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मोदीजी के चमच और चंपूगिरी!

विवेक सक्सेना
बात उन दिनों की है जब मैं दिल्ली प्रेस में नौकरी करता था। वहां के मालिक-संपादक परेशनाथ काफी व्यवहारिक और सख्त प्रशासक माने जाते थे। उन्हें अपने कर्मचारियों की हरकतों को भांपने में जरा भी देर नहीं लगती थी। वहां संपादकीय विभाग के प्रभारी राम लुभाया शर्मा थे जो अपना अधिकांश समय इधर-उधर की बात करने में बिताते थे। उन्हें वहां के जनरल मैनेजर सीपी खरे पसंद नहीं करते थे। एक दिन खरे साहब परेशनाथ के पास गए और उनसे कहने लगे कि यह रामलुभाया कोई कामधाम नहीं करता है। जब देखों आपके केबिन के अंदर पहुंच जाता है और आपकी चमचागीरी करता है। यह एकदम नाकारा है। यह सुनकर परेशनाथ कुछ क्षणों के लिए सोच में पड़ गए। फिर उन्होने खरे से मुस्कुराते हुए कहा कि आप की बात तो ठीक है पर आप इसे इस तरह से क्यों नहीं सोचते हैं कि पूरे दफ्तर में वही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो कि इस बात का ध्यान रखता है कि मुझे क्या सुनना अच्छा लगता है। अब खरे के शांत हो जाने की बारी थी और शर्मा मजे से नौकरी करते रहे। इस घटना का जिक्र इसलिए करना पड़ रहा है कि पिछले कुछ दिनों से जैसे गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू व शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू के बयान सुने हैं तो यह विश्वास हो चला है कि अमित शाह भले ही अखबार न पढ़ते हो पर नरेंद्र मोदी जरुर अखबार पढ़ते होंगे।

चंद दिन पहले किरण रिजिजू ने अपनी फेस बुक पर लिखा था कि नास्त्रेदमस ने 450 साल पहले यह भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत में 2014 से 2026 तक नरेंद्र मोदी का राज होगा। पहले लोग उससे घृणा करेंगे और फिर उसे इसलिए चाहने लगेंगे क्योंकि वह दुनिया में भारत की दशा और हैसियत बदलकर रख देगा। पहले यह जान ले कि नास्त्रेदमस है कौन? वह एक फ्रांसीसी व्यक्ति था जो कि 1503 में पैदा हुआ व 1556 में मर गया। उसने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में तमाम भविष्यवाणियां लिख डालीं। यह सब फ्रैंच में लिखी गई थी। बाद में उनका अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। ताम्रपत्र पर लिखी भाषा की तरह, लोगों ने उसे अपने हिसाब से उनका अनुवाद व व्याख्या की। उसका असली नाम माइकेल डी नोस्त्रडेम था। लैटिन भाषा में उसे नोस्त्रेदमस कहा जाने लगा। उसकी 6338 भविष्यवाणियां ‘लैस प्रोफेटीज’ नामक पुस्तक में उसकी मृत्यु से एक साल पहले छापी गईं।

अब जब भी दुनिया में कोई बड़ी घटना घटती है तो यह चर्चा शुरु हो जाती है कि उसने तो फंला घटना की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी। इनमें अब्राहम लिंकन की मौत से लेकर अमेरिका में हुए आतंकी हमले तक की भविष्यवाणी करने की घटनाएं शामिल हैं। जब खाड़ी युद्ध हुआ तो लोगों ने कहा कि उसने सद्दाम हुसैन के बारे में भी भविष्यवाणी की है। फिर जब अफगानिस्तान का मामला आया तो यह दावे किए गए कि उसने बिन लादेन की भविष्यवाणी भी की, हालांकि यह दावा जरनैल सिंह भिंडरावाले के बारे में भी किया गया था। सच कहूं तो उसकी भविष्यवाणी तो भृगु संहिता के भविष्यवाणी के पन्नों की तरह है जिनका लोग अपने हिसाब से व्याख्या करते हैं।

अपने एक लिख्खाड़ मित्र ने 9/11 कांड होते ही हिंदी में नोस्त्रेदमस पर किताब लिख दी थी जो हाथों-हाथ बिकी। उसका प्रकाशक आमतौर पर ‘दुनिया के सभी बड़े चोर’ ‘संसार की सबसे चर्चित वेश्याएं’ सरीखी किताबों की सीरीज छापने में माहिर था। मित्र की कल्पना शक्ति भी गजब थी। उसने लिखा कि नोस्त्रेदमस ने 1535 में लिखा था कि दो बड़े ताकतवर स्तंभ, आकाश में उड़ती धातु की चिड़िया, टकराव और धमाका। सुअर के मुंह वाले लोग (उसने बताया कि इसका मतलब) गैस मास्क लगाकर घुमते लोग था।

खैर यह सब तो चलता रहता है पर किरण रिजिजू ने भारत का नाम कैसे ढूंढ लिया यह समझ में नहीं आता है क्योंकि तब तक अंग्रेज भारत नहीं आए थे व इस देश का नाम ‘इंडिया’ नहीं रखा गया था। तब तो लोकतंत्र भी स्थापित नहीं हो पाया था। कुछ भी हो उनकी कल्पना की उड़ान की तारीफ करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि सारा मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मक्खन लगाने का है।

अब जरा वैंकेय्या नायडू को ले लिया जाए। उन्हें तुकबंदी में महारत हासिल है। पहले जब मैं अंर्तराष्ट्रीय बस अड्डे से बाहर जाने के लिए बस में सफर करता था तो उसमें सामान बेचने वाले चढ़ आते थे। वे चिल्ला कर कहते, ‘पेन का दाम है, कैलेंडर इनाम है’, वगैरह-वगैरह’। जब पार्टी सत्ता से बाहर थी तो अक्सर कांग्रेस पर छींटाकशी करते हुए कहते कि उधर वलचर (गिद्ध) है, इधर कल्चर है। शायद उनकी इस अदा पर मोहित होकर ही उन्हें इतना अहम मंत्रालय दिया गया। उन्होंने भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक में गजब कर दिया। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी तो हमारे लिए भगवान का उपहार है। वो ऐसा उपहार है जिसने भारत की दुनिया में इज्जत बढ़ायी, पहचान बनायी।

यह पढ़कर मुझे देवकांत बरुआ की याद हो आई जिन्होंने आपातकाल के दौरान नारा दिया था कि ‘इंदिरा इज इंडिया’। असमी के इस जाने माने कवि व तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ने कुछ पंक्तियां लिखी थीं। जैसे ‘इंदिरा तेरे काम की जय, इंदिरा तेरे नाम की जय’। हालांकि जब आपातकाल समाप्त हुआ और इंदिरा गांधी चुनाव हार गई तो वे कांग्रेस (एस) में चले गए। वैसे राजनीति में चंपूगीरी की शुरुआत 1969 से हुई थी। जब तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं को यह लगने लगा था कि नेता की मक्खनबाजी करके ही आगे बढ़ा जा सकता है। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद के. कामराज को लगता था कि इस ‘गूंगी गुड़िया’ (इंदिरा गांधी) को प्रधानमंत्री बनवाकर वे उन्हें अपनी कठपुतली बना लेंगे। यहीं वे गलती कर बैठे और गूंगी गूड़िया, महारानी लक्ष्मीबाई साबित हुई।

आपातकाल के दौरान चमचे और चमचागीरी, डेंगू की तरह से फैले और पनपे। उस समय अबु अब्राहम ने एक कार्टून बनाया था जिसमें तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को बाथरुम में नहाते हुए किसी फाइल पर दस्तखत करते हुए यह कहते दिखाया गया था, अगर और भी आर्डीनेंस है तो जरा इंतजार कर लो, मैं नहा कर आता हूं। तब जाने माने पत्रकार खुशवंत सिंह ने लंदन से राल्स रायस कंपनी में एंप्रेटिसशिप करके लौटे संजय गांधी की प्रस्तावित मारुति कार के बारे में लिखा था कि अगले साल से 50,000 अनूठी कारें बाजार में उतर आएंगी। वैसे खुशवंत सिंह में सच कहने की इतनी हिम्मत थी कि उन्होने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि हिंदुस्तान टाइम्स का संपादक सरकार के कहने पर लगाया जाता है, मुझे भी संजय गांधी ने नौकरी दिलवायी थी।

इससे पहले किन्हीं पासवान ने लालू चालीसा लिखी थी व लालू ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। दक्षिण में तो लोग नेताओं के मंदिर बना देते हैं। उन्हें देवी देवता के रुप में प्रस्तुत करते हैं। अभी तक भाजपा इस रोग से बची नजर आ रही थी। पर अब यहां भी वही सब शुरु हो गया है। लगता है कि मंत्रिमंडल का फेरबदल करीब आ रहा है तभी चंपूगीरी शुरु कर दी गई है। प्रधानमंत्रीजी सावधान रहिएगा कहीं यह लोग मैडम तुसाद के संग्रहालय वाली प्रतिमा उड़ाकर यहां आपका मंदिर न बना दे। वैसे सुना है कि वाराणसी के तमाम भाजपाई आपकी चालीसा और पुराण तैयार करने में जुट गए हैं।

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