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पितृ पूजा हमारे अपने मृत्यु लोक के प्राणी

शोभा भारद्वाज
1014 को प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ लगभग पांच वर्ष चला था | यह एक जर्मनी के शासक विलियम कोसर की महत्वकांक्षा का परिणाम था युद्ध के 100 वर्ष पूरे होने पर सेना और युद्ध में सभी मरने वाले लाखों नागरिकों के सम्मान में पहली अगस्त को पूरे विश्व में रौशनी कम की गई थी यह उन अनजान आत्माओं के लिए श्रद्धांजली थी जो समय से पूर्व मृत्यु की गोद में सो गये |

आज कल श्राद्ध के पर्व चल रहे हैं हम अपने पितरों को याद करते है उनकी तिथि पर पंडितों को भोजन कराते हैं साथ में मिष्ठान परोसते हैं यही नही पंडित जी के चरण स्पर्श कर उन्हें दक्षिणा दे कर विदा करते हैं |अपने पुरखों की याद में पुराने लोग बहुत भावुक हो जाते हैं उन्हें लगता है वाकई उनके पूर्वज घर पधारे हैं इस लिए घर की महिलाये घर की देहरी को पानी से धो कर अल्पना बनती हैं | अमावस्या के दिन साँझ को पितरों को सम्मान के साथ विदा भी किया जाता है घर का बेटा अर्थात मालिक एक दिया जला कर उसके साथ कुछ मीठा उत्तर दिशा में रखता है कुछ दूर तक लोटे से जल भी अर्पित करते हैं | पुरखों को जाते समय कोई कष्ट न हो उनका मार्ग रोशन रहे उनके कुल दीपक ने दिया जलाया है राह के लिए जल और कुछ मीठा भी है | सन्तान अपने पूर्वजों को सदैव याद रखे इसी लिए बच्चे के जन्म पर खास कर पुत्र के जन्म पर ख़ुशी मनाई जाती है|

कुछ लोग इसे पंडितो का ढकोसला कहते है वह स्वयं श्राद्ध नही करते दूसरों को भी हतोत्साहित करते है उनके अपने तर्क हैं जो मर चुका है क्या वह खाने के लिए आता हैं हमें श्राद्ध नहीं बजुर्गों के प्रति श्रद्धा दिखानी चाहिए | जीते जी हमने अपने बजुर्गों को पूछा नही अब हम पंडितों की पंगत बिठा कर भोजन करा रहे है| शाहजहाँ को ओरंगजेब ने आगरे के किले में कैद कर लिया और बादशाहत हासिल कर ली| बूढ़े बादशाह अपने पुत्र की कैद में आठ वर्ष तक जिन्दा रहे अंतिम वर्ष में एक दिन नहर का जल जिससे पीने का पानी आगरा के किले में सप्लाई होता था बंद कर दिया गया बादशाह के घड़े में पीने का पानी नहीं था | शाहजहाँ ने बादशाह ओरंगजेब को खत लिखा ‘हे बादशाह एक दिन मैं भी हिन्दोस्तान का बादशाह था आज मैं पीने के पानी के लिए तरस रहा हूँ काफ़िर अपने मरों के नाम पर पानी भोजन देते हैं तुम मुझे जीते जी पीने के पानी के लिए तरसा रहे हो रहम कर’ तुरंत पीने का पानी शुरू कर दिया गया ‘| जो पितर बन गया उसे कुछ नहीं चाहिए हम तो एक जलांजलि उसकी याद में दे दें बहुत है| श्राद्ध के दिन पुरखों को याद किया जाता है सन्तान उनके बारे में सुनती है समझती है वह समझ जाती है ऐसे ही उन्हें भी एक दिन श्राद्ध करना है क्या यह ढकोसला होगा ?नहीं संस्कृति है |

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