अभिनेत्री साधना का मुंबई में 74 साल की आयु में निधन
मुंबई : बीते जमाने की जानी-मानी अभिनेत्री साधना का आज निधन हो गया है। वे काफी दिनों से बीमार चल रही थीं। पिछले दिनों मुंह में कैंसर की शिकायत के बाद उनकी सर्जरी करायी गयी थी। सर्जरी मुंबई के केजे सोमैया मेडिकल में की गई थी। उनकी सर्जरी लगातार नौ घंटों तक चली थी साधना का जन्म 2 सितम्बर 1941 को कराची में हुआ था। साधना अपने जमाने की एक प्रसिद्ध भारतीय सिने तारिका रही हैं। हरि शिवदासानी जो अभिनेत्री बबीता के पिता हैं, उनके पिता के भाई हैं। साधना अपने माता पिता की एकमात्र संतान थीं और 1947 मे देश के बंटवारे के बाद उनका परिवार कराची छोड़कर मुंबई आ गया। साधना का नाम उनके पिता मे अपनी पसंदीदा अभिनेत्री साधना बोस के नाम पर रखा था। उनकी माँ ने उन्हें आठ वर्ष की उम्र तक घर पर ही पढा़या था। साधना ने अपना करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार 1955 में प्रदर्शित फिल्म श्री 420 से की। इस फिल्म में साधना मुड़-मुड़ के न देख... गाने में एक कोरस गर्ल के रूप में नजर आई थीं। इसके बाद साधना ने 1958 में प्रदर्शित सिंधी फिल्म 'अबाना' में काम किया। बॉलीवुड में साधना ने अपने करियर की शुरूआत 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'लव इन शिमला' से की. फिल्म के सेट पर उन्हें फिल्म के निर्देशक आर.के. नैय्यर से प्रेम हो गया और बाद में उन्होंने उनसे शादी कर ली।
1961 में प्रदर्शित फिल्म 'हम दोनों' साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्हें देवानंद के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में देवानंद ने दोहरी भूमिका निभायी थी। साधना और देवानंद की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आई। इसके बाद साधना ने राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना में काम करने का अवसर मिला। फिल्म की कहानी एक ऐसे फौजी अफसर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याद्दाश्त चली जाती है। फिल्म के निर्माण के समय फिल्म के निर्माता एस. मुखर्जी ने राज खोसला को यह राय दी कि फिल्म की कहानी फ्लैशबैक से शुरू की जाये। एस. मुखर्जी की इस बात से राज खोसला सहमत नही थे। बाद में 1962 में जब फिल्म प्रदर्शित हुयी तो आरंभ में उसे दर्शकों का अपेक्षित प्यार नहीं मिला और राज खोसला के कहने पर एस. मुखर्जी ने फिल्म का संपादन कराया और जब फिल्म को दुबारा प्रदर्शित किया तो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। 1963 में साधना की एक और सुपरहिट फिल्म मेरे महबूब प्रदर्शित हुई। 1964 में साधना को एक बार फिर से राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म 'वह कौन थी' में काम करने का मौका मिला। फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गये। इस फिल्म के लिये साधना सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामांकित की गई। 1965 में प्रदर्शित फिल्म वक्त साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म के लिये भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामांमित किया गया। 1967 में राज खोसला ने एक बार फिर से साधना को लेकर फिल्म 'अनिता' का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गई। इन सबके बीच साधना ने 'राजकुमार', 'आरजू', 'मेरा साया', 'इंतकाम', 'एक फूल दो माली' जैसी कुछ सफल फिल्मों में काम किया।
हमारे देश के बंटवारे के वक्त अपने मां-बाप के साथ एक छह-सात साल की बच्ची तकलीफें उठाती हुई कराची (सिंध) से हिंदुस्तान दाखिल हुई। निर्धनता झेलते शिवदासानी परिवार का कला के प्रति रूझान था, साधना मुम्बई में स्कूल-कॉलेज में नाटकों में हिस्सा लेती रहती थी। एक दिन उन्हें उस जमाने के मशहूर निर्माता सुबोध मुखर्जी ने एक पत्रिका के मुख पृष्ठ पर देखकर लव इन शिमला फिल्म के लिए बतौर अभिनेत्री चुन लिया। साधना एक वर्ष पहले 1958 में एक सिंधी फिल्म अबाणा में भूमिका कर चुकी थी। प्रेम-कथाओं के अनुरूप साधना फिल्में करती चली गई। एक मुसाफिर एक हसीना, हम दोनों, असली-नकली, वो कौन थी, राजकुमार, आरजू, दूल्हा-दुल्हन, मेरा साया, अनीता इंतकाम उनकी कामयाब फिल्में रहीं। गीता मेरा नाम के निर्देशन के कारण साधना की अलग पहचान बनी । साधना के प्रमुख नायकों में शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, जॉय मुखर्जी, राजकपूर, देवानंद, सुनीलदत्त, मनोज कुमार इत्यादि शामिल थे । फिल्म दूल्हा-दुल्हन में राजकपूर के साथ साधना ने यादगार अभिनय किया। जिंदगी में सेहत रूपी धन सभी को हासिल नहीं होता। साधना साधारण बीमारियों का सामना करते-करते विवश सी हो गई और अभिनय यात्रा को विराम देना पड़ा।
उनकी इच्छा यही होती है कि उन्हें प्रशंसक युवावस्था की छवि से जानते रहें। साधना ने हिंदी सिनेमा के साथ ही देश की युवतियों को विशिष्ट केश सज्जा भी दी है। चूड़ीदार सलवार का चलन भी साधना के कारण हुआ। यही नहीं साधना ने कान के बड़े रिंग, गरारा, शरारा तिरछे काजल का फैशन भी चलाया। फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना के लोक प्रिय होने के बाद साठ के दशक में कॉलेज की युवतियों ने हंसने के बजाय मुस्कुराना शुरु कर दिया गया था ।
1961 में प्रदर्शित फिल्म 'हम दोनों' साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन्हें देवानंद के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म में देवानंद ने दोहरी भूमिका निभायी थी। साधना और देवानंद की जोड़ी दर्शकों को बेहद पसंद आई। इसके बाद साधना ने राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना में काम करने का अवसर मिला। फिल्म की कहानी एक ऐसे फौजी अफसर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याद्दाश्त चली जाती है। फिल्म के निर्माण के समय फिल्म के निर्माता एस. मुखर्जी ने राज खोसला को यह राय दी कि फिल्म की कहानी फ्लैशबैक से शुरू की जाये। एस. मुखर्जी की इस बात से राज खोसला सहमत नही थे। बाद में 1962 में जब फिल्म प्रदर्शित हुयी तो आरंभ में उसे दर्शकों का अपेक्षित प्यार नहीं मिला और राज खोसला के कहने पर एस. मुखर्जी ने फिल्म का संपादन कराया और जब फिल्म को दुबारा प्रदर्शित किया तो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई। 1963 में साधना की एक और सुपरहिट फिल्म मेरे महबूब प्रदर्शित हुई। 1964 में साधना को एक बार फिर से राज खोसला के निर्देशन में बनी फिल्म 'वह कौन थी' में काम करने का मौका मिला। फिल्म के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फिल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गये। इस फिल्म के लिये साधना सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामांकित की गई। 1965 में प्रदर्शित फिल्म वक्त साधना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म के लिये भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिये नामांमित किया गया। 1967 में राज खोसला ने एक बार फिर से साधना को लेकर फिल्म 'अनिता' का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नकार दी गई। इन सबके बीच साधना ने 'राजकुमार', 'आरजू', 'मेरा साया', 'इंतकाम', 'एक फूल दो माली' जैसी कुछ सफल फिल्मों में काम किया।
हमारे देश के बंटवारे के वक्त अपने मां-बाप के साथ एक छह-सात साल की बच्ची तकलीफें उठाती हुई कराची (सिंध) से हिंदुस्तान दाखिल हुई। निर्धनता झेलते शिवदासानी परिवार का कला के प्रति रूझान था, साधना मुम्बई में स्कूल-कॉलेज में नाटकों में हिस्सा लेती रहती थी। एक दिन उन्हें उस जमाने के मशहूर निर्माता सुबोध मुखर्जी ने एक पत्रिका के मुख पृष्ठ पर देखकर लव इन शिमला फिल्म के लिए बतौर अभिनेत्री चुन लिया। साधना एक वर्ष पहले 1958 में एक सिंधी फिल्म अबाणा में भूमिका कर चुकी थी। प्रेम-कथाओं के अनुरूप साधना फिल्में करती चली गई। एक मुसाफिर एक हसीना, हम दोनों, असली-नकली, वो कौन थी, राजकुमार, आरजू, दूल्हा-दुल्हन, मेरा साया, अनीता इंतकाम उनकी कामयाब फिल्में रहीं। गीता मेरा नाम के निर्देशन के कारण साधना की अलग पहचान बनी । साधना के प्रमुख नायकों में शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, जॉय मुखर्जी, राजकपूर, देवानंद, सुनीलदत्त, मनोज कुमार इत्यादि शामिल थे । फिल्म दूल्हा-दुल्हन में राजकपूर के साथ साधना ने यादगार अभिनय किया। जिंदगी में सेहत रूपी धन सभी को हासिल नहीं होता। साधना साधारण बीमारियों का सामना करते-करते विवश सी हो गई और अभिनय यात्रा को विराम देना पड़ा।
उनकी इच्छा यही होती है कि उन्हें प्रशंसक युवावस्था की छवि से जानते रहें। साधना ने हिंदी सिनेमा के साथ ही देश की युवतियों को विशिष्ट केश सज्जा भी दी है। चूड़ीदार सलवार का चलन भी साधना के कारण हुआ। यही नहीं साधना ने कान के बड़े रिंग, गरारा, शरारा तिरछे काजल का फैशन भी चलाया। फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना के लोक प्रिय होने के बाद साठ के दशक में कॉलेज की युवतियों ने हंसने के बजाय मुस्कुराना शुरु कर दिया गया था ।
सिंध का सौंदर्य साधना के रूप रंग को देखकर जाना जा सकता है। व्यवसायी सिंधी समाज भी अभिनय निर्देशन और फिल्म निर्माण में किसी से उन्नीस नहीं। शीला रमानी, किट्टू गिडवानी, बबीता, रेणुका इसरानी, श्वेता केसवानी, कुमार शाहनी, गोविंद निहलानी, पहलाज निहलानी, दिलीप ताहिल, सुधीर, असरानी, अर्जुन हिंगोरानी के अलावा विदा हो चुके मैकमोहन, जी.पी. सिप्पी और अजीत वाच्छानी, कितने ही शख्स हैं जो दर्शकों द्वारा सराहे गये। लेकिन साधना सिरमौर रहीं। अभाव रोड़ा नहीं बनते प्रगति में, यह साधना शिवदासानी ने सिद्व किया। जीने का अदम्य साहस आज भी उनमें है। कुछ साल पहले छोटे पर्दे पर कार्यक्रम संयोजन से जुड़ी रहीं साधना मातृभाषा सिंधी से प्रेम करती हैं । उन्होंने जीवन साथी आर.के.नैयर को भी सिंधी सिखा दी थी। वे गीत संगीत सुनना पसंद करती हैं। स्वयं अभिनीत फिल्मों के गीत काफी रुचि से सुनती हैं। । साधना समकालीन अभिनेत्रियों, मित्रों के प्रति सम्मान व्यक्त करती हैं। उनके शांत निर्मल, निश्छल चेहरे के भाव यही कहते है- नैना बरसे रिमझिम- रिमझिम। साधना फिल्म इंडस्ट्री की प्रथम फैशन आइकॉन, फस्र्ट यंग एंग्री वीमन (इंतकाम) फस्र्ट पापुलर आयटम सांग परफॉर्मर एक्ट्रेस (मेरा साया) पापुलर डबल रोल एक्ट करने वाली एक्ट्रेस (चार फिल्में) है, इसके अलावा साधना ने रहस्यमय और प्रेम फिल्मों को नई परिभाषा भी प्रदान की, वे राजेश खन्ना के सुपर स्टार बनने के पहले सुपर अदाकारा बन चुकी थीं। उनकी अधिकांश फिल्में सिल्वर जुबली मनाती थी। उन दिनों साधना फिल्म निर्माताओं के लिए सफलता का पैमाना बन गई थी । उस दौर में उन्हें अपनी समकालीन अभिनेत्रियों के मुकाबले ज्यादा मानदेय भी मिला ।
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