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पर्सनल लॉ बोर्ड का मार्डन निकाहनामाः पत्नी को भी तलाक का अधिकार

लखनऊ । तीन तलाक को लेकर इस समय बड़ी बहस छिड़ी हुई है। सर्वोच्च अदालत में भी मामला लंबित है। इस सबके बीच ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने शुक्रवार को अपना मार्डन निकाहनामा पेश किया। इसमें बोर्ड ने पत्नी को तलाक का हक देने का प्रस्ताव किया है।

शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना डॉ.कल्बे सादिक को मार्डन निकाहनामे का प्रारूप सौंपा। मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि कल्बे सादिक ने निकाहनामे को देशभर में लागू कराने की अपील की है। साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अगली बैठक में इसको शामिल करने का अनुरोध किया। डॉ. कल्बे सादिक ने कहा कि वह पहले ही तीन तलाक के बारे में बोर्ड की मीटिंग में अपनी राय रख चुके हैं। तीन तलाक को लेकर सुन्नी समुदाय के फिरकों में मतभेद है। उन्होंने कहा कि इस जमाने में महिलाओं को नाराज करके किसी भी धर्म को नहीं चलाया जा सकता। मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि इस्लाम में पुरुषों व महिलाओं को बराबर हक है। इसलिए शिया पर्सनल लॉ बोर्ड जल्द सुलतानुल मदारिस में सदस्यों की बैठक कर तीन तलाक सहित अन्य मसलों पर हल निकालने की कोशिश करेगा। मौलाना ने कहा कि वर्ष 2007 के मुंबई अधिवेशन में बोर्ड ने पहली बार निकाहनामा पेश किया था। शिया समुदाय में निकाह के लिए गवाह की जरूरत नहीं होती है, लेकिन जब तलाक का मामला आता है तो गवाह जरूरी हो जाता है।

क्या है निकाहनामा

पति-पत्नी को बराबरी का हकमहिलाओं को तलाक का अधिकारभारतीय संविधान के दायरे में हैशियों के सर्वोच्च धर्मगुरु आयतुल्ला सिस्तानी ने दी मंजूरीमहिलाओं को भी नौकरी या रोजगार का हकनिकाह के बाद दहेज की मांग करने पर पाबंदीजिंदगी की जरूरतों को दो साल तक पूरा न करने पर तलाक का अधिकार

तीन लाख बार बोलने पर भी नहीं होगा तलाक : कल्बे सादिक

वरिष्ठ शिया धर्मगुरु मौलाना डॉ. कल्बे सादिक ने कहा कि तीन तलाक का मसला बहुत बड़ा है। मौलाना ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में अकसरियत सुन्नी भाइयों की है। तीन तलाक का मामला भी सुन्नी समुदाय से जुड़ा है जबकि शिया समुदाय में तीन बार क्या, अगर तीन लाख बार भी तलाक-तलाक कहा जाए तब भी तलाक नहीं होगा। लड़की की मर्जी के बिना तलाक हो ही नहीं सकता।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दाखिल किया हलफनामा

तीन तलाक के मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। हलफनामे में बोर्ड ने कहा है कि सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को दोबारा नहीं लिखा जा सकता और तलाक की वैधता तय करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार में नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ कोई कानून नहीं है जिसे चुनौती दी जा सके, बल्कि यह कुरआन से लिया गया है। यह इस्लाम धर्म से संबंधित सांस्कृतिक मुद्दा है।

बोर्ड ने हलफनामे में कहा, तलाक, शादी और देखरेख अलग-अलग धर्म में अलग-अलग हैं। एक धर्म के अधिकार को लेकर कोर्ट फैसला नहीं दे सकता। कुरआन के मुताबिक तलाक अवांछनीय है, लेकिन जरूरत पडऩे पर दिया जा सकता है। इस्लाम में यह पॉलिसी है कि अगर दंपती के बीच नहीं बन रही है, तो संबंध खत्म कर दिया जाए। तीन तलाक की इजाजत है, क्योंकि पति सही निर्णय ले सकता है। पति जल्दबाजी में फैसला नहीं लेते। वैध कारणों की स्थिति में तीन तलाक इस्तेमाल किया जाता है।

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