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उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा का 62 की उम्र में निधन

एमपी ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल 
वर्दी वाला गुंडा जैसे चर्चित उपन्यासों के जरिये पाठकों के दिलों पर राज करने वाले प्रख्यात उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा चिरनिद्रा में लीन हो गए हैं। शुक्रवार रात करीब 11:50 बजे अपने शास्त्रीनगर स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से शहर में शोक की लहर है। वह एक साल से अधिक समय से बीमार थे। मुंबई से उनका इलाज चल रहा था।

वेदप्रकाश शर्मा का जन्म 6 जून 1955 को हुआ था। उन्हें किशोरावस्था से ही पुस्तकें पढ़ने और लिखने का शौक था। युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने उपन्यास लेखन शुरू कर दिया था। कुछ ही दिन में वह पाठकों के पसंदीदा लेखक हो गए थे। उन्होेंने 250 से अधिक उपन्यास लिखे। उनके लिखे उपन्यास बेहद प्रेरणादायक और उद्देश्य परक होते थे। वर्ष-1993 में उनके उपन्यास वर्दी वाला गुंडा ने उन्हें देशभर में काफी शोहरत दिलाई थी, जिसकी आठ करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। बॉलीवुड में भी उनके लेखन के जलवे थे। कई फिल्मों की उन्होंने पटकथा लिखी। फिल्म ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’ उनके उपन्यास लल्लू पर आधारित थी। इसके अलावा ‘इंटरनेशनल खिलाड़ी’ फिल्म की पटकथा भी उन्होंने ही लिखी थी। उनके उपन्यास छोटे पर्दे पर सीरियल के रूप में भी सामने आए। देश भर में उनके प्रशंसक हैं। उनके परिवार में पत्नी मधु शर्मा के अलावा बेटा शगुन और तीन बेटियां हैं। देर रात 61 वर्षीय वेदप्रकाश शर्मा के निधन की खबर शहर में फैली तो लोग अंतिम दर्शन को उनके निवास पर पहुंचने लगे। शहर के राजनीतिक, सामाजिक, व्यापारी, उद्यमी और गण्यमान्य लोगों ने उनके निधन पर दुख प्रकट किया है।


बेगमपुल पर मिला था ‘वर्दी वाला गुंडा’ 
खाकी और खादी के बीच खूब चर्चित रहे
लेखनी और साहित्य के सिकंदर वेदप्रकाश शर्मा का लेखन हमेशा याद किया जाएगा। राजनीतिक के अलावा पुलिस और प्रशासनिक अफसरों में उनके नाम की खूब चर्चा होती थी। आम आदमी की भाषा में लिखने वाले वेद प्रकाश शर्मा देश के बड़े लेखक में शुमार हुए। उनसे जुड़े लोगों के मुताबिक, एक बार वह बेगमपुल पर घूम रहे थे। तभी वर्दी में एक दरोगा पहुंचते हैं। वह कुछ लोगों पर ऐसे डंडे बरसाते हैं, जैसे बदमाशों को पीट रहे हों। वेद प्रकाश शर्मा वर्दी वाले उस दरोगा को देखते हैं। बाद में उनके मन में जो विचार पनपा, उसी ने उन्हें बड़े मुकाम तक पहुंचा दिया। वर्दी वाला गुंडा उपन्यास में उनके द्वारा लिखी गई घटना को पढ़कर आज भी पुलिस अफसर सीख लेते हैं।

आवास में रखे हैं उपन्यास
शास्त्रीनगर स्थित कोठी के पास उन्होंने फैैंसी लाइट का शोरूम बनवाया था। उसे उनका बेटा शगुन चलता है। शोरूम के बेसमेंट में उनकी किताबें की लाइब्रेरी है। वहीं पर सभी उपन्यास सहेजकर रखे हैं। बताते हैं जब वह लिखते और पढ़ते थे तो परिवार का कोई सदस्य उनके पास नहीं जाता था।
आइए... आइए कैसे हैं आप
वेदप्रकाश शर्मा का व्यवहार मधुर था। वह बच्चों से लेकर बड़ों तक को इज्जत देते थे। एक बार उनके शोरूम में आग लग गई थी। जब उनसे बात की गई तो उन्होंने बड़ी मधुरता से बात की। साथ ही घर बुलाया और बाहर तक छोड़ने भी आए।

घर पर पहुंचे लोग
वेदप्रकाश शर्मा ने समाज को बहुत करीब से देखा था। पहले उनका परिवार कोतवाली क्षेत्र के स्वामीपाड़ा में रहता था, लेकिन अब शास्त्रीनगर के ब्लॉक में पीवीएस रोड पर रह रहा है। उनका बेटा शगुन है। तीन बेटियों में करिश्मा, गरिमा और खुशबू हैं। सभी की शादी हो चुकी है। उनकी मौत का पता चलते ही शास्त्रीनगर और शहर के आसपास के लोग भी घर पहुंच गए।

सूरजकुंड पर होगा अंतिम संस्कार
वेदप्रकाश शर्मा के रिश्तेदारों ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार शनिवार सुबह दस बजे सूरजकुंड पर किया  जाएगा।


मूवी टिकट की तरह होती थी नॉवेल की बुकिंग
वेद प्रकाश शर्मा नहीं रहे, लेकिन उनका लेखन हमेशा पाठकों के जेहन में रहेगा। अपनी कृतियों से वह अजर और अमर रहेंगे। वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यासों का पाठकों को लंबा इंतजार रहता था। मूवी टिकट की तरह ही शहर के कई बुक स्टॉल पर उनके उपन्यासों की एडवांस बुकिंग होती थी। वर्ष-1993 में प्रकाशित उपन्यास वर्दी वाला गुंडा की पहले ही दिन देशभर में 15 लाख प्रतियां बिक गई थीं। शहर के सभी बुक स्टॉल पर कुछ ही घंटों में उपन्यास की प्रतियां समाप्त हो चुकी थीं। बुकिंग कराने वाले कई लोगों को उपन्यास नहीं मिलने से निराशा हाथ लगी थी।

वेदप्रकाश शर्मा को बचपन से ही उपन्यास पढ़ने का शौक था। उनके इसी शौक ने उन्हें देश भर में पहचान दिलाई। बात 1972 की है। हाईस्कूल की परीक्षा देकर वह गर्मी की छुट्टियों में अपने पैतृक गांव बिहरा (बुलंदशहर) गए थे। उपन्यास के शौकीन वेदप्रकाश अपने साथ दर्जन भर से अधिक किताबें ले गए थे। कुछ ही दिन में उन्होंने सारी किताबें पढ़ डालीं। समय व्यतीत करने के लिए उन्होंने उपन्यास लिखना शुरू कर दिया। पिता को यह बात पता चली, तो उन्हें काफी डांट पड़ी।

बाद में पिता ने पढ़ा तो उनके दिल को बेटे की लेखन शैली छू गई। उनका निधन होने पर शास्त्रीनगर स्थित आवास पर पहुंचे लोग प्रारंभिक जीवन में उनके संघर्ष की चर्चा करते भी नजर आए। लोगों ने बताया कि वेद प्रकाश जब युवा थे, उसी दौरान उनके पिता को गैंगरीन हो गया था। उनके बडे़ भाई की मौत हो चुकी थी। ऐसे में वेद प्रकाश ने ही परिवार को संभाला।

शुरुआती दौर में नहीं मिला नाम
वेद प्रकाश का लेखन जीवन भी संघर्षों से भरा रहा। उनके लिखे प्रारंभिक उपन्यास बिना उनके नाम के प्रकाशित हुए। इससे उन्हें पहचान नहीं मिल पाई। मेहनताना भी नाम मात्र का ही मिलता था। लेकिन, वेदप्रकाश पीछे नहीं हटे और उनकी लग्न एक दिन रंग लाई। पहली बार उपन्यास आग के बेटे (1973) के मुख पृष्ठ पर वेद प्रकाश शर्मा का पूरा नाम छापा, लेकिन फोटो नहीं। बाद में उसी साल ज्योति प्रकाशन और माधुरी प्रकाशन दोनों ने उनके नाम के साथ फोटो भी छापना शुरू कर दिया।

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