
उन्हें तो बस अपने बेटे की सफलता पर खुशी होती है और वह भी शायद उस दिन के इंतजार में होंगी, जब यह युवा भारतीय टीम विश्व कप लेकर स्वदेश पहुंचेगी।
14 टेस्ट और 46 वनडे खेल चुका यह बल्लेबाज अपने माता-पिता को हर संभव आराम देकर संतुष्ट किया है। रहाणे अपनी मां को विश्व कप जीतकर क्रिकेट खेलने का उपहार देना चाहते हैं। गौरतलब है कि रहाणे का सपना ही विश्व कप जीतना है।
रहाणे विश्व कप में भारतीय टीम के प्रमुख बल्लेबाज है, टीम उन पर निर्भर है। माना जा रहा है कि अगर उनका बल्ला चला तो भारत विश्व कप का खिताब जीतने में जरुर कामयाब होगा।
इस तरह के काबिल क्रिकेट खिलाड़ी को जन्म देने वाले रहाणे के पिता मधुकर रहाणे और माता सुजाता रहाणे को अपने बेटे को लेकर देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों में दिख रहे इस विश्वास से अपार खुशी होती है, लेकिन इन दोनों ने अपने इस बेटे को इस स्तर तक पहुंचाने के लिए कई तरह के त्याग किए हैं।
सुजाता रहाणे एक अतिसाधारण मराठी महिला हैं। वह सार्वजनिक तौर पर अपने बेटे को लेकर कोई बात नहीं करतीं, लेकिन बेस्ट के पूर्व कर्मचारी मधुकर का कहना है कि रहाणे को एक सफल क्रिकेट खिलाड़ी बनाने में जितना त्याग सुजाता ने किया है, उसके सामने वह कुछ भी नहीं।
एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचीं सुजाता ने सिर्फ इतना कहा कि वह अपने बेटे से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करती हैं और चाहती हैं कि टीम विश्व कप जीते, लेकिन सुधाकर ने कुछ ऐसी बातें बताईं जो साफ बयां करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने को आतुर रहाणे के पीछे दरअसल एक साधारण परिवार का संस्कार रहा है, जो अपने सपनों को तिलांजलि देकर अपने बेटे के सपनों को सींच रहा था।
मधुकर ने कहा, "हम उस समय दोम्बीवली में रहा करते थे। हमारे घर से क्रिकेट मैदान लगभग दो किलोमीटर दूर था। रहाणे (अजिंक्य) ने आठ साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया था और उस समय उसका भाई सिर्फ आठ महीने का था। मेरी पत्नी अपनी गोद में छोटे बेटे को लेकर और दूसरे हाथ में अजिंक्य का क्रिकेट किट लेकर रोजाना मैदान जाया करती थीं।"
उन्होंने कहा, "मेरे पास इन सबके लिए वक्त नहीं था। मेरा काम सिर्फ परिवार के लिए धन कमाना था और छोटी सरकारी नौकरी में परिवार बड़ी मुश्किल से चल पाता था। हमारे लिए रहाणे के क्रिकेट के खर्चे का वहन करना मुश्किल था। कई बार मैंने इस ओर गम्भीरता से सोचा, लेकिन मेरी पत्नी ने मुझे रहाणे को खेलने से रोकने से मना कर दिया। उन्हें शायद उसी समय से बेटे की प्रतिभा पर यकीन था।"
रहाणे 17 साल की उम्र में भारत के पूर्व टेस्ट बल्लेबाज और सचिन तेंडुलकर के बचपन के साथी प्रवीण आमरे के शिष्य बने, लेकिन उससे पहले अरविंद कदम नाम के एक व्यक्ति ने रहाणे परिवार को भरपूर मदद की थी।
मधुकर कहते हैं, "अरविंद ने हमारे परिवार की बहुत सहायता की। उन्होंने हमसे बिना कोई पैसे लिए रहाणे को अपनी क्रिकेट अकादमी में अभ्यास का मौका दिया।"
भारतीय टीम विश्व कप जीत पाएगी या नहीं, इस सवाल के जवाब में बेहद सौम्य सुजाता ने सिर्फ मुस्कुराकर कहा कि अच्छा खेले तो जरूर जीतेंगे। जाहिर है, मां होने के नाते सुजाता की दुआएं रहाणे के साथ हैं और टीम का अहम सदस्य होने के नाते वह देश के लिए विश्व कप जीतने का पूरा दम लगाएंगे, लेकिन सुजाता ऐसी मां हैं, जिन्होंने आज तक रहाणे से यह नहीं कहा कि तुम अच्छा खेलते हो या फिर खराब खेलते हो।
उन्हें तो बस अपने बेटे की सफलता पर खुशी होती है और वह भी शायद उस दिन के इंतजार में होंगी, जब यह युवा भारतीय टीम विश्व कप लेकर स्वदेश पहुंचेगी।
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