ऑस्ट्रेलियाई अखबार में कार्टून से भारतीय अर्थव्यवस्था पर छींटाकशी
मेलबर्न: ऑस्ट्रेलिया के एक प्रमुख अखबार में एक कार्टून प्रकाशित कर भारतीयों को भूखा और 'सोलर पैनल' खाते हुए दिखा गया है, जिस पर कई लोगों ने इसकी निंदा करते हुए इसे नस्लवादी बताया है। यह कार्टून पेरिस जलवायु सम्मेलन की प्रतिक्रिया में रूपर्ट मर्डोक के 'द ऑस्ट्रेलियन' में प्रकाशित हुआ है।
कार्टून से यह जाहिर होता है कि एक दुर्बल भारतीय परिवार सोलर पैनल तोड़ रहा है और एक व्यक्ति इसे 'आम की चटनी' के साथ खाने की कोशिश कर रहा है।
सोशल मीडिया और अकादमिक जगत में इस कार्टून को नस्लवादी बताते हुए इसकी आलोचना की जा रही है। मैकरी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्राध्यापिका अमंद वाइज ने गार्डियन ऑस्ट्रेलिया से कहा कि उनके विचार में कार्टून स्तब्ध करने वाला है और यह ब्रिटेन, अमेरिका या कनाडा में अस्वीकार्य होगा।
उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व का प्रौद्योगिकी केंद्र है और धरती पर कुछ सर्वाधिक हाईटेक उद्योग दुनिया के उस हिस्से में हैं। इसका यह संदेश है कि विकासशील देशों में लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इन प्रौद्योगीकियों की जरूरत नहीं है- उन्हें भोजन की जरूरत है।
ट्विटर पर इस कार्टून की व्यापक रूप से निंदा की गई है। कई लोगों ने भारत के तेजी से विकसित होते सतत उर्जा क्षेत्र की ओर ध्यान खींचा है। डीकीन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक यीन पारडीज का भी विचार है कि कार्टून का संदेश नस्लवादी है। उनके हवाले से बताया गया है, 'संदेश यह है...भारत अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने में विवेकहीन है और उसे कोयले पर निर्भर रहना चाहिए।
कार्टून से यह जाहिर होता है कि एक दुर्बल भारतीय परिवार सोलर पैनल तोड़ रहा है और एक व्यक्ति इसे 'आम की चटनी' के साथ खाने की कोशिश कर रहा है।
सोशल मीडिया और अकादमिक जगत में इस कार्टून को नस्लवादी बताते हुए इसकी आलोचना की जा रही है। मैकरी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्राध्यापिका अमंद वाइज ने गार्डियन ऑस्ट्रेलिया से कहा कि उनके विचार में कार्टून स्तब्ध करने वाला है और यह ब्रिटेन, अमेरिका या कनाडा में अस्वीकार्य होगा।
उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व का प्रौद्योगिकी केंद्र है और धरती पर कुछ सर्वाधिक हाईटेक उद्योग दुनिया के उस हिस्से में हैं। इसका यह संदेश है कि विकासशील देशों में लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इन प्रौद्योगीकियों की जरूरत नहीं है- उन्हें भोजन की जरूरत है।
ट्विटर पर इस कार्टून की व्यापक रूप से निंदा की गई है। कई लोगों ने भारत के तेजी से विकसित होते सतत उर्जा क्षेत्र की ओर ध्यान खींचा है। डीकीन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक यीन पारडीज का भी विचार है कि कार्टून का संदेश नस्लवादी है। उनके हवाले से बताया गया है, 'संदेश यह है...भारत अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने में विवेकहीन है और उसे कोयले पर निर्भर रहना चाहिए।
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