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जैविक खेती करने वाले किसान की घर बैठे मूंगफली बिक गई


ग्राम कड़ाई के रामसिंह ने जैविक खेती से 3 लाख का अतिरिक्त मुनाफा कमाया
उज्जैन । उज्जैन जिले में जैविक खेती का प्रचार-प्रसार जोरों पर है। कई कृषक रासायनिक खाद की बजाय जैविक खाद का उपयोग कर न केवल अधिक फसल ले रहे हैं, बल्कि महंगे फर्टिलाइजर में लगने वाले खर्चे की बचत भी कर रहे हैं। ऐसे ही एक किसान हैं श्री रामसिंह। वे ग्राम कड़ाई तहसील तराना में निवास करते हैं तथा लगभग सौ बीघा की खेती उनके पास है। उन्होंने इस वर्ष खरीफ में जैविक खाद का उपयोग कर छह से सात क्विंटल प्रतिबीघा मूंगफली की पैदावार की, जबकि रासायनिक खाद का उपयोग कर वे अधिकतम साढ़े तीन क्विंटल प्रतिबीघा की फसल ही ले पाते थे। जैविक पद्धति से उत्पन्न की गई मूंगफली रामसिंह को मंडी ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। आसपास शाजापुर, तराना के लोग उनसे घर बैठे ही 60 रूपये किलो में मूंगफली खरीद ले गये। जैविक पद्धति से उगाई गई मूंगफली का स्वाद बेजोड़ है और लोग इसकी हर कहीं प्रशंसा कर रहे हैं। रामसिंह कहते हैं कि कृषि विभाग की सलाह पर उन्होंने खेती को मुनाफे का धंधा बनाने वाला मंत्र सीख लिया है। वे अपने आसपास के किसानों को भी जैविक खेती के लिये प्रेरणा दे रहे हैं।
कृषक श्री रामसिंह बताते हैं कि उन्होंने जीवामृत पद्धति से जैविक खाद तैयार किया। इसमें 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो गोबर, एक किलो गुड़, एक किलो बेसन, बड़ के नीचे की दो से पांच किलो मिट्टी को 200 लीटर पानी के ड्रम में घोलकर 48 घंटे रखा। इसके बाद इसमें तीन बोरी सूखा खाद मिलाकर पेस्ट बना लिया। सात दिन बाद सूखाकर इस पेस्ट को जूट के बोरे में भर लिया। इस जैविक खाद का बोते समय सीडड्रिल में उपयोग किया और चमत्कार हो गया। ढाई से तीन क्विंटल पैदा होने वाली मूंगफली की पैदावार सीधे सात क्विंटल हो गई।
 
वर्षों से परम्परागत खेती करते आ रहे रामसिंह अपनी सौ बीघा जमीन में खरीफ में सोयाबीन, मूंगफली, अरहर और मूंग की फसल लगाते हैं, वहीं रबी फसल में गेहूं, चना, मसूर, प्याज, लहसुन के साथ-साथ उन्होंने अनार और मौसम्बी के बगीचे भी लगाये हैं। नये प्रयोगों को रूचिपूर्वक लागू करने वाले श्री रामसिंह ने कहा कि उन्होंने सोयाबीन फसल में वर्मी कम्पोस्ट से लिये गये खाद का उपयोग किया और एक बीघा में चार से पांच क्विंटल की फसल ली। वहीं पर रासायनिक उर्वरकों से वे दो से तीन क्विंटल के बीच में ही सोयाबीन ले पाते थे। जैविक खाद से इस बार उनके गन्ने नौ फीट ऊंचाई तक बढ़ गये हैं। सम्पूर्ण आमदनी का हिसाब पूछने पर वे बताते हैं कि जैविक खेती से जहां एक ओर उन्हें डेढ़ लाख रूपये के महंगे रासायनिक उर्वरकों की राशि की बचत हुई है, वहीं दूसरी ओर दो से तीन लाख रूपये की अतिरिक्त आमदनी भी फसल में वृद्धि के कारण हो रही है। उन्होंने अपने फार्म हाऊस पर गिर नस्ल की 10 गायें लाकर दुग्ध उत्पादन का काम भी शुरू किया है। प्रत्येक गाय 10 से 15 लीटर दूध देती हैं और उन्हें औसतन 35 रूपये प्रति लीटर की राशि उज्जैन दुग्ध संघ की
डेयरी समिति से प्राप्त हो जाती है। वे बताते हैं कि खेती को यदि फायदे का धंधा बनाना है तो किसान को खेती के साथ-साथ फलोद्यान, दूध उत्पादन एवं जैविक खेती को अपनाना होगा। किसान रामसिंह कहते हैं कि अकेले दुग्ध उत्पादन से ही उन्हें सब खर्चा काटकर 15 रूपये प्रति लीटर की बचत हो रही है और एक गाय प्रतिदिन 10 से 15 लीटर दूध दे रही है।

भावान्तर योजना से भी प्रसन्न हैं रामसिंह

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लागू की गई भावान्तर योजना का लाभ भी कृषक श्री रामसिंह को मिला है। उन्होंने सौ क्विंटल सोयाबीन भावान्तर योजना के तहत नवम्बर माह में तराना मंडी में बेची। भावान्तर की राशि 25 हजार रूपये उनके खाते में जमा हो गई है। भावान्तर योजना की प्रशंसा करते हुए रामसिंह कहते हैं कि यह किसानों के लिये फसल बीमा से भी बढ़कर योजना है। घर में आई फसल का भाव गिर जाये तो भावान्तर योजना से किसान को बड़ा सहारा मिल रहा है। वे कहते हैं कि इस तरह की योजना रबी फसल में भी लागू की जाना चाहिये।

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