-->

Breaking News

राज्यसभा : चुनाव तो बहाना है...

राकेश अग्निहोत्री(सवाल दर सवाल)
राज्यसभा की जिन 3 सीटों के लिए मध्यप्रदेश में बीजेपी ने तीसरा उम्मीदवार अपनी ही पार्टी के प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया को निर्दलीय मैदान में उतारा है उसके यदि नाम वापसी नहीं हुई तो चुनाव की स्थिति निर्मित होना तय है..इस चुनाव में बीजेपी की ओर से अनिल दवे और एमजे अकबर पहली दो प्राथमिकताओं में शामिल हैं, इसलिए उनका चयन तय है लेकिन तीसरी सीट के लिए कांग्रेस का पलड़ा विवेक तन्खा की उम्मीदवारी से भारी होने के बावजूद निर्दलीय विनोद गोटिया के कारण चुनाव दिलचस्प हो गया है..ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि बीजेपी ने यदि अपने जिम्मेदार प्रदेश महामंत्री को चुनाव लड़ाने का मन बनाया है तो उन्हें पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार घोषित करने से परहेज क्यों बरता। सवाल ये भी है कि क्या इससे खरीद फरोख्त को बढ़ावा मिलेगा तो पलड़ा धनबल के आधार पर कांग्रेस उम्मीदवार का भारी होगा या फिर केंद्र-राज्य में सरकार के दबदबे का फायदा बीजेपीविधायकों के समर्थन से खड़े हुए उनके निर्दलीय उम्मीदवार को मिलेगा...
 
बीजेपी और कांग्रेस की रणनीति पर गौर करें तो पहले बात बीजेपी की करते हैं जिसने पहली किस्त में दूसरी सीट पर नाम घोषित न करते हुए अनिल दवे के नाम का ऐलान किया जिनका दावा संघ की पृष्ठभूमि और शीर्ष नेतृत्व के वरदहस्थ के चलते सबसे मजबूत साबित हुआ। दूसरी किस्त में एक और नाम एमजे अकबर के तौर पर सामने आया..जिन्हें पत्रकार बिरादरी के चंदन मित्रा की जगह मध्यप्रदेश से राज्यसभा में भेजने का फैसला केंद्रीय नेतृत्व ने एकतरफा लिया..अनिल दवे और अकबर के नाम के का ऐलान अलग-अलग किए जाने की गुत्थी भले ही सुलझ गई क्योंकि दूसरी सीट के दावेदारों में सुभाष चंद्रा से लेकर प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे के नाम हवा में तैरते रहे, लेकिन तीसरी सीट पर पैनी नजर लगाए बैठी बीजेपी आधी अधूरी रणनीति के साथ में अंतिम दिन मैदान में आई..यहीं पर सवाल खड़ा होता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने तीसरी सीट पर दिलचस्पी ली तो फिर दम ठोककर उसे पार्टी प्रत्याशी घोषित करने का साहस नहीं जुटा पाई तो वजह जोड़ तोड़ और चुनावी गणित पर भरोसा नहीं होना रहा या फिर सोची समझी रणनीति के तहत निर्दलीय उम्मीदवार के लिए दूसरे दलों और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करना है..घोड़ाडोंगरी जहां रिजल्ट बुधवार को आना है उसे छोड़कर विधानसभा में संख्याबल को ध्यान में रखते हुए जो दांव बीजेपी ने निर्दलीय के तौर पर खेला है उस पर अब सबकी नजर बीएसपी और निर्दलीय के अलावा कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग पर आकर टिक जाती है..4 से 6 विधायकों के इस गणित ने कांग्रेस खासतौर से विवेक तन्खा को भी चौकन्ना कर दिया होगा जो कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर गाजे बाजे के साथ दिग्विजय, सिंधिया, पचौरी जैसे दिग्गजों की मौजूदगी में फॉर्म दाखिल कर चुके हैं..कांग्रेस को इस बात का अहसास था कि आक्रामक रणनीति का इजहार करने वाली और कांग्रेस मुक्त का भारत का नारा देने वाली बीजेपी तोड़ फोड़ कर तीसरी सीट अपने खाते में ले जा सकती है इसलिए उसने कानूनी दांव पेंच समझने वाले विवेक तन्खा जिनकी घोषित संपत्ति ने नेताओं के कान खड़े कर दिए वो इस सीट को जीत सकते हैं..विवेक तन्खा के व्यक्तिगत संबंध सीएम शिवराज सिंह चौहान से भी तमाम विवादों के बाद भी बेहतर और प्रगाढ़ हैं और चर्चा ये भी है कि शायद तन्खा ने फॉर्म भरने से पहले सीएम को भरोसे में भी ले लिया होगा..चुनाव राज्यसभा का है और पुराने अनुभवों को याद रखते हुए कांग्रेस और बीजेपी शह-मात के इस सियासी खेल में अपनी बाजी पक्की करने की फिराक में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं..ऐसे में कांग्रेस के पास विवेक तन्खा से बेहतर दूसरा उम्मीदवार नहीं हो सकता था वह बात और है कि वो जबलपुर से चुनाव हार चुके हैं तो राज्यसभआ के चुनाव में भी मात खा चुके हैं फिर भी यदि उनके हौसले बुलंद हैं तो फिर साफ है कि हर मोर्चे पर तन्खा अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहे बल्कि सारे विकल्प भी खोल रखे हैं..इस चुनाव में कांग्रेस की एकता की गूंज दिल्ली तक जब सुनाई दी तो राष्ट्रीय नेतृत्व खासतौर पर अमित शाह ने रामलाल के मार्फत प्रदेश इकाई को यह संदेश पहुंचाया कि तीसरी सीट पर उसे कांग्रेस की शिकस्त चाहिए तब उम्मीदवार के तौर पर प्रदेश मंत्री अजय प्रताप सिंह का नाम सामने आया लेकिन वो तब तक सीधी के लिए रवानगी डाल चुके थे और फॉर्म भरने के वक्त तक नहीं पहुंचने से विनोद गोटिया के नाम पर सहमति बनाई गई और इसकी जानकारी शीर्ष नेतृत्व को भी दी गई..एक दिन पहले तक पूर्व विधायक कांग्रेस छोड़ बीजेपी आए चौधरी राकेश सिंह का नाम भी सुर्खियों में रहा लेकिन बताया जाता है कि एक घंटे का समय लिया और सीएम को विश्वास में लेकर अपना दावा नहीं बनने दिया..इस बीच चर्चा यह भी है कि दिल्ली में बैठे मध्यप्रदेश के कुछ नेता तीसरी सीट के चुनाव पर एकजुट नजर नहीं आने के बाद भी विनोद गोटिया को आगे लागाय गया..गोटिया यानी पूर्व संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन के सबसे करीबी पदाधिकारी तो मेनन की शिवराज से नजदीकी छुपी नहीं है एेसे में बीजेपी के रणनीतिकारों ने जो भी दांव खेला लेकिन चुनाव हारने के बाद भी गोटिया का सियासी कद बढ़ना तय है जिनकी नंदूभैया की नई टीम में अब वापसी तय मानी जा रही है..बीजेपी को भरोसा है िक दो निर्दलीयों के साथ एक बीएसपी और 3 से 4 कांग्रेस विधायकों का समर्थन उसे हासिल हो सकता है। चर्चा यह भी गर्म है कि कांग्रेस तन्खा को नहीं उतारती तो बीजेपी ने 7 से 8 कांग्रेस विधायकों से क्रॉस वोटिंग करवाकर उन्हें अपने पाले में खड़ा दिखाने की रणनीति बना ली थी..लेकिन अंतिम समय में उस रणनीति को बदल दिया गया..फिर भी दिल्ली के दखल के बाद तीसरा उम्मीदवार जो बीजेपी से जुड़ा है निर्दलीय उतारा गया..सवाल यह खड़ा होता है कि बीजेपी के सामने आखिर इस जीत को लेकर विकल्प क्या है..क्या वो पार्टी में व्हिप जारी करने की स्थिति में है..क्या वो कांग्रेस में सेंध लगाने में सफल होगी..या फिर बीजेपी राज्य और केंद्र के बीच समन्वय नहीं बन पाने का फायदा कांग्रेस उठा ले जाएगी..ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि दिल्ली ने क्या शिवराज पर दबाव बनाने के लिए तीसरे उम्मीदवार का दांव खेला है..या फिर शिवराज ने निर्दलीय की आड़ में अपने व्यक्तिगत रिश्तों का भी ध्यान रखा है..सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या मेनन की रवानगी के बाद केंद्र राज्यसभा चुनाव के जरिए मध्यप्रदेश पर कौन से हित साध रही है..देखना दिलचस्प होगा कि यदि चुनाव होते हैं तो कौन किस तरह एक्सपोज होता है, चाहे फिर वो बीजेपी हो या कांग्रेस...अभी तक राज्य और केंद्र में बेहतर समन्वय नहीं बन पाने के जो संकेत मिले हैं उससे सवाल ये खड़ा होता है कि तीसरी सीट को जीतने को लेकर दोनों कितने संजीदा हैं क्योंकि यदि दिल्ली को कोई संकेत देना था तो फिर कोई दमदार उम्मीदवार को मैदान में उतारना था क्योंकि विनोद गोटिया और विवेक तन्खा दोनों जबलपुर के हैं और विधायक संजय पाठक के मार्फत दोनों के बीच में अच्छे रिश्ते हैं..यदि प्रदेश नेतृत्व गंभीर है तो फिर पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार घोषित करने का साहस वह क्यों नहीं जुटा पाया..यह भी सच है कि विवेक तन्खा पर दबाव बढ़ गया है ऐसे में कांग्रेस पर न सिर्फ अपना घर एकजुट बल्िक उत्तराखंड की तरह उसे बसपा विधायकों का भी खुला समर्थन हासिल करने की भी चुनौती होगी..

-----
(लेखक स्वराज एक्सप्रेस एमपी/सीजी के पॉलिटिकल एडिटर हैं)
Rakesh Agnihotri
+919893309733

No comments

सोशल मीडिया पर सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त करते हुए एमपी ऑनलाइन न्यूज़ मप्र का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला रीजनल हिन्दी न्यूज पोर्टल बना हुआ है। अपने मजबूत नेटवर्क के अलावा मप्र के कई स्वतंत्र पत्रकार एवं जागरुक नागरिक भी एमपी ऑनलाइन न्यूज़ से सीधे जुड़े हुए हैं। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ एक ऐसा न्यूज पोर्टल है जो अपनी ही खबरों का खंडन भी आमंत्रित करता है एवं किसी भी विषय पर सभी पक्षों को सादर आमंत्रित करते हुए प्रमुखता के साथ प्रकाशित करता है। एमपी ऑनलाइन न्यूज़ की अपनी कोई समाचार नीति नहीं है। जो भी मप्र के हित में हो, प्रकाशन हेतु स्वीकार्य है। सूचनाएँ, समाचार, आरोप, प्रत्यारोप, लेख, विचार एवं हमारे संपादक से संपर्क करने के लिए कृपया मेल करें Email- editor@mponlinenews.com/ mponlinenews2013@gmail.com