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शिवराज ने निभाया ‘राजधर्म’

राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
चौहान के तेंदुलकर नरोत्तम साबित हुए अतिउत्तम
भोजशाला विवाद को लेकर उपजी भ्रांतियों का जिस तरह समय रहते अस्थायी ही सही समाधान निकाल लिया गया उसने न सिर्फ शासन-प्रशासन, उनकी सरकार की भी लाज बचा ली..इस बार न लाठी चार्ज और न ऐनटाइम पर कोई बड़ा बवाल यदि नहीं मचा तो निश्चित तौर पर इसके लिए शिवराज और उनकी सरकार का तंत्र बधाई का पात्र है..ये कहना गलत नहीं होगा कि शिवराज ने राजधर्म निभाया..अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों की नाराजगी को भांपकर सरकार ने डैमेज कंट्रोल की जो कोशिशें की उसे अंजाम तक पहुंचाने में आज किसी एक शख्स को इसका श्रेय दिया जाएगा तो वो कोई और नहीं, संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा होंगे जिन्होंने शिवराज की कसौटी पर एक बार फिर उस वक्त खरा उतरकर दिखाया जब साख मुख्यमंत्री की मानो दांव पर लग चुकी थी..अंत भला तो सब भला, की जो कहावत आज चरितार्थ हुई वो कुछ सवाल भी खड़े कर गई है चाहे फिर वो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़ा मामला हो या फिर बहुसंख्यकों की अपेक्षाओं से। मैहर उपचुनाव में व्यस्त सीएम शिवराज के सामने जब पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे को सफल बनाने की बड़ी चुनौती सामने थी तब धार ने उन्हें धर्मसंकट में डाल दिया था जहां बहुसंख्यकों की अगुवाई कर रहे तथाकथित भगवाधारियों ने शक्ति प्रदर्शन कर प्रशासन की नींद उड़ा दी थी..ये सच है कि इस संकट का समाधान सियासी तौर पर निकाल लिया गया जो सरकार की सफलता को रेखांकित करता है..लेकिन इसमें प्रशासन की भी बड़ी भूमिका रही चाहे फिर इसके लिए हजारों सुरक्षाकर्मियों को मैदान में उतारना पड़ा..कुल मिलाकर एक बार फिर वसंतपंचमी पर परंपरा का निर्वाह करते हुए यथास्थिति को कायम रखने में शासन-प्रशासन सफल रहा..फर्क इतना है कि इस बार न तो कोई लाठीचार्ज हुआ और न ही भगदड़ या तनाव की स्थिति निर्मित करने वाले कोई बयान भी सुनने और देखने को नहीं मिले..स्थानीय और क्षेत्रीय मीडिया ने भी अपनी जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया..कल्पना कीजिए यदि कोई होनी-अनहोनी होती तो सबसे ज्यादा भद किसकी पिटती.. शिवराज भी इससे बच नहीं सकते थे..और यदि उन्हें एक्शन में आना पड़ता तो कलेक्टर-एसपी के अलावा िजले के प्रभारी मंत्री की भी खैर नहीं थी..सब कुछ ठीक-ठाक यदि रहा तो ये कहना भी गलत नहीं होगा कि शासन-प्रशासन ने नियम-कानून और सुरक्षा कर्मियों के लाव-लश्कर की आड़ में दबाव बनाकर एएसआई की गाइडलाइन का यदि पालन कराया तो पर्दे के पीछे अल्पसंख्यकों को साधने की बात हो या फिर भगवाधारियों को भरोसे में लेने की बात हो जिले के प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अंतिम 72 घंटे में दिन-रात एक कर हर गुत्थी को सुलझा लिया..कुछ दिन पहले ही सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा की विधानसभा सत्र के दौरान फ्लोर मैनेजमेंट की क्षमता का कायल होते हुए उन्हें अपनी टीम का सचिन तेंदुलकर बताकर जो खिताब दिया था उसने उन्हें जवाबदेही का अहसास कराया था..वसंतपंचमी पर फिर मिश्रा और बतौर धार के प्रभारी मंत्री अपनी जवाबदेही निभाने का दबाव था जिसमें वो कामयाब रहे..नरोत्तम मिश्रा को आगे रखकर संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन ने भी हिन्दुत्व के पैरोकारों को उद्वेलित नहीं होने देने में बड़ी भूमिका निभाई..जहां तक बात नरोत्तम मिश्रा की हो तो आज तो उनकी तारीफ बनती है क्योंकि इन दिनों मध्यप्रदेश न सिर्फ केंद्र बल्कि खासतौर से पीएम की भी नजर में है..जहां वो एक हफ्ते बाद किसानों को फसल बीमा की सौगात देने के लिए खुद आ रहे हैं..ऐसे में सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए भी भोजशाला में पूजा के साथ नमाज सुनिश्चित करवाना बड़ी चुनौती बन गया था..क्योंकि शिवराज की सेकुलर इमेज भी दांव पर लग चुकी थी..नरोत्तम मिश्रा पहले भी शिवराज के लिए किसी संकटमोचक से कम साबित नहीं हुए..जब भी मुख्यमंत्री और उनके परिवार पर व्यक्तिगत हमले विरोधियों के द्वारा किए गए तो सरकारी प्रवक्ता होने के नाते नरोत्तम को सामने लाया जाता..बीजेपी की 12 साला सरकार में 10 साल पूरे कर चुके शिवराज को मजबूत करने में यूं तो उनकी कैबिनेट उनके साथ कदमताल करने को मजबूर है लेकिन कुछ प्रसंग ऐसे हैं जिन्हें आज याद किया जाएगा..तो वो नरोत्तम को कम से कम शिवराज के लिए अतिउत्तम साबित करते हैं चाहे फिर वो प्रभात झा को राज्यसभा में भेजे जाने के िलए कम पड़े 8 विधायकों के जुगाड़ और बीजेपी के लिए उनके समर्थन की बात हो या फिर सदन में कांग्रेस के उपनेता रहते चौधरी राकेश सिंह का अप्रत्याशित तौर पर अपनी ही पार्टी को निशाने पर लेना और शिवराज के साथ खड़ा दिखाना हो..यही नहीं राकेश सिंह को बीजेपी की सदस्यता दिलाकर अजय सिंह को कमजोर करना हो..इससे पहले कल्पना परुलेकर के साथ राकेश सिंह का सदन से निष्कासन और फिर उनकी बहाली भी चर्चा में रही जिसमें पर्दे के पीछे शिवराज और अजय सिंह के बीच अहम कड़ी रहे थे.कल्पना  परुलेकर और पी पी नावलेकर विवाद   में भी भूमिका निभाई....बात यहीं खत्म नहीं होती फ्लोम मैनेजमेंट के एक माहिर खिलाड़ी बनकर उभरे मिश्रा का ही कमाल था जो उन्होंने कांग्रेस द्वारा भिंड से लोकसभा का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद भागीरथ प्रसाद को बीजेपी के पाले में लाकर खड़ा कर दिया..ग्वालियर-चंबल की राजनीति में मंत्री रहते अनूप मिश्रा के इस्तीफे के पटकथा को अंजाम तक पहुंचाने में भी बीजेपी के इस ब्राह्मण नेता ने अहम भूमिका उस वक्त निभाई थी जब शिवराज के लिए नया संकट खड़ा हो गया था..कांग्रेस की विधायक रहते कल्पना परुलेकर और लोकायुक्त पीपी नावलेकर के बीच पोस्टर विवाद को भी एक्सपोज किया था..आज चर्चा नरोत्तम की इसलिए हो रही है वो भोजशाला विवाद का वसंतपंचमी के विशेष मौके पर पटाक्षेप से जुड़ा है ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि क्या शिवराज और उनकी सरकार इस मामले का स्थायी समाधान तलाशने में रुचि क्यों नहीं लेते..क्या बहुसंख्यकों की मांग सरकार की नजर में सही नहीं है..यदि सही नहीं है और इसे बेवजह तूल दिया जा रहा है तो इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है..क्या ये सिर्फ भगवाधारियों की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था जिन्हें पर्दे के पीछे संघ की आशीर्वाद हासिल है..क्या वो सिर्फ दबाव बनाने के लिए हो हल्ला करते हैं..और अपनी मांगों की आड़ में एक बार फिर उन्होंने जो हासिल करना था क्या वो हासिल कर िलया..इस एपीसोड में क्या अल्पसंख्यक मजबूर नजर आया..या फिर उसके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं था या फिर ये वर्ग भी सिर्फ सियासत के लिए इस दिन का इंतजार करता है..सवाल ये खड़ा होता है कि क्या संघ अपने मकसद में सफल रहा या फिर शिवराज की सेकुलर छवि के सामने चाहकर भी वो कुछ नहीं कर सका..धार में भगवाधारियों ने सड़क पर आकर जिस ताकत का प्रदर्शन किया क्या वो पिछले दिनों अल्पसंख्यकों के प्रदेश के कुछ शहरों में दिखाई गई एकजुटता का जवाब था..बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि शिवराज सिंह ने राजधर्म निभाकर जो मिसाल कायम की है उससे प्रदेश का सदभाव बना रहेगा और बीजेपी-संघ के शीर्ष नेता इससे कोई सीख लेंगे..

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