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भोपाल के परोपकारी राधेश्याम अग्रवाल

भोपाल की जनसंवेदना एक ऐसी संस्था है जो गरीबो को भोजन कराती है, लावारिशो के शव का विधि विधान से अन्त्य संस्कार करती है. गरीबो में कपड़ो का वितरण करती है, मरीजो को अस्पताल पहुचाने का प्रबंध भी करती है. इस संस्था का उदय एक छोटे रूप में हुआ था आज यह वटवृक्ष के रूप में खड़ा है. कोई भी पौधा बिना पानी, खाद और बच्चे जैसी देख रेख के बिना वीराट रूप नहीं ले सकता, इसकी परवरिश संस्था के संस्थापक श्री राधेश्याम अग्रवाल ने की है, इस व्यक्ति को न भूक सताती है, न प्यास की परवाह है, कैसे गरीबो का भला किया जाय इसी पर इनका मनन करने वाला व्यक्तित्व है. अपने घर से दूर जेल पहाड़ी पर इनका दफ्तर है, सुबह से रात का समय इन्ही गरीबो के सेवा में अनेको वर्षो से व्यतीत हो रहा है, संस्था में दान लेने की परम्परा है किन्तु जो देता है उसी से लिया जाता है, इस संस्था की विशेषता यह है कि दान माँगा नहीं जाता. श्री अग्रवाल जी के अपने संपर्क है और इनकी जड़े काफी गहरी है, इन्ही संपर्को से यह संस्था चल रही है अनेको बार श्री अग्रवाल अपनी गाँठ का भी लगाते है. गृहस्थ होते हुए भी सन्यासी का जीवन व्यतीत कर रहे है. घर की मोह माया से दूर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में लगे रहते है. ईश्वर इस निष्काम कर्मयोगी की सहायता भी कर रहा है. वानप्रस्थ आश्रम का उदाहरण यदि देखना हो तब श्री अग्रवाल जी को देख लीजिये. आज के जीवन घर में सब सुविधा के होते हुए बिना सुविधा दिन बिताना इसे मै तपस्या मानता हूँ. इनके दफ्तर में जो व्यक्ति उपस्थित न उसके बारे में चर्चा करने पर प्रतिबन्ध है. यही नहीं किसी के द्वारा बताई गयी बात को स्वीकार भी नहीं कियाजाता. बताई बात स्वीकारी तब जाती है जब उस पर चाणक्य की छलनी नहीं लग जाती है. श्री अग्रवाल अपने ज़माने के जाने माने पत्रकार रहे है, उनकी पत्रकारिता की धाक आज भी कायम. वे केवल सकारात्मक पत्रकारिता करते है. इसी कारण किसी भी पार्टी का कोई मुख्यमंत्री या मंत्री आज भी उनकी दिल से इज्ज़त करता है. मेरी उनसे कोई प्रत्यक्ष सबंध स्थापित नहीं हुए थे. हम एक दुसरे से फेस बुक के माध्यम से जुड़े और मित्रता घनिष्टता में बदल गयी तब मैंने उनसे कहा खाली हूँ कोई काम दिलवा दीजिये तब उन्होंने कहा 10 दिन रुकिये कुछ करता हूँ अचानक 10 दिन बाद उनका फोन आया कि आज हमें भोपाल चेम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष से मिलने चलना है. हम मिलने गए, अध्यक्ष महोदय ने मुझे प्रभावित किया और व्यवहार शास्त्र में कुशल भी है. अध्यक्ष जी से कोई एक घंटा चर्चा हुयी और उन्होने कहा चूँकि राधेश्याम जी की सिफारिश है, उन्हें कोन टाल सकता है आप कल से चेंबर के सचिव का काम देखिये. बाद में मुझे पता चला कि वे मेरे लिए कैलाश जी ( चेम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष ) से मिलने अपनी खुद अपनी गाड़ी से तीन चार बार मिलने गए और मेरे अनुकूल वातावरण बनाया यह उनकी परोपकारिता का एक उदहारण है.मै जीवन भर उनकी मदद को नहीं भूलूंगा. ऐसे उनके परोपकार अनगिनत है. ऐसा नहीं है कि उनका मार्ग सुगम है, शीर्ष पर पहुचने वालो की टांग खिचाई के सामान इनके पीछे भी विघ्न संतोषी पड़े रहते है.किन्तु वे कहते है वे अपना काम कर रहे मै अपना काम कर रहा हूँ. मैंने उन्हें कभी नाराज होते हुए नहीं देखा और न किसी की निंदा करते हुए सुना. एक अलौकिक व्यक्तित्व है. स्वार्थ का कोई अंश इनके जीवन में नहीं. जनसंवेदना का हिसाब किताब पूरी तरह पारदर्शी है. वे कहते है घर से ठीक ठाक हूँ क्यों दान के एक पैसे का दुरुपयोग कर अपने अगले जन्म को ख़राब करू. आतिथ्य सत्कार कूट कूट कर भरा है. मै अनेक दिवसो से नहीं गया इसकी मेरे प्रति नाराजगी से परिचित हूँ, थोडा गुस्सा दिखाकर फिर से प्यार भरी बाते करने लग जाते है. जनसंवेदना के ऐसे परोपकारी संस्था के संस्थापक को नमन करता हूँ और आपसे आग्रह करता हूँ ऐसे महान व्यक्तित्व से एक बार निश्चित मिले, किन्तु मिलने से पहले उनसे समय जरुर ले ले. यह उनके आफिस का नंबर है, 0755 257 6007. एक परोपकारी व्यक्ति से मिलकर आप प्रसन्नता का अनुभव करेंगे.

यह लेख पुरुषोत्तम कस्तूरे जी के द्वारा लिखा गया हैं

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