BJP NEWS BHOPAL : लोकसभा और विधानसभा के चुनाव 1967 तक संवैधानिक थे तो अब एतराज क्यों : डॉ. विजयवर्गीय
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय ने कहा कि आजादी के बाद एक राष्ट्र एक चुनाव लोकतंत्र में आदर्श स्थिति थी जो 1967 तक सुचारू रूप से चलती रही। लेकिन कांग्रेस की एकाधिकारवादी लिप्सा के चलते गैर कांग्रेसी दलों की सरकारों को सूबों में गिराने का क्रम आरंभ कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि अब हर साल प्रदेशों के चुनाव का बिगुल बजते ही राजनैतिक दल कमर कसकर मैदान में आ जाते है। इससे प्रशासन लगातार इसमें लगा रहा है और राजनैतिक दलों में कटुता बनी रहती है।
उन्होंने कहा कि कमोवेश सरकारों और राजनैतिक दलों को चुनावी मोड़ में रहना उनकी विवशता बन गयी है। इससे लोकसभा के चुनाव और राज्यों के चुनाव अलग-अलग होने से एक ओर तो प्रशासकीय कार्यो में अवरोध आता है वही समय और धन की बर्बादी होती है। इसलिए विधि आयोग ने एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराने का प्रस्ताव किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक राष्ट्र एक चुनाव की अनुशंसा की है। लेकिन विधि आयोग द्वारा आमंत्रित बैठक में जिस तरह कांग्रेस ने अपना असमंजस और दीगर दलों ने अपनी अनिच्छा जतायी है उससे लगता है कि उन दलों को राष्ट्रीय हित से सर्वोच्च उनका संकीण दलीय स्वार्थ है। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र और जनहित में नहीं है।
डॉ. विजयवर्गीय ने कहा कि एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव के चुनावों को कुछ राजनैतिक दल संविधान के विपरीत बताकर अपनी संवैधानिक निरक्षतरता उजागर कर रहे है। आजादी के बाद यदि 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ हुए तो क्या वे असंवैधानिक रहे है। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधारों के प्रति राजनैतिक दलों में उत्सुकता का न होना बडी बाधा है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को बार-बार पहल करना पडती है। राष्ट्रहित का तकाजा है कि राजनैतिक दल एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराने के बारे में उत्सुक न होते हुए भी बहस में तो भाग लें। लोकतंत्र में बहस और संवाद लोकतंत्र के प्राण है। एक साथ चुनाव कराने पर सहमति बनना भले ही कठिन हो लेकिन असंभव नहीं है। बहस और संवाद से राह निकलेगी।
उन्होंने कहा कि कमोवेश सरकारों और राजनैतिक दलों को चुनावी मोड़ में रहना उनकी विवशता बन गयी है। इससे लोकसभा के चुनाव और राज्यों के चुनाव अलग-अलग होने से एक ओर तो प्रशासकीय कार्यो में अवरोध आता है वही समय और धन की बर्बादी होती है। इसलिए विधि आयोग ने एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराने का प्रस्ताव किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी एक राष्ट्र एक चुनाव की अनुशंसा की है। लेकिन विधि आयोग द्वारा आमंत्रित बैठक में जिस तरह कांग्रेस ने अपना असमंजस और दीगर दलों ने अपनी अनिच्छा जतायी है उससे लगता है कि उन दलों को राष्ट्रीय हित से सर्वोच्च उनका संकीण दलीय स्वार्थ है। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र और जनहित में नहीं है।
डॉ. विजयवर्गीय ने कहा कि एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव के चुनावों को कुछ राजनैतिक दल संविधान के विपरीत बताकर अपनी संवैधानिक निरक्षतरता उजागर कर रहे है। आजादी के बाद यदि 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ साथ हुए तो क्या वे असंवैधानिक रहे है। उन्होंने कहा कि चुनाव सुधारों के प्रति राजनैतिक दलों में उत्सुकता का न होना बडी बाधा है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को बार-बार पहल करना पडती है। राष्ट्रहित का तकाजा है कि राजनैतिक दल एक साथ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराने के बारे में उत्सुक न होते हुए भी बहस में तो भाग लें। लोकतंत्र में बहस और संवाद लोकतंत्र के प्राण है। एक साथ चुनाव कराने पर सहमति बनना भले ही कठिन हो लेकिन असंभव नहीं है। बहस और संवाद से राह निकलेगी।
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