भगवान राम पर दर्ज हुआ महिला उत्पीड़न का केस,सीता पर किया था जुल्म
सीतामढ़ी : बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक वकील ने भगवान राम को महिला विरोधी बताते हुए उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करवाया है। टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक जिले के डुमरी कला गांव निवासी वकील ठाकुर चंदन कुमार सिंह ने भगवान राम के खिलाफ दायर कराए गए मुकदमे में कहा है कि उन्होंने अपनी पत्नी सीता पर अत्याचार किए थे।
चंदन ने कहा कि वह भी मिथिला में पैदा हुए और सीता भी मिथिला में ही पैदा हुई थीं, लेकिन अयोध्या नरेश राम ने मिथिला की बेटी के साथ इंसाफ नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया है कि त्रेता युग में भगवान राम ने एक धोबी की बातों में आकर अपनी पत्नी सीता को त्याग दिया।
मामले की सुनवाई सोमवार होगी। मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि मां जानकी (सीता) का कोई कसूर नहीं था। इसके बाद भी भगवान राम ने उन्हें जंगल में क्यों भेजा। कोई भी पुरुष पत्नी पर इतना बड़ा जुल्म कैसे कर सकता है?
ठाकुर चंदन सिंह ने आवेदन में लिखा है कि जो महिला अपने पति के सुख-दुख में पूरी धर्म निष्ठा के साथ धर्मपत्नी होने का दायित्व निभा रही हो, उसके साथ इतना संज्ञेय अपराध क्यों किया। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि घनघोर जंगल में अकेली महिला कैसे रहेगी। उन्होंने कहा है कि त्रेता युग में श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला की धरती पर राजा जनक जी के यहां आयोजित स्वयंवर में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने शिवजी के धनुष को जीतकर माता सीता से विवाह रचाया। फिर अपने पिता दशरथ के इच्छानुसार 14 वर्षों के लिए वनवास चले गए। तब माता सीता धर्मपत्नी के धर्म का पालन करते हुए उनके साथ वनवास गयीं।
14 वर्षों के वनवास के बाद रामचंद्रजी का राज्याभिषेक होता है। तब उन्हें गुप्तचरों के माध्यम से जानकारी मिलती है कि उनके ही नगर के एक धोबी पत्नी को डांटते हुए कहता है कि मैं राम नहीं हूं, जो अपनी पत्नी को पराये पुरुष के साथ रहने के बाद भी पत्नी के रूप में स्वीकर लूं। ठाकुर चंदन सिंह ने अपने परिवाद पत्र में यह लिखा है कि यह मुकदमा लाने का उद्देश्य सीताजी को न्याय दिलाना है, न की किसी धर्म की भावना को ठेस पहुंचाना। उन्होंने यह भी लिखा है कि यह मुकदमा न्यायलय में लाने का आधार यह है कि सीताजी मिथिला की धरती की बेटी थी। परिवादी भी सौभाग्य से इसी धरती पर उत्पन्न हुआ है। उसे ऐसा लग रहा है कि उसकी धरती की बेटी के साथ अयोध्या नरेश (रामचंद्र जी) ने इंसाफ नहीं किया।
चंदन ने कहा कि वह भी मिथिला में पैदा हुए और सीता भी मिथिला में ही पैदा हुई थीं, लेकिन अयोध्या नरेश राम ने मिथिला की बेटी के साथ इंसाफ नहीं किया। उन्होंने आरोप लगाया है कि त्रेता युग में भगवान राम ने एक धोबी की बातों में आकर अपनी पत्नी सीता को त्याग दिया।
मामले की सुनवाई सोमवार होगी। मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि मां जानकी (सीता) का कोई कसूर नहीं था। इसके बाद भी भगवान राम ने उन्हें जंगल में क्यों भेजा। कोई भी पुरुष पत्नी पर इतना बड़ा जुल्म कैसे कर सकता है?
ठाकुर चंदन सिंह ने आवेदन में लिखा है कि जो महिला अपने पति के सुख-दुख में पूरी धर्म निष्ठा के साथ धर्मपत्नी होने का दायित्व निभा रही हो, उसके साथ इतना संज्ञेय अपराध क्यों किया। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि घनघोर जंगल में अकेली महिला कैसे रहेगी। उन्होंने कहा है कि त्रेता युग में श्री राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ मिथिला की धरती पर राजा जनक जी के यहां आयोजित स्वयंवर में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने शिवजी के धनुष को जीतकर माता सीता से विवाह रचाया। फिर अपने पिता दशरथ के इच्छानुसार 14 वर्षों के लिए वनवास चले गए। तब माता सीता धर्मपत्नी के धर्म का पालन करते हुए उनके साथ वनवास गयीं।
14 वर्षों के वनवास के बाद रामचंद्रजी का राज्याभिषेक होता है। तब उन्हें गुप्तचरों के माध्यम से जानकारी मिलती है कि उनके ही नगर के एक धोबी पत्नी को डांटते हुए कहता है कि मैं राम नहीं हूं, जो अपनी पत्नी को पराये पुरुष के साथ रहने के बाद भी पत्नी के रूप में स्वीकर लूं। ठाकुर चंदन सिंह ने अपने परिवाद पत्र में यह लिखा है कि यह मुकदमा लाने का उद्देश्य सीताजी को न्याय दिलाना है, न की किसी धर्म की भावना को ठेस पहुंचाना। उन्होंने यह भी लिखा है कि यह मुकदमा न्यायलय में लाने का आधार यह है कि सीताजी मिथिला की धरती की बेटी थी। परिवादी भी सौभाग्य से इसी धरती पर उत्पन्न हुआ है। उसे ऐसा लग रहा है कि उसकी धरती की बेटी के साथ अयोध्या नरेश (रामचंद्र जी) ने इंसाफ नहीं किया।

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