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संजय पाठक को भाजपा में तवज्जो देने को लेकर पार्टी में घमासान

भोपाल।भारतीय जनता पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों से अपनी पार्टी का वर्चस्व बढ़ाने और पार्टी के नेताओं की इस तरह की रणनीति की येनकेन प्रकारेण उन्हें चुनाव में सफलता पान है कि रणनीति को अपनाकर उसे जो धरातल पर उतारने का काम वर्षों से किया जा रहा है, उससे भाजपा के नेता चिंतित हैं और उनके समक्ष अब यह खतरा नजर आने लगा और वह यह सोचने को मजबूर हो गए हैं कि पार्टी में बाहरी नेताओं को जिस तरह से सर आंखों पर बैठाकर उन्हें तवज्जो देने की रणनति चल निकली है उस रणनीति में अब भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को अपनी कोई बख्त दिखाई नहीं दे रही है और अब उनके सामने यह चिंता सताने लगी है कि जिस तरह से भाजपा ने उत्तरप्रदेश के चुनावी समर में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांगेस से दल बदलकर आए नेताओं को तवज्जो देने का जो सिलसिला जारी किया है और अपने वर्षों पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षाओं का दौर जारी है, यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में पार्टी बाहरी नेताओं को तवज्जो देने की परम्परा चल निकली तो उनका क्या होगा, जैसा कि संजय पाठक को लेकर पार्टी नीति अपना रही है, कटनी में हुए ५०० करोड़ के हवाला कांड के संदेह के घेरे में आने के मामले में संजय पाठक को पार्टी अभी तक यह कहकर कि केवल आरोप के आधार पर किसी को निकाला नहीं जाएगा उन्हें तवज्जो देने में लगी हुई है जबकि इसी भाजपा के शासनकाल के दौरान यौन शोषण के आरोप में घेरे में आने के कारण मुख्यमंत्री ने राघवजी को को बाहर का रास्ता दिखा दिया था और इसी मध्यप्रदेश में शिवराज मंत्रीमण्डल के मंत्री रहे अजय विश्नोई ने उनके भाई के यहां पड़े आयकर के छापे के बाद त्यागपत्र दे दिया था, लेकिन कांग्रेस से भाजपा में आए खनिज कारोबारी संजय पाठक के कटनी हवाला कांड के घेरे में होने और तत्कालीन एसपी गौरव तिवारी द्वारा जब्त दस्तावेजों में संजय पाठक के परिवार से जुड़ी फार्मों के जब्त होने के बावजूद भी उन्हें पार्टी आज भी तवज्जो देने में लगी हुई है, पार्टी की इस तरह की इस तरह की अपनों पर गैरों पर करम अपनों के सितम, के सिद्धांत अपनाये जाने के चलते पार्टी में कई तरह की सुगबुहाट का दौर जारी है और अब भाजपा के नेता दबी जुबान से यह कहते नजर आ रहे हैं कि पार्टी को अब निष्ठावान और कर्मठ कार्यकर्ताओं की जरूरत नहीं अब तो उसे रुपयों की खनक वाले और खनिज कारोबारियों की जरूरत महसूस हो रही है। जिसके चलते वह अपने वर्षों पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने में लग गई है। तो वहीं इन असंतुष्ट भाजपाई नेताओं में इस बात को लेकर भी आक्रोश व्याप्त है कि जब सिर्फ और सिर्फ आरोपों के घेरे में आने के बाद राघवजी को पार्टी से हटाया जा सकता है तो फिर संजय पाठक को गोदी में बैठाने का दौर क्यों जारी है? कुल मिलाकर संजय पाठक को लेकर पार्टी में इन दिनों घमासान मचा हुआ है और यदि यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में संजय पाठक को लेकर भाजपा में क्या स्थिति बनती है इस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।
संभार :  (हिन्द न्यूज सर्विस)

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