संघ की “हांडी” में क्या पक रहा मोदी ” पुलाव”
राकेश अग्निहोत्री (सवाल दर सवाल)
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी से लंबी चर्चा ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक सत्ता संगठन की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है ।बैठक के एजेंडे को लेकर कवास वादी जब जोरों पर है तब सब की नजर दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों इस बैठक पर आ कर टिक गई है जिसमें हो बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री हो प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री से रूबरू होने वाले हैं यही नहीं इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत की अगुवाई में 29 अगस्त को होने वाली संघ और बीजेपी की समन्वय बैठक का महत्व भी और बढ़ गया है ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है आखिर संघ की हांडी में क्या पक रहा है वह भी तब जब दही मक्खन की हांडी bjp धूमधाम से थोड़ी है और संग को ऐसे लोगों की चिंता सता रही है जिनके हाथ मक्खन तो दूर अभी तक खुरचन भी नहीं लगी है तो संघ की चिंता लाजमी है मिशन 2019 यानी मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने से पहले होने वाले विधानसभा चुनाव मैं कमल कैसे खिलता नजर आए।
जब देश में जन्माष्टमी की धूम है तब भोपाल में पूर्व निर्धारित एजेंडा के तहत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का आगमन होता है वह भी उस वक्त जब क्षेत्र विशेष की संघ और बीजेपी के बीच समन्वय बैठक में 1825 के लिए अनुसांगिक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों को अपना शीश त्यौहार छोड़कर राजधानी के शारदा विहार में बुलाया गया उसे स्थानीय लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश अपने परिजनों से दूर रहे वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर बेहतर मेजबान की भूमिका निभाते हुए vip ही नहीं वीवीआईपी नेताओं के साथ जन्माष्टमी मुख्यमंत्री निवास पर समारोह पूर्वक मनाई इसके लिए संगीत संध्या ही नहीं मटकी फोड़ यानी मक्खन की हांडी का इंतजाम भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए किया गया और मुख्यमंत्री निवास एक बार फिर दद्दा जी की मौजूदगी में शिवलिंग निर्माण के बाद खास ही नहीं हम लोगों के लिए खोल दिया गया लेकिन दूसरी हो सियासत भी खूब गरम रही सुबह ही मुख्यमंत्री समेत किम नंदू भइया और संघ के दूसरे अनुसांगिक संगठनों के साथ मध्य प्रदेश का दिल्ली में प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री समन्वय बैठक में माथापच्ची का हिस्सा बने इस बैठक का दूसरा दौर शुक्रवार को मंत्रियों और बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार विमर्श के लिए आगे बढ़ेगा जिसमें सन 2018 की राह में रोड बनने वाली समस्याओं का समय रहते समाधान तलाशने की संजीदगी के साथ पहल देखी गई लेकिन खबर तो अमित शाह के भोपाल पहुंचते ही बड़ी हो गई यदि अमित शाह संघ और बीजेपी के बीच समन्वय का काम देख रहे कृष्ण गोपाल के साथ संघ के नंबर दो भैया जी जोशी से साहब लंबी चर्चा करते हैं तो फिर इसके एजेंडे को लेकर सवाल खड़ा होना लाजमी है। सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि संगति हांडी में मोदी का पुलाव पक रहा है तो मोदी और शाह के बीच लंबे समय से पक नहीं खिचड़ी आखिर बीजेपी की अंदरुनी राजनीति में क्या गुल खिलाने वाली है क्योंकि दिल्ली और बिहार के बाद के संदेश जा चुका है की bjp को राज्य में भी एक चित्रण चेहरे की दरकार है तो तो फिर राज्य की राजनीति में क्या पुराने चहरे पर ही दांव लगाएगा या फिरकुछ नए प्रयोग को लेकर जारी सस्पेंस को वह अब खत्म कर देना चाहता है क्योंकि इन राज्यों में उस कहावत को विकास के एजेंडे को आगे रख ठेंगा दिखाया है जिसमें कहा जाता था काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती देखना दिलचस्प होगा किस संघ की चिंता मोदी की लोकप्रियता बरकरार रहने के बावजूद केंद्र सरकार का ग्राफ गिरने को लेकर ज्यादा है या फिर उसे चिंता उन राज्यों की ज्यादा सता रही है जहां एंटी इनकंबेंसी एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने हैं तो सत्ता और संगठन इन राज्यों में कार्यकर्ताओं की आंख की किरकिरी बन चुका है। यदि अमित शाह की पूर्व में की गई घोषणा को याद किया जाए जिसमें उन्होंने 2015 और 16 को संगठन वर्ष के तौर पर रेखांकित किया था ।तो फिर साफ है कि समय सीमित बच्चा है क्योंकि अमित शाह खुद अपनी उस नई टीम का ऐलान नहीं कर पाए हैं जिसके भरोसे मोदी और शाह उत्तर प्रदेश में कमल खिलाने को आतुर है बल्कि पंजाब से लेकर अपने ग्रह प्रदेश गुजरात को ध्यान में रखते हुए पूर्ण राज्य में है कमल फिर खिलाना चाहते हैं जहां वह लगातार सत्ता में है और सीधा मुकाबला कांग्रेस से है सत्ता वापसी की कि चुनौती के बीच अपने घर को दुरुस्त यानी कमजोर कलियों को मजबूत करने के लिए उसने सरकार ही नहीं संगठन की छवि में सुधार लाने की ठानी है और एक नए प्रयोग के साथ बैठकों का दौर अब निर्णायक घर में प्रवेश कर चुका है उसके परिणाम बदलाव और नए प्रयोग के साथ 25 सितंबर को होने वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक के आसपास देखने को मिल सकते हैं यानी कालीकट में होने वाली इस परिषद की बैठक से पहले अमित शाह को अपनी नई टीम का ऐलान हर हाल में करना होगा ।जिसमें अभी तक ज्यादा बदलाव ना आने की चर्चा कुछ ज्यादा हीहै। समन्वय और दूसरी बैठकों की सियासी कड़ियों को जोड़ा जाए तो बहुत संभव है की अमित शाह उस सूची पर मंथन कर उसे अंतिम रूप देने के लिए भोपाल आकर भैया जी जोशी से मिले जिसका ऐलान सितंबर के पहले पखवाड़े या उससे पहले कर दिया जाएगा। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कैबिनेट का कुछ समय पहले ही विस्तार का सरकार को एक नई दिशा दे चुके हैं अब जब अमित शाह की टीम सामने आएगी तो वह बीजेपी की अंदरुनी राजनीति को किस हद तक प्रभावित करेगी क्योंकि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन मुख्यमंत्रियों को दिल्ली बनाए जाने की चर्चा ठंडी पड़ चुकी है लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव मोदी की नाक के सवाल बन चुका है और यदि गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत राष्ट्रीय नेतृत्व में महसूस की तो फिर पर्दे के पीछे संघ की नजर सिर्फ उत्तर प्रदेश और पंजाब पर ही नहीं बल्कि बीजेपी शासित तीन राज्य मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान पर भी टिक चुकी होगी जहां सरकार में फिर बने रहने।
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल की मौजूदगी में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी से लंबी चर्चा ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक सत्ता संगठन की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है ।बैठक के एजेंडे को लेकर कवास वादी जब जोरों पर है तब सब की नजर दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों इस बैठक पर आ कर टिक गई है जिसमें हो बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री हो प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री से रूबरू होने वाले हैं यही नहीं इसके बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत की अगुवाई में 29 अगस्त को होने वाली संघ और बीजेपी की समन्वय बैठक का महत्व भी और बढ़ गया है ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है आखिर संघ की हांडी में क्या पक रहा है वह भी तब जब दही मक्खन की हांडी bjp धूमधाम से थोड़ी है और संग को ऐसे लोगों की चिंता सता रही है जिनके हाथ मक्खन तो दूर अभी तक खुरचन भी नहीं लगी है तो संघ की चिंता लाजमी है मिशन 2019 यानी मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने से पहले होने वाले विधानसभा चुनाव मैं कमल कैसे खिलता नजर आए।
जब देश में जन्माष्टमी की धूम है तब भोपाल में पूर्व निर्धारित एजेंडा के तहत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का आगमन होता है वह भी उस वक्त जब क्षेत्र विशेष की संघ और बीजेपी के बीच समन्वय बैठक में 1825 के लिए अनुसांगिक संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों को अपना शीश त्यौहार छोड़कर राजधानी के शारदा विहार में बुलाया गया उसे स्थानीय लोगों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश अपने परिजनों से दूर रहे वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर बेहतर मेजबान की भूमिका निभाते हुए vip ही नहीं वीवीआईपी नेताओं के साथ जन्माष्टमी मुख्यमंत्री निवास पर समारोह पूर्वक मनाई इसके लिए संगीत संध्या ही नहीं मटकी फोड़ यानी मक्खन की हांडी का इंतजाम भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए किया गया और मुख्यमंत्री निवास एक बार फिर दद्दा जी की मौजूदगी में शिवलिंग निर्माण के बाद खास ही नहीं हम लोगों के लिए खोल दिया गया लेकिन दूसरी हो सियासत भी खूब गरम रही सुबह ही मुख्यमंत्री समेत किम नंदू भइया और संघ के दूसरे अनुसांगिक संगठनों के साथ मध्य प्रदेश का दिल्ली में प्रतिनिधित्व करने वाले केंद्रीय मंत्री समन्वय बैठक में माथापच्ची का हिस्सा बने इस बैठक का दूसरा दौर शुक्रवार को मंत्रियों और बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार विमर्श के लिए आगे बढ़ेगा जिसमें सन 2018 की राह में रोड बनने वाली समस्याओं का समय रहते समाधान तलाशने की संजीदगी के साथ पहल देखी गई लेकिन खबर तो अमित शाह के भोपाल पहुंचते ही बड़ी हो गई यदि अमित शाह संघ और बीजेपी के बीच समन्वय का काम देख रहे कृष्ण गोपाल के साथ संघ के नंबर दो भैया जी जोशी से साहब लंबी चर्चा करते हैं तो फिर इसके एजेंडे को लेकर सवाल खड़ा होना लाजमी है। सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि संगति हांडी में मोदी का पुलाव पक रहा है तो मोदी और शाह के बीच लंबे समय से पक नहीं खिचड़ी आखिर बीजेपी की अंदरुनी राजनीति में क्या गुल खिलाने वाली है क्योंकि दिल्ली और बिहार के बाद के संदेश जा चुका है की bjp को राज्य में भी एक चित्रण चेहरे की दरकार है तो तो फिर राज्य की राजनीति में क्या पुराने चहरे पर ही दांव लगाएगा या फिरकुछ नए प्रयोग को लेकर जारी सस्पेंस को वह अब खत्म कर देना चाहता है क्योंकि इन राज्यों में उस कहावत को विकास के एजेंडे को आगे रख ठेंगा दिखाया है जिसमें कहा जाता था काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती देखना दिलचस्प होगा किस संघ की चिंता मोदी की लोकप्रियता बरकरार रहने के बावजूद केंद्र सरकार का ग्राफ गिरने को लेकर ज्यादा है या फिर उसे चिंता उन राज्यों की ज्यादा सता रही है जहां एंटी इनकंबेंसी एक बड़ी समस्या के तौर पर सामने हैं तो सत्ता और संगठन इन राज्यों में कार्यकर्ताओं की आंख की किरकिरी बन चुका है। यदि अमित शाह की पूर्व में की गई घोषणा को याद किया जाए जिसमें उन्होंने 2015 और 16 को संगठन वर्ष के तौर पर रेखांकित किया था ।तो फिर साफ है कि समय सीमित बच्चा है क्योंकि अमित शाह खुद अपनी उस नई टीम का ऐलान नहीं कर पाए हैं जिसके भरोसे मोदी और शाह उत्तर प्रदेश में कमल खिलाने को आतुर है बल्कि पंजाब से लेकर अपने ग्रह प्रदेश गुजरात को ध्यान में रखते हुए पूर्ण राज्य में है कमल फिर खिलाना चाहते हैं जहां वह लगातार सत्ता में है और सीधा मुकाबला कांग्रेस से है सत्ता वापसी की कि चुनौती के बीच अपने घर को दुरुस्त यानी कमजोर कलियों को मजबूत करने के लिए उसने सरकार ही नहीं संगठन की छवि में सुधार लाने की ठानी है और एक नए प्रयोग के साथ बैठकों का दौर अब निर्णायक घर में प्रवेश कर चुका है उसके परिणाम बदलाव और नए प्रयोग के साथ 25 सितंबर को होने वाली राष्ट्रीय परिषद की बैठक के आसपास देखने को मिल सकते हैं यानी कालीकट में होने वाली इस परिषद की बैठक से पहले अमित शाह को अपनी नई टीम का ऐलान हर हाल में करना होगा ।जिसमें अभी तक ज्यादा बदलाव ना आने की चर्चा कुछ ज्यादा हीहै। समन्वय और दूसरी बैठकों की सियासी कड़ियों को जोड़ा जाए तो बहुत संभव है की अमित शाह उस सूची पर मंथन कर उसे अंतिम रूप देने के लिए भोपाल आकर भैया जी जोशी से मिले जिसका ऐलान सितंबर के पहले पखवाड़े या उससे पहले कर दिया जाएगा। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कैबिनेट का कुछ समय पहले ही विस्तार का सरकार को एक नई दिशा दे चुके हैं अब जब अमित शाह की टीम सामने आएगी तो वह बीजेपी की अंदरुनी राजनीति को किस हद तक प्रभावित करेगी क्योंकि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन मुख्यमंत्रियों को दिल्ली बनाए जाने की चर्चा ठंडी पड़ चुकी है लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव मोदी की नाक के सवाल बन चुका है और यदि गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत राष्ट्रीय नेतृत्व में महसूस की तो फिर पर्दे के पीछे संघ की नजर सिर्फ उत्तर प्रदेश और पंजाब पर ही नहीं बल्कि बीजेपी शासित तीन राज्य मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान पर भी टिक चुकी होगी जहां सरकार में फिर बने रहने।
फीडबैक के लिए समन्वय बैठकों का दौर चल रहा है जहां तक बात मध्य प्रदेश में हो रही संघ और बीजेपी की समन्वय बैठक का सवाल है तो इसमें जरूर सभी संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों की विस्तार से सुनी गई होगी लेकिन एजेंडा पहले ही ऊपर क्या हो चुका होगा और उसको फॉलो कराने की एक्सरसाइज यह बैठक हमें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए जन्माष्टमी के मौके पर संघ और बीजेपी के तीन शीर्ष नेताओं की मौजूदगी इस बात का स्पष्ट संकेत है किस संघ की हड्डी में जो पक रहा है वो कुछ और नहीं मोदी का पुलाव है यानी bjp को दिल्ली की सत्ता मैं वापसी से पहले दिल्ली और बिहार से सीख लेते हुए उन राज्यों मेंभी सरकार बनाना है जो हो मिशन 2019 की नीवं साबित होंगे कुल मिलाकर शारदा विहार में जब संघ की हॉलीवुड हंदी पर सबकी नजर है तब श्यामला हिल्स में भी पिछले कई सालों से मक्खन मलाई और दही की हनी पौधे आ रहे शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर मटकी फोड़ का आयोजन कर अपने प्रदेश की जनता को हैप्पीनेस का एहसास कराया कि यहां सब कुछ ठीक है और अमित शाह जी आप खुद देख ले तो संघ भी समझ ले कि अभी सरकार में वापस आना है तो मध्यप्रदेश में शिवराज के जादू पर ही निर्भर रहना होगा जो अभी तक कांग्रेस की मेहंदी तोड़ता रहा है वह बात और है कि शिव के राज में चौहान ने प्रदेश की सात सात करोड़ जनता को मक्खन मलाई भले ही नहीं खिलाई लेकिन उनकी शुभ जरूरी है चाहे फिर वह बाढ़ पीड़ित हो या फिर सिंघस्थ के धर्मावलंबी और किसान ही नहीं दलित और आदिवासी सभी के लिए फैसले जरूर ऐसे लिए क्यों नहीं भी उनका हक मिल सके कहने वाले यह कह सकते हैं कि ऐसे लोगों की भी लंबी लाइन है जिन्हें आज तक क्वेश्चन भी नसीब नहीं हुई चाहे फिर वह अधिकारी वर्ग से जुड़े हो या फिर पार्टी के अनुभवी नेता।
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